शास्त्रों ने संसार को क्या कहा है, शास्त्र पढ़ कर तुम न जान सकोगे।
संसार में जाकर ही जान सकोगे कि शास्त्र सच कहते कि झूठ कहते। कसौटी कहा है?
परीक्षा कहां होगी?
शास्त्र संसार को विषवत कहते हैं, ठीक। शास्त्र कहते हैं, इतना
तो जान लिया। ठीक कहते हैं कि
गलत कहते हैं,
यह कैसे जानोगे? शास्त्र में लिखा है, इससे ही ठीक थोड़े ही हो जाएगा। सिर्फ लिखे मात्र होने से कोई चीज ठीक थोड़े
ही हो जाती है। लिखे शब्द के दीवाने मत बनो। कुछ पागल ऐसे हैं कि लिखे शब्द के दीवाने
हैं; जो चीज लिखी है, वह ठीक होनी चाहिए।
एक सज्जन एक बार मेरे पास आए। उन्होंने कहा, जो आपने कहा, वह शास्त्र में नहीं लिखा है, ठीक कैसे हो सकता है?
तो मैंने कहा : मैं लिख कर दे देता हूं। और क्या करोगे? लिखे पर भरोसा है, तो छपवाओ। छपवा कर दे दूं कहो। हस्तलिखित
पर भरोसा हो तो हस्तलिखित लिख कर दे दूं। और क्या चाहते हो? शास्त्र
कैसे बनता है? किसी के लिखने से बनता है। किसी ने तीन हजार साल
पहले लिख दिया, इसलिए ठीक हो गया और मैं आज लिख रहा हूं इसलिए
गलत हो जाएगा? तीन हजार साल के फासले से कुछ गलत—सही होने का संबंध है? फिर तो तीन हजार साल पहले चार्वाकों
ने भी शास्त्र लिखा है, फिर तो वह भी ठीक हो जाएगा। तीन हजार
साल पहले से थोड़े ही कोई चीज ठीक होती है।
मुल्ला नसरुद्दीन,
चुनाव आया तो बड़ा नाराज हुआ। उसकी पत्नी का नाम वोटर—लिस्ट में नहीं था। लिया पत्नी को साथ और पहुंचा आफिसर के पास—चुनाव आफिसर के पास। और उसने कहा कि देखें, मेरी पत्नी
जिंदा है और वोटर—लिस्ट में लिखा है कि मर गई। झगड़ने को तैयार
.था। पत्नी भी बहुत नाराज थी। आफिसर ने वोटर—लिस्ट देखी और कहा,
भई लिखा तो है कि मर गई। तो पत्नी बोली कि जब लिखा है तो ठीक ही लिखा
होगा। अरे लिखनेवाले गलत थोड़े ही लिखेंगे! घर चलो। जब लिखा है तो ठीक ही लिखा होगा!
कुछ लोग लिखे पर बिलकुल दीवाने की तरह भरोसा करते हैं। शास्त्र में
लिखा है, इससे क्या
होता है? इससे इतना ही पता चलता है कि जिसने शास्त्र लिखा होगा,
उसने जीवन का कुछ अनुभव किया था, अपना अनुभव लिखा
है। तुम भी जीवन के अनुभव से ही जांच पाओगे कि सही लिखा है कि गलत लिखा है। कसौटी तो
सदा जीवन है। वहीं जाना पड़ेगा। आखिरी परीक्षा तो वहीं होगी।
इसीलिए मैं तुमसे कहता हूं : भागो मत! शास्त्र की सुन कर मत भाग
जाना, नहीं तो तुम्हारा
शास्त्र कभी पैदा न होगा। अपना शास्त्र जन्माओ। अपने अनुभव को पैदा करो। क्योंकि तुम्हारा
शास्त्र ही तुम्हारी मुक्ति बन सकता है। किसी ने तीन हजार साल पहले लिखा था,
उसकी मुक्ति हो गई होगी। इससे तुम्हारी थोड़े ही हो जाएगी। उधार थोड़े
ही होता है ज्ञान। इतना सस्ता थोड़े ही होता है ज्ञान। जलना पड़ता है, कसना पड़ता है। हजार ठोकरें खानी पड़ती हैं। तब कहीं जीवन के गहन अनुभव से पककर,
निखर कर प्रतीतिया जगती हैं।
तो जाओ जीवन में,
भागो मत! शास्त्र कहता है, खयाल में रखो। मगर शास्त्र
को मान ही मत लेना; नहीं तो जीवन में जाने का कोई प्रयोजन न रह
जाएगा। जरा सी कोई कठिनाई आएगी, तुम कहोगे : देखो शास्त्र में
लिखा है कि जीवन विषवत। इतनी जल्दबाजी मत करना। जीवन में गहरे जाओ। जीवन के सब रंग
परखो। जीवन बड़ा सतरंगा है। उसकी सब आवाजें सुनो। सब कोणों से जांचो—परखो, सब तरफ से पहचानो। जब तुम जीवन को पूरा देख लो,
तब तुम भी जानोगे कि हा, जीवन विषवत है और उस जानने
में ही तुम्हारा रूपांतरण हो जाएगा। अभी तुमने शास्त्र से पकड़ लिया, इससे क्या हुआ? तुमने जान लिया जीवन विषवत है,
लेकिन इससे हुआ क्या? सुन लिया, पढ़ लिया, याद कर लिया, दोहराने
लगे। हुआ क्या? क्या छूटा? क्या बदला?
क्रोध वहीं का वहीं है। काम वहीं का वहीं है। लोभ वहीं का वहीं है। धन
पर पकड़ वहीं की वहीं है। सब वहीं के वहीं हैं। और जीवन विषवत हो गया। और तुम वैसे के
वैसे खड़े हों—बिना जरा से रूपांतरण के।
नहीं, इतनी जल्दी मत करो। और फिर मैं तुमसे यह भी कहता हूं कि यह बात सच है कि जीवन
विषवत है। एक और बात भी है जो तुमसे मैं कहता हूं वह भी शास्त्रों में लिखी है कि जीवन
अमृत है। वेद कहते हैं : 'अमृतस्य पुत्र:। तुम अमृत के पुत्र
हो!' जीवन अमृत है। शास्त्रों में यह भी लिखा है कि जीवन प्रभु
है, परमात्मा है।
तो जरूर जीवन और जीवन में थोड़ा भेद है। एक जीवन है जो तुमने अंधे
की तरह देखा, वह
विषवत है; और एक जीवन है जो तुम आंख खोल कर देखोगे, वह अमृत है। एक जीवन है जो तुमने माया, मोह, मद, मत्सर के पर्दे से देखा। और एक जीवन है जो तुम ध्यान
और समाधि से देखोगे। जीवन तो वही है। एक जीवन है जो तुमने एक विकृति का चश्मा लगा कर
देखा। जीवन तो वही है। चश्मा उतार कर देखोगे तो अमृत को पाओगे। इसी जीवन में परमात्मा
को छुपे भी तो लोगों ने देखा। यहां पत्ते—पत्ते में वही है,
ऐसा कहने वाले वचन भी तो शास्त्र में हैं। यहां कण—कण में वही है। यहां सब तरफ वही है। पत्थर—पहाड़ उससे
भरे हैं, कोई स्थान उससे खाली नहीं है। वही पास है, वही दूर है। यह भी तो शास्त्र में लिखा है।
अब मजा है कि तुम शास्त्र में से भी वही चुन लेते हो, जो तुम चुनना चाहते हो। तुम्हारी
बेईमानी हइ की है। तुम शास्त्रों से भी वही कहलवा लेते हो जो तुम कहना चाहते हो। अभी
तुमने पूरा जीवन कहां देखा! अभी कंकड़—पत्थर बीने हैं। जैसे कोई
आदमी कुआ खोदता है तो पहले कंकड़—पत्थर हाथ लगते हैं, कूड़ा—कबाड़ हाथ लगता है, कचरा हाथ
लगता है; फिर खोदता चला जाए तो धीरे— धीरे
अच्छी मिट्टी हाथ लगती है, फिर खोदता चला जाए तो गीली मिट्टी
हाथ लगती है; फिर खोदता चला जाए तो जल के स्रोत आ जाते हैं,
गंदा जल हाथ लगता है; फिर खोदता चला जाए तो स्वच्छ
जल हाथ आ जाता है। ऐसा ही जीवन है। खोदो!
अष्टावक्र महागीता
ओशो
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