मैंने सुना,
मुल्ला नसरुद्दीन एक राह से गुजर रहा था और एक बड़े पहलवान जैसे
दिखाई पड़नेवाले आदमी ने जोर से उसकी पीठ पर धक्का मारा, धौल
जमा दी। वह चारों खाने चित्त जमीन पर गिर पड़ा। उठ करखडा हुआ। बड़ा नाराज था। लेकिन
नाराजगी एक क्षण में हवा हो गई—देखा कि पहलवान खड़ा है,
एक झंझट की बात है। फिर भी लेकिन आदमी तो कुशल है, चालाक है। उसने कहा : 'महानुभाव! यह आपने मजाक में
किया है या गंभीरता से?' उस पहलवान ने कहा मजाक में नहीं,
गंभीरता से किया है। मुल्ला ने कहा फिर ठीक है, क्योंकि ऐसी मजाक मुझे पसंद नहीं। अगर गंभीरता से किया है, फिर कोई हर्जा नहीं। और चल पड़ा। अब झंझट लेनी ठीक नहीं है। इतना बहाना
काफी है अपने अहंकार को बचाने को।
आदमी चालाक है बहुत। मजा यह है कि अहंकार को तो रोज ही बिखराव
के क्षण झेलने पड़ते हैं। तुम गौर करो! तुम कुछ चाहते हो, कुछ होता है। फिर भी तुम
समझा लेते हो। कह देते हो : 'दूसरा बेईमान था, इसलिए जीत गया; हम ईमानदार थे, इसलिए हार गए।’ अहंकार की हार तुम कभी स्वीकार नहीं
करते। तुम कहते हो : 'सारी दुनिया मेरे खिलाफ है, इसलिए। अकेला पड़ गया हूं इसलिए। या मैंने पूरा उपाय ही कहां किया था;
मैं तो ऐसे ही गैर—गंभीरता में ले रहा था।’
तुम कुछ न कुछ मार्ग खोज लेते हो और अहंकार को बचा लेते हो।
अगर तुम जीवन को गौर से पढ़ो, जीवन के पाठ को ठीक से पढ़ो, तो जीवन रोज तोड़ रहा है। क्योंकि जीवन को तुम्हारे चुनावों से कुछ लेना देना नहीं। तुम्हारे चुनाव वैयक्तिक हैं; इस समग्र
को उनसे कोई प्रयोजन नहीं है। तुम्हारे चुनाव अगर कभी कभी हल
भी हो जाते हैं तो संयोग समझना। यह संयोग की बात है कि तुमने कुछ ऐसी बात चुन ली
जिस तरफ अस्तित्व अपने आप जा रहा था, बस। भाग्यवशात! बिल्ली
निकलती थी और छींका टूट गया। यह संयोग की बात समझना; कोई
बिल्ली के लिए छींका नहीं टूटता है। यह बिलकुल सांयोगिक था कि तुमने चुन ली ऐसी
बात जो होने जा रही थी। लेकिन जब तुम्हारी चुनी हुई बात हो जाती है, तब तुम बड़ी अकड़ से भर जाते हो कि देखा, करके दिखा
दिया! और जब तुम्हारी बात टूटती है... और तुम्हारी बात सौ में निन्यानबे मौकों पर
टूटती है! क्योंकि संयोग तो कभी सौ में एकाध हो सकते हैं, अपवाद
हो सकते हैं। उन निन्यानबे मौकों पर तुम कुछ न कुछ तर्कजाल फैला कर अपने को समझा
लेते हो। कहीं दोष देकर किसी तरह अपने को निवृत्त कर लेते हो।
जीवन को कोई ठीक से देखेगा तो अहंकार निर्मित ही नहीं हो सकता; बिखराव का तो सवाल ही दूर
है। और अगर तुमने अष्टावक्र की बात मान कर चुनावरहितता का प्रयोग किया तो निश्चित
बिखराव होगा। लेकिन एक बात खयाल रखना, तुम्हारा नहीं है
बिखराव। तुम्हें जैसा परमात्मा ने बनाया है, वैसे का तो कोई
बिखराव नहीं है। परमात्मा ने तुम्हें अहंकार शून्य बनाया; अहंकार
तुम्हारा ही निर्मित किया हुआ है। वही टूटेगा। जो तुमने बनाया है, वही टूटेगा। जो तुमने नहीं बनाया है, वह कभी टूटने
वाला नहीं है। ही, अहंकार बिखर जाएगा। और जब अहंकार बिखरेगा
तभी तुम्हें आत्मा का पहली दफे पता चलेगा। और वही वास्तविक बात है।
अष्टावक्र महागीता
ओशो
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