मेरे प्रिय आत्मन्!
जीसस से कोई पूछ रहा था कि आपका जन्म कब हुआ? तो जीसस ने जो उत्तर दिया
वह बहुत हैरानी का है। यहूदियों का एक बहुत पुराना पैगंबर हुआ है अब्राहम, जीसस से कोई दो हजार साल पहले। अब्राहम यहूदियों के इतिहास में पुराने से
पुराना नाम है। जीसस ने कहा कि अब्राहम था, उसके भी पहले मैं
था।
विश्वास नहीं हुआ होगा सुनने वाले को। क्योंकि
विश्वास हमें केवल उसी बात का होता है,
जिसका हमें अनुभव हो। बात पहेली ही मालूम पड़ी होगी, क्योंकि अब्राहम के पहले जीसस के होने की कोई संभावना नहीं मालूम होती।
शरीर तो हो ही नहीं सकता। लेकिन जीसस जैसा आदमी व्यर्थ ही झूठ बोले, यह भी संभव नहीं है।
लाओत्से से किसी ने एक दिन पूछा कि तुम्हारा
जन्म कब हुआ? तुम्हारे जन्म की तिथि कौन सी है? तो लाओत्से ने
कहा, जहां तक मैं जानता हूं मेरा जन्म कभी नहीं हुआ। और मेरे
जन्म के संबंध में अगर दूसरे कहें, तो उनका १ग्रोसा मत करना,
क्योंकि अपने जन्म के संबंध में जितना मैं जानता हूं उतना कोई दूसरा
नहीं जान सकता। लेकिन हम सब तो दूसरे जो हमें बताते हैं, उस
पर भरोसा करते हैं। यह बहुत ही मजाक की बात है लाओत्से ने जो कही। क्योंकि आपको भी
अपने जन्म का कोई पता नहीं है, सिवाय दूसरों की बताई हुई बात
के। दूसरे कहते हैं कि आप कभी पैदा हुए। समझें कि दूसरे न कहें, समझें कि एक बच्चे को न बताया जाए कि वह कभी पैदा हुआ। तो क्या कोई भी उपाय
है कि बच्चा अपनी तरफ से पता लगा ले कि वह पैदा हुआ है? अगर
बाहर से सूचना न दी जाए, तो आपको कभी पता भी चलता कि आप कभी
जन्मे? और बड़े मजे की बात है, जन्मे
आप हैं और सूचना बाहर से दी गई है। और जिन्होंने सूचना दी है, उन्हें भी अपने जन्म की कोई खबर नहीं; उनको भी
उनके जन्म की खबर दूसरों ने दी है। और ऐसा ही और भी आगे है।
जन्म एक झूठी बात है, लोकोक्ति है। लोग कहते हैं
कि आप पैदा हुए। कोई आदमी कभी पैदा नहीं होता। फिर इसी तरह लोग कहते हैं कि मर गए।
जिन्होंने अपना जन्म भी नहीं जाना, वे अपनी मृत्यु कैसे जान
सकेंगे? लेकिन जन्म हमें दूसरे बता देते हैं कि कभी पैदा हुए,
फलां तिथि, फलां तारीख में। और फिर कोई मरता
है चारों तरफ और हम सोचते हैं कि शायद हम भी मरेंगे। दूसरों के मरने की घटना को देख
कर हम अपने बाबत भी विचार कर लेते हैं कि हम भी मरेंगे। स्वयं के जन्म की खबर दूसरों
से दी गई सूचना और मरना एक अनुमान, इनफरेंस; चूंकि और कोई मरा है, इसलिए मैं भी मरूंगा।
लेकिन जब हम किसी आदमी को मरते देखते हैं, तब हम क्या देखते हैं?
सच में हम क्या देखते हैं? दक्षिण में एक
संन्यासी था ब्रह्मयोगी। उसने ऑक्सफोर्ड, सन और कलकत्ता विश्वविद्यालय
में तीन बार एक बहुत अदभुत प्रयोग किया। उसने मरने का प्रयोग किया। वह दस मिनट के लिए
मर जाता था, मर जाता था मेडिकली, जिसे चिकित्सक कह सकें कि मौत हो गई।
कलकत्ता युनिवर्सिटी में जब उसने प्रयोग किया, तो दस बड़े चिकित्सक मौजूद
थे। कलकत्ता युनिवर्सिटी के सबसे बड़े चिकित्सक, सर्जन,
सब मौजूद थे। और जब ब्रह्मयोगी दस मिनट के लिए मर गया, तो उन दसों ने दस्तखत किए हैं सर्टिफिकेट पर कि यह आदमी मर गया है,
इसकी हम गवाही देते हैं। सांस खो गई, हृदय
की धड़कनें खो गईं, खून की गति खो गई, मरने की सारी की सारी लक्षणा पूरी हो गई।
दस मिनट बाद वह आदमी वापस लौट आया, और उस आदमी ने कहा कि अगर
यह तुम्हारा सर्टिफिकेट सही है, तो मैं वापस नहीं लौट सकता।
और अगर मैं वापस लौट आया हूं तो तुमने अब तक जितने मृत्यु के सर्टिफिकेट दिए,
सब झूठे थे। क्योंकि इन दो के सिवाय और क्या मतलब होगा?
और उन दस डाक्टरों ने दूसरी बात भी लिख कर दी
है और वह लिख कर यह दी है कि जहां तक हम समझते हैं और जहां तक हमारा विज्ञान जानता
है, हम समझते
हैं कि यह आदमी मर गया था। लेकिन हम अपनी आंखों को तो झूठा नहीं कह सकते, और यह आदमी फिर जिंदा है।
और इस घटना ने सारी दुनिया के चिकित्सकों को
चिंता में डाल दिया था। क्योंकि इसका मतलब क्या होता है? जिसको हम मृत्यु कहते हैं,
वह कुछ कामों का बंद हो जाना है——श्वास नहीं चलती, खून नहीं बहता, हृदय नहीं धड़कता। अगर जिंदगी इन्हीं
चीजों का जोड़ है, तो जरूर मौत इनके बंद हो जाने से घटित हो
जाती। लेकिन किसने कहा कि जिंदगी इनका जोड़ है?
जिंदगी इससे
बहुत बड़ी बात है। जन्म पर जो शुरू होता है, मौत पर बंद हो
जाता है। लेकिन न तो जन्म पर जिंदगी शुरू होती है और न मौत पर जिंदगी समाप्त होती है।
जीवन रहस्य
ओशो
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