स्मृति है मन की, वह कहीं है नहीं। और
भविष्य केवल कल्पना है मन की, वह भी कहीं है नहीं। जो समय
है, वह तो सदा वर्तमान है। आपका कभी अतीत से कोई मिलना
हुआ? कि भविष्य से कोई मिलना हुआ? जब भी मिलना होता है, तो वर्तमान से होता है।
आप सदा अभी और यहीं, हियर एंड नाउ होते हैं। न तो आप पीछे
होते हैं, न आगे होते हैं। ही, पीछे
का खयाल आप में हो सकता है। वह आपके मन की बात है। और आगे का खयाल भी हो सकता है,
वह भी मन की बात है।
अस्तित्व वर्तमान है; मन अतीत और भविष्य है।
एक और मजे की बात है, अस्तित्व वर्तमान है सदा, और मन कभी वर्तमान नहीं है। मन कभी अभी और यहीं नहीं होता। इसे थोड़ा
सोचें।
अगर आप पूरी तरह से यहीं होने की कोशिश करें
इसी क्षण में, भूल जाएं सारे अतीत को, जो हो चुका, वह अब नहीं है; भूल जाएं सारे भविष्य को,
जो अभी हुआ नहीं है; सिर्फ यहीं रह जाएं,
वर्तमान में, तो मन समाप्त हो जाएगा।
क्योंकि मन को या तो अतीत चाहिए दौड़ने के लिए पीछे, स्मृति;
या भविष्य चाहिए, स्पेस चाहिए, जगह चाहिए। वर्तमान में जगह ही नहीं है। वर्तमान का क्षण इतना छोटा है
कि मन को फैलने की जरा भी जगह नहीं है। क्या करिएगा? अगर
अतीत छीन लिया, भविष्य छीन लिया, तो वर्तमान में मन को करने को कुछ भी नहीं बचता। इसलिए ध्यान की एक
गहनतम प्रक्रिया है और वह है, वर्तमान में जीना। तो ध्यान
अपने आप फलित होने लगता है, क्योंकि मन समाप्त होने लगता
है। मन बच ही नहीं सकता।
समय सिर्फ वर्तमान है। मन है अतीत और
भविष्य। अगर आप साक्षी होंगे, तो वर्तमान में हो जाएंगे। भविष्य और अतीत दोनों खो जाएंगे। क्योंकि
साक्षी तो उसी के हो सकते हैं, जो है। अतीत के क्या
साक्षी होंगे, जो है ही नहीं? भविष्य
के क्या साक्षी होंगे, जो अभी होने को है? साक्षी तो उसी का हुआ जा सकता है, जो है।
साक्षी होते ही मन समाप्त हो जाता है। इसलिए भविष्य का जो रस है, वह जरूर समाप्त हो जाएगा। लेकिन आपको पता ही नहीं है कि भविष्य का रस
तो समाप्त होगा, वर्तमान का आनंद आपके ऊपर बरस पड़ेगा। और
भविष्य का रस तो केवल आश्वासन है झूठा, वह कभी पूरा नहीं
होता।
इसे इस तरह सोचें। अगर आप पचास साल के हो गए
हैं, तो यह
पचास साल की उम्र आज से दस साल पहले भविष्य थी। और दस साल पहले आपने सोचा होगा,
न मालूम क्या—क्या आनंद आने वाला है! अब तो वह सब आप देख चुके
हैं। वह अभी तक आनंद आया नहीं।
बचपन से आदमी यह सोचता है, कल, कल, कल! और एक दिन मौत आ जाती है और आनंद नहीं
आता। लौटकर देखें, कोई एकाध क्षण आपको ऐसा खयाल आता है,
जिसको आप कह सकें वह आनंद था! जिसको आप कह सकें कि उसके कारण
मेरा जीवन सार्थक हो गया! जिसके कारण आप कह सकें कि जीवन के सब दुख झेलने योग्य
थे! क्योंकि वह एक आनंद का कण भी मिल गया, तो सब दुख चुक
गए। कोई नुकसान नहीं हुआ। क्या एकाध ऐसा क्षण जीवन में आपको खयाल है, जिसके लिए आप फिर से जीने को राजी हो जाएं! कि यह सारी तकलीफ झेलने को
मैं राजी हूं क्योंकि वह क्षण पाने जैसा था।
गीता दर्शन
ओशो
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