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Monday, April 16, 2018

तुम कहते हो : परमात्मा से मिलना है, प्यास है!


पुराने शास्त्र कहते हैं : आदमी चौरस्ता है। जैन शास्त्रों में बड़ा महत्वपूर्ण एक सिद्धात है आदमी के चौरस्ता होने का। कहते हैं कि देवता को भी अगर मोक्ष जाना हो तो फिर आदमी होना पड़ता है, क्योंकि आदमी चौरस्ते पर है। देवताओं ने तो एक रास्ता पकड़ लिया, स्वर्ग पहुंच गए। स्वर्ग तो टर्मिनस हैविक्टोरिया टर्मिनस। वहां तो गाड़ी खतम। वहा से आगे जाने का कोई उपाय नहीं है, वहां तो रेल की पटरी ही खतम हो जाती है। अब अगर कहीं और जाना हो, मोक्ष जाना हो, तो लौटना पड़ेगा आदमी पर। आदमी जंक्शन है। तो अदभुत बात कहते हैं जैन शास्त्र कि देवताओं को भी अगर मोक्ष जाना हो...। किसी न किसी दिन जाना ही होगा। क्योंकि जैसे आदमी दुख से ऊब जाता है, वैसे ही सुख से भी ऊब जाता है। पुनरुक्ति उबा देती है। जैसे आदमी दुख से ऊब जाता है ध्यान रखनासुख ही सुख मिले, उससे भी ऊब जाता है। सच तो यह कि दुखसुख दोनों मिलते रहें तो इतनी जल्दी नहीं ऊबता, थोड़ा कंधे बदलता रहता हैकभी सुख, कभी दुखफिर स्वाद आ जाता है। दुख आ गया, फिर सुख की आकांक्षा आ जाती है। फिर सुख आया, फिर थोड़ा स्वाद लिया, फिर दुख आ गया, ऐसी यात्रा चलती रहती है। लेकिन स्वर्ग में तो सुख ही सुख है। स्वर्ग में तो सभी को सुख के कारण डायबिटीज हो जाता होगाशक्कर ही शक्कर, शक्कर ही शक्कर! तुम जरा सोचो कैसी मितली और उलटी नहीं आने लगती होगी! सुख ही सुख, शक्कर ही शक्कर! लौट कर आना पड़ता है एक दिन।


आदमी चौराहा है। सब रास्ते तुमसे जाते हैंनर्क, स्वर्ग, मोक्ष, संसार! सब रास्ते तुमसे जाते हैं। और तुम बैठे चौरस्ते पर पूछते हो कि रास्ता कहां है? न जाना हो न जाओ, कम से कम ऐसे उलटेसीधे सवाल तो न पूछो। न जाना हो तो कोई तुम्हें भेज भी नहीं सकता। न जाना हो तो कम से कम ईमानदारी तो बरतो यह कहो कि हमें जाना नहीं है इसलिए नहीं जाते; जब जाना होगा जाएंगे।


लेकिन आदमी बेईमान है। आदमी यह भी मानने को तैयार नहीं है कि मैं ईश्वर की तरफ अभी जाना नहीं चाहता। आदमी बड़ा बेईमान है! हाथ फैलाता संसार में है और कहता है, जाना तो ईश्वर की तरफ चाहते हैं, लेकिन करें क्या, रास्ता नहीं मिलता!


तो पतंजलि ने क्या दिया है? तो अष्टावक्र ने क्या दिया है? तो बुद्धमहावीर ने क्या दिया? रास्ते दिए हैं। सदियों से तीर्थंकर और बुद्धपुरुष रास्ते दे रहे हैं; तुम कहते हो, रास्ता क्या है! इतने रास्तों में से तुमको नहीं मिलता; एकाध रास्ता मैं और बता दूंगा, तुम सोचते हो, इससे कुछ फर्क पड़ेगा? यही तुम बुद्ध से पूछते रहे, यही तुम महावीर से पूछते रहे, यही तुम मुझसे पूछ रहे हो, यही तुम सदा पूछते रहोगे। समय के अंत तक तुम यही पूछते रहोगे, रास्ता नहीं है।


लेकिन बेईमानी कहीं गहरी है : तुम जाना नहीं चाहते। पहले वहीं साफसुथरा कर लो। पहले प्यास को बहुत स्पष्ट कर लो।


मेरे अपने अनुभव में ऐसा है : जो आदमी जाना चाहता है, उसे पूरा संसार भी रोकना चाहे तो नहीं रोक सकता। तुम खोजना चाहो, खोज लोगे। और जब तुम्हारी प्यास बलवती होती है, लपट की तरह जलती है तो सारा अस्तित्व तुम्हें साथ देता है। अभी तुम खोजते तो धन हो और बातें परमात्मा की करते हो; खोजते तो पद हो, बातें परमात्मा की करते हो, खोजते कुछ हो, बातें कुछ और करते हो। बातों के जरिए तुम एक धुआं पैदा करते हो अपने आसपास, जिससे दूसरों को भी धोखा पैदा होता है, खुद को भी धोखा पैदा होता है। दूसरों को हो, इसकी मुझे चिंता नहीं; लेकिन खुद को धोखा पैदा हो जाता है। तुमको खुद लगने लगता है कि तुम बड़े धार्मिक आदमी हो, कि देखो कितनी चिंता करते हो, सोचविचार करते हो!



तुम कहते हो : परमात्मा से मिलना है, प्यास है! 


नहीं, अपनी प्यास को फिर जांचना। प्यास नहीं है, अन्यथा तुम मिल गए होते। परमात्मा और तुम्हारे बीच प्यास की कमी ही तो बाधा है। जलती प्यास ही जोड़ देती है। ज्वलंत प्यास ही पथ बन जाती है।


अष्टावक्र महागीता 

ओशो

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