ज्ञान रंजन! शादी जैसी खतरनाक चीज हमेशा दूसरों की मर्जी से
करनी चाहिए। उसमें एक लाभ है कि कल तुम कम से कम दोष तो सदा दूसरों को दे सकोगे!
जो खुद की मर्जी से करता है, बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है; दोष देने को भी कोई
नहीं मिलता!
इसीलिए तो समझदार लोगों ने तय किया था कि मां-बाप विवाह कर दें।
क्योंकि दोष तो आखिर देना ही पड़ेगा। एक तो शादी की मुसीबत, और जिम्मा भी अपना! भार
बहुत हो जाएगा। मां-बाप भार को बांट लेते हैं। वे कहते हैं, गाली
तुम हमको दे देना। जब क्रोध आए और जब जीवन बहुत बोझिल होने लगे, तो कम से कम इतनी तो राहत होगी कि खुद इस झंझट में हम नहीं पड़े थे;
ये मां-बाप बांध गए पीछे।
शादी है तो उपद्रव!
मुल्ला नसरुद्दीन को तार मिला। उसकी पत्नी हजऱ्यात्रा पर गई थी।
रास्ते में ही मर गई, तो वहां से तार आया कि नसरुद्दीन, क्या करना है?
पत्नी को मुसलमानी ढंग और रिवाज से गड़ा दें? लेकिन
हमने सुना है कि तुमने गैरिक वस्त्र पहन लिए हैं और तुम संन्यासी हो गए हो,
तो ऐसा तो नहीं कि तुम चाहते हो कि पत्नी को अग्नि में जलाया जाए?
या कुछ हिंदू नदियों में भी बहा देते हैं लाशों को। तो तुम क्या
चाहते हो--पत्नी गड़ाई जाए, जलाई जाए, कि
बहाई जाए?
मुल्ला नसरुद्दीन ने तार दिया: डू आल दि थ्री। डोंट टेक एनी
चांस! तीनों करो, क्योंकि कोई भी अवसर बचने का देना ठीक नहीं!
ज्ञान रंजन,
ऐसे खतरे में उतर रहे हो, समझदारों की सलाह से
उतरना अच्छा। खतरा तो सुनिश्चित है।
ढब्बूजी चंदूलाल से बोले,
मुबारक हो चंदूलाल, आज तुम्हारी जिंदगी का
सबसे खुशकिस्मत दिन है।
मगर मेरी शादी तो कल होने वाली है, चंदूलाल ने कहा।
इसीलिए तो आज कहा न,
ढब्बूजी बोले। बस आज तुम्हारे जीवन का सबसे खुशकिस्मत दिन है! फिर
तड़फोगे, फिर रोओगे, फिर याद करोगे!
चंदूलाल की पत्नी बीमार थी, चंदूलाल भी बीमार था। दोनों ठीक होते नजर न आते
थे। डाक्टर चंदूलाल को देखने आया था। डाक्टर ने चंदूलाल की जांच-पड़ताल के बाद कहा,
चंदूलाल, तुम्हारे पीछे कोई पुरानी बीमारी पड़ी
हुई है, जो तुम्हारे स्वास्थ्य व मानसिक शांति को नष्ट किए
दे रही है!
चंदूलाल ने कहा,
डाक्टर साहब, जरा धीरे! क्योंकि जिसकी आप बात
कर रहे हैं, वह बगल के कमरे में बिस्तर पर सो रही है!
शादी करनी ही क्यों?
विवाह भी एक जराजीर्ण धारणा है। ज्ञान रंजन, प्रेम
हो किसी से, उसके साथ जीओ। अगर प्रेम न हो किसी से, तो अकेले जीओ। प्रतीक्षा करो।
अकेले लोग जी नहीं सकते;
और किसी के साथ भी नहीं जी सकते! अकेले में अकेलापन काटता है। किसी
के साथ दूसरे की मौजूदगी झंझट बन जाती है। जो विवाहित हैं, वे
सोचते हैं कि धन्य हैं अविवाहित! और जो अविवाहित हैं, वे
सोचते हैं, धन्य हैं विवाहित!
यह दुनिया बड़ी अदभुत है। यहां जिसके पास जो है, उसी से दुखी है! और जो नहीं
है, जो किसी और के पास है, उससे उसकी
आशा अटकी है।
तुम्हारे मन में शादी का सवाल उठा, यह सवाल ही अर्थहीन है।
प्रेम करो! और प्रेम ही अगर विवाह बन जाए, तो ठीक। अगर प्रेम
ही तुम्हें ऐसी प्रतीति दे कि किसी के साथ जीवन भर रहना सुखद होगा, तो जीवन भर किसी के साथ रहो।
मृत्योर्मा अमृतम गमय
ओशो
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