...वह किसी
मार्गदर्शक की तलाश में था..कोई उसकी प्रेरणा बन सके,
कोई उसे जीवन के रास्ते की दिशा बता सके। और आखिर उसे एक वृद्ध
संन्यासी मिल गया राह पर ही, और वह उस वृद्ध संन्यासी के साथ
सहयात्री हो गया।
लेकिन उस वृद्ध संन्यासी ने कहा कि मेरी एक शर्त है यदि मेरे
साथ चलना हो तो। और वह शर्त यह है कि मैं जो कुछ भी करूं, तुम उसके संबंध में धैर्य
रखोगे और प्रश्न नहीं उठा सकोगे। मैं जो कुछ भी करूं, उस
संबंध में मैं ही न बताऊं, तब तक तुम पूछ नहीं सकोगे। अगर
इतना धैर्य और संयम रख सको तो मेरे साथ चल सकते हो।
उस युवक ने यह शर्त स्वीकार कर ली और वे दोनों संन्यासी यात्रा
पर निकले। पहली ही रात वे एक नदी के किनारे सोए और सुबह ही उस नदी पर बंधी हुई नाव
में बैठ कर उन्होंने नदी पार की। मल्लाह ने उन्हें संन्यासी समझ कर मुफ्त नदी के
पार पहुंचा दिया। नदी के पार पहुंचते-पहुंचते युवा संन्यासी ने देखा कि बूढ़ा संन्यासी चोरी-छिपे नाव में छेद कर रहा है! नाव का मल्लाह तो नदी
के उस तरफ ले जा रहा है, और बूढ़ा संन्यासी नाव में छेद कर
रहा है! वह युवा संन्यासी बहुत हैरान हुआ, यह उपकार का बदला? मुफ्त में उन्हें नदी पार करवाई
जा रही है! उस गरीब मल्लाह की नाव में किया जा रहा यह छेद?
भूल गया शर्त को। कल रात ही शर्त तय की थी। नदी से उतर कर वे दो
कदम भी आगे नहीं बढ़े होंगे कि उस युवा संन्यासी ने पूछा कि सुनिए! यह तो आश्चर्य की बात है।
एक संन्यासी होकर, जिस मल्लाह ने प्रेम से नदी पार करवाई,
मुफ्त सेवा की सुबह-सुबह, उसकी नाव में छेद करने की बात मेरी समझ में नहीं आती, कि उसकी नाव में आप छेद करें! यह कौन सा बदला हुआ..नेकी के लिए बदी से, भलाई का बुराई से?
उस बूढ़े संन्यासी ने कहा,
शर्त तोड़ दी तुमने। सांझ को ही हमने तय किया था कि तुम पूछोगे नहीं।
मेरे से विदा हो जाओ। अगर विदा होते हो तो मैं कारण बताए देता हूं। और अगर साथ
चलना है तो आगे ध्यान रहे, दुबारा पूछा कि फिर साथ टूट
जाएगा।
युवा संन्यासी को ख्याल आया। उसने क्षमा मांगी। उसे हैरानी हुई
कि वह इतना भी संयम नहीं रख सका!
इतना भी धैर्य नहीं रख सका!
लेकिन दूसरे दिन ही फिर संयम टूटने की बात आ गई। वे एक जंगल से
गुजर रहे थे, और
उस जंगल में उस देश का सम्राट शिकार खेलने आया था। उसने संन्यासियों को देख कर
बहुत आदर दिया, उन्हें अपने घोड़ों पर सवार किया और वे सब
राजधानी की तरफ वापस लौटने लगे। वृद्ध संन्यासी के पास राजा ने अपने एकमात्र पुत्र
युवा राजकुमार को घोड़े पर बिठा दिया। घोड़े दौड़ने लगे राजधानी की तरफ। राजा के घोड़े
आगे निकल गए; दोनों संन्यासियों के घोड़े पीछे रह गए। बूढ़े
संन्यासी के साथ राजा का बच्चा भी बैठा हुआ है, वह एकमात्र
बेटा है उसका। जब वे दोनों अकेले रह गए; उस बूढ़े संन्यासी ने
उस युवा राजकुमार को नीचे उतारा और उसके हाथ को मरोड़ कर तोड़ दिया। और झाड़ी में
धक्का देकर अपने संन्यासी साथी से कहा, भागो जल्दी।
यह तो बरदाश्त के बाहर था। फिर भूल गई शर्त। उसने कहा, हैरानी की बात है यह!
जिस राजा ने हमारा स्वागत किया, घोड़ों पर
सवारी दी, महलों में ठहरने का निमंत्रण दिया, जिसने इतना विश्वास किया कि अपने बेटे के घोड़े पर तुम्हें बिठाया, उसके एकमात्र बेटे का हाथ मरोड़ कर तुम जंगल में छोड़ आए हो। यह क्या है?
यह मेरी समझ के बाहर है! मैं इसका उत्तर चाहता
हूं?
बूढ़े ने कहा,
तुमने फिर शर्त तोड़ दी। और मैंने कहा था दूसरी बार शर्त तोड़ोगे,
तो विदा हो जाएंगे। अब हम विदा हो जाते हैं, और
दोनों बातों का उत्तर मैं तुम्हें दिए देता हूं। जाओ लौट कर पता लगाओ तो तुम्हें
ज्ञात होगा कि वह नाव वह मल्लाह इसी किनारे पर रात छोड़ गया, और
रात उस गांव पर डाका डालने वाले लोग उसी नाव पर सवार होकर डाका डालेंगे। मैं उसमें
छेद कर आया हूं। उस गांव में डाका बच जाएगा। और राजा के लड़के को मैंने हाथ मरोड़ कर
छोड़ दिया है जंगल में। तुम पता लगाना, यह राजा तो अत्यंत
दुष्ट और क्रूर और आततायी है, इसका लड़का उससे भी क्रूर और
आततायी होने को है। लेकिन उस राज्य का एक नियम है कि गद्दी पर वही बैठ सकता है,
जिसके सब अंग ठीक हों। मैंने उसके हाथ को मरोड़ दिया है, वह अपंग हो गया, अब वह गद्दी पर बैठने का अधिकारी
नहीं रहा। सैकड़ों वर्षों से इस देश की प्रजा पीड़ित है, वह
पीड़ित परंपरा से मुक्त हो सकेगी।
अब तुम विदा हो जाओ। मैं क्षमा चाहता हूं। तुम्हें जो प्रकट
दिखाई पड़ता है, वही
दिखाई पड़ता है; जो अप्रकट है, जो
अदृश्य है, वह दिखाई नहीं पड़ता। और जो आदमी प्रकट पर ही ठहर
जाता है, दि अॅाबियस, वह जो सामने
दिखाई पड़ता है, उसी पर रुक जाता है, वह
कभी सत्य की खोज नहीं कर सकता है। मैं तुमसे क्षमा चाहता हूं; हमारे रास्ते अलग जाते हैं।
मुझे पता नहीं यह कहानी कहां तक सच है, मुझे यह भी पता नहीं कि उस
नाव से डाकू हमला करते या न करते, मुझे यह भी पता नहीं कि वह
राजकुमार बड़ा होकर आततायी होता या नहीं होता, लेकिन यह कहानी
मैंने किसी दूसरे ही अर्थ से कहनी चाही है। और वह यह है कि जिंदगी में एक तो प्रकट
अर्थ होता है और एक अप्रकट अर्थ होता है। जीवन के समस्त तथ्यों के पीछे एक तो वह
अर्थ होता है, जो ऊपर से दिखाई पड़ता है; और एक वह अर्थ होता है, जो अदृश्य होता है। जो ऊपर
के ही अर्थ को देखते हैं, वे धार्मिक नहीं हैं; जो भीतर के अदृश्य अर्थ को देख पाते हैं, वे धार्मिक
हैं।
महावीर या महाविनाश
ओशो
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