मैंने सुना, जब पहला रूसी अंतरिक्ष यात्री चांद का
परिभ्रमण करके लौटा तो ख्रुश्चेव ने उससे पूछा--एकांत में स्वभावतः, बिलकुल अकेले में--कहा कि दरवाजा भी बंद कर दे। पूछा कि एक बात बता,
चांद का चक्कर लगा कर आया, ईश्वर दिखाई
पड़ा?
उसने मजाक किया। उसने कहा, "हां, ईश्वर है।' ख्रुश्चेव ने कहा, "मुझे पहले संदेह था कि होगा। मगर कसम खा ली कि किसी और को न बताना।'
जो संग्रहालय मास्को में बनाया गया है, चांद से लाई गयी मिट्टी,
पत्थरों का जहां संग्रह है, अंतरिक्ष के
संबंध में जो अब तक खोज हुई है, चित्र लिए गये हैं,
उनका संग्रह है--उसके द्वार पर लिखा हुआ है कि हमारे अंतरिक्ष
यात्री चांद पर पहुंच गये और उन्होंने एक बात सुनिश्चित रूप से पायी कि वहां कोई
ईश्वर नहीं है।
फिर यह अंतरिक्ष यात्री जगह-जगह निमंत्रित
हुआ। यह वैटिकन भी गया, जहां ईसाइयों के केथौलिक संप्रदाय के प्रधान, पोप
का निवास है। पोप ने भी उसे बुलाया। दरवाजा लगवा लिया, वैसे
ही जैसे ख्रुश्चेव ने लगवाया था। और पूछा कि एक बात बताओ, बिलकुल एकांत, कानोंकान, किसी को खबर न हो--"ईश्वर दिखाई पड़ा?'
उसे मजाक सूझी। एक मजाक ख्रुश्चेव से की थी, यहां भी वह चूका नहीं।
उसने कहा कि ईश्वर है ही नहीं, कोई ईश्वर दिखाई नहीं पड़ा।
पोप ने कहा, "मुझे पहले ही संदेह था।' मगर अब तुम इतनी कृपा करना, यह बात किसी से
कहना मत।'
यहां नास्तिकों को भी संदेह है--हो न हो, ईश्वर हो! यहां आस्तिकों
को भी संदेह है कि हो न हो, ईश्वर न हो! सब कल्पना-जाल
में खोए हुए हैं। किसी का कोई अनुभव नहीं है।
लोग पूछते हैं, "नर्क है?' जैसे कि नर्क कोई भौगोलिक चीज है! या स्वर्ग कोई भौगोलिक चीज है! लोग
पूछते हैं, "ईश्वर कहां है?' जैसे कि ईश्वर कोई व्यक्ति है और किसी सीमा में आबद्ध होगा! स्वर्ग और
नर्क जीवन की शैलियां हैं। नर्क का अर्थ है-- जिसे अपने ईश्वर होने का बोध नहीं,
उसके जीवन की शैली नर्क होगी। खिन खिन दुखिया दगधिये! वह जलेगा
आग में। और जिसे पता है कि में ईश्वर हूं, मेरे भीतर
ईश्वर है--उसके जीवन शैली में स्वर्ग होगा। उसके आसपास मुरली बजेगी। उसके आसपास
अप्सराएं नाचेंगी। उसके आसपास फूल खिलेंगे। उसके आसपास गीतों की झड़ी लगेगी। जिसे
अपने भीतर के ईश्वर का पता है, उसके जीवन में स्वर्ग
होगा। और जिसे अपने भीतर के ईश्वर का पता नहीं, उसका जीवन
नर्क होगा।
नर्क और स्वर्ग कहीं और नहीं है। यहीं रज्जब
जैसे व्यक्ति स्वर्ग में जीते हैं और तुम यहीं नर्क में जीते हो। तुम्हारा चुनाव।
खिन खिन दुखिया दग्धिये! क्षण-क्षण जल रहे
हो, मगर जलने
की तुम्हारी आदत हो गयी है। अब तो तुम जानते ही नहीं कि जीवन का कोई और ढंग भी हो
सकता है। तुम मान कर ही बैठ गये कि बस यही जीवन की एक व्यवस्था है, यही जीवन का एक रंग है, यही एक रूप है। जीवन
इतने पर समाप्त नहीं है।
सितारों के आगे जहां और भी हैं
इश्क के अभी इम्तिहां और भी हैं
जो तुमने जाना है वह तो कुछ भी नहीं है।
सितारों के आगे जहां और भी हैं! अभी और बहुत जानने को शेष है। अभी जाना ही कुछ
नहीं। अभी तो जानने का पहला कदम भी नहीं उठाया।
ज्यूँ मछली बिन नीर
ओशो
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