मैं नहीं कहता कि आप खोजें। मैं नहीं कहता कि आप खोजें। लेकिन
फिर आप क्या खोजेंगे? आप कहते हैं हम सत्य को क्यों खोजें? मैं नहीं कहता
आप खोजें। लेकिन फिर आप क्या खोजेंगे? संतुष्टि खोजेंगे;
संतुष्टि को खोज-खोज कर पाएंगे कि नहीं मिलती, फिर क्या करेंगे? फिर सत्य को खोजेंगे।
संतुष्टि जहां असफल हो जाती है वहीं सत्य की खोज शुरू हो जाती
है। सुख की खोज जहां असफल हो जाती है,
पूर्णतया असफल हो जाती है, वहीं सत्य की खोज
शुरू हो जाती है। इसमें कोई किसी के सिखाने की बात नहीं। मैं किसी से नहीं कहता कि
सत्य खोजें। मैं तो यही कहता हूं कि जो आपको ठीक लगे, उसी को
खोजें। लेकिन आंखें खुली रखें, अंधे होकर न खोजें। जो आपको
ठीक लगे--वासना ठीक लगे, वासना खोजें; सुख
ठीक लगे, सुख खोजें, लेकिन आंख खुली
रखें। अगर आंख खुली रही, तो बहुत दिन तक सुख नहीं खोज सकते
हैं।
रामकृष्ण परमहंस के जीवन में एक अदभुत घटना है। केशवचंद्र, बंगाल के एक बड़े विचारक थे,
तार्किक थे, बड़े बुद्धिमान आदमी थे। बंगाल में
या इस भारत में कम ही ऐसे लोग पैदा किए जिनकी ऐसी प्रतिभा और विचार थे। बड़े
तर्ककुशल थे, जिस बात में लग जाएं, जिस
बात का समर्थक करें, उसका, उसका विरोध
करने की सामर्थ्य किसी में बंगाल में नहीं थी। बड़ा अदभुत पैना तर्क था। लोगों ने
केशवचंद्र को कहा कि कभी रामकृष्ण के पास चलें, वे बड़ी ईश्वर
की, बड़ी आत्मा की बातें करते हैं, जरा
उनका खंडन करें तो मजा आ जाए। केशव ने कहा: चलो।
सारे कलकत्ते में खबर फैल गई। जो भी विचारशील उत्सुक लोग थे वे
दक्षिणेश्वर में जाकर इकट्ठे हो गए,
फजीहत देखने को। और रामकृष्ण बेपढ़े-लिखे, रामकृष्ण
गांव के गंवार थे। केशव प्रतिभा का धनी था, तर्ककुशल था।
लोगों ने कहा: बहुत आनंद आएगा; रामकृष्ण की क्या-क्या फजीहत
होगी, देखेंगे।
बहुत लोग इकट्ठे हो गए। रामकृष्ण को लोगों ने कहा कि बड़ी
मुश्किल होने वाली है, केशव आते हैं विवाद करने को। और बहुत लोग देखने को आते हैं।
रामकृष्ण खूब हंसने लगे,
उन्होंने कहा: हम भी देखेंगे। फजीहत होगी तो मजा हमको भी आएगा। जब
इतने लोगों को फजीहत में मजा आएगा, तो हमको क्यों नहीं आएगा,
हमको भी बहुत मजा आएगा। उन लोगों ने कहा: ये तो हैं पागल, ये समझते नहीं कि मतलब क्या है।
केशव आए, बड़ी भीड़ साथ आई। कलकत्ते के बड़े विचारशील, तार्किक,
सारे लोग इकट्ठे थे। रामकृष्ण के भक्त बड़े घबड़ाए हुए। रामकृष्ण बड़े
प्रसन्न थे कि जब इतने लोग आ रहे हैं, तो जरूर कोई मजे की
बात होगी ही। फिर केशव ने विवाद शुरू किया। केशव ने कहा: ईश्वर-वगैरह कुछ भी नहीं
है। और बड़े तर्क दिए। जब केशव तर्क देते थे, तर्क पूरा होता
था, रामकृष्ण खड़े होकर केशव को गले लगा लेते थे कि कितना
अदभुत, कितनी अदभुत बात कही। एक-दो दफे हुआ, केशव हतप्रभ हो गए कि यह तो बड़ा मुश्किल मामला है। यह आदमी विरोध करता
नहीं, उलटा हमको गले लगाता है। और लोग जो देखने आए थे मजा,
वे भी निराश हो गए कि इसमें तो कोई मतलब ही नहीं, यहां एक ही पार्टी है, दूसरी पार्टी तो मौजूद नहीं
है। वह बड़ी उदासी फैल गई। प्रसन्न अकेले रामकृष्ण थे। जो सब प्रसन्न होने आए थे,
सब दुखी हो गए। वे जो सब प्रसन्न होने आए थे, वे
सब दुखी हो गए। प्रसन्न अकेला एक ही आदमी था, वह रामकृष्ण
था। केशवचंद्र विरोध का तर्क देते, वे खड़े होकर गले लगाते और
कहते, कैसा, कैसा अदभुत! जब सारी बातें
पूरी हो गईं, केशव को कुछ कहने को भी न सूझा कि अब क्या करें
क्या न करें? दूसरा आदमी विरोध करे, तो
बात आगे बढ़े। बात आगे बढ़े कैसे? तो रामकृष्ण ने कहा: क्यों,
क्या बात पूरी हो गई? केशव ने कहा: हां,
जो मुझे कहना था, मैंने कह दिया।
रामकृष्ण खड़े हुए,
बोले, अब मैं कुछ कहूं: हाथ जोड़े भगवान के और
कहा: कैसा अदभुत है परमात्मा! ऐसी बुद्धि भी तू पैदा करता है! और केशव को कहा:
विश्वास मान केशव, तू ज्यादा दिन नास्तिक नहीं रह सकेगा। ऐसी
बुद्धि जहां है, वहां नास्तिकता कितनी देर टिकेगी? तू ज्यादा दिन नास्तिक नहीं रह सकेगा। ऐसी बुद्धि जहां है, ऐसा विवेक जहां है, वहां तू ज्यादा देर तक नास्तिक
नहीं रह सकेगा। अदभुत है, मैं तो खूब प्रसन्न हो गया।
परमात्मा के गुण मैंने बहुत देखे--फूलों में देखे, वृक्षों
में देखे, पहाड़ों में देखे, नदियों में
देखे; आज मनुष्य में देखा है। ऐसी प्रतिभा, बिना परमात्मा के ऐसी प्रतिभा हो ही कैसे सकती है?
रामकृष्ण ने कहा: ऐसी प्रतिभा हो तो बहुत दिन नास्तिक नहीं रह
सकते। मैं भी आपसे कहता हूं, विवेक हो, तो बहुत दिन संतुष्टि की खोज नहीं कर
सकते। सत्य की खोज अनिवार्य है। तो मैं नहीं कहता कि सत्य की खोज करें। मैं तो
इतना ही कहता हूं, विवेक जाग्रत हो, होश
जाग्रत हो। फिर जो आपको करना है करें। जहां जाना है जाएं। जो आपका मन हो करें। कोई
अंतर नहीं पड़ता कि आप कहां जाते हैं। मैं आपसे नहीं कहता कि मंदिर जाएं, मैं नहीं कहता कि कोई सत्य की खोज मैं कोई विशेष काम करें। मैं इतना ही
कहता हूं, होश जाग्रत रखें।
होश जाग्रत होगा,
तो आज नहीं कल, आपकी जो संतोष की, सुख की, वासना की खोज है वह व्यर्थ हो जाएगी और उसकी
जगह स्थापित हो जाएगी सत्य की खोज। वह आपके अनुभव से स्थापित होती है किसी की
शिक्षा और उपदेश से नहीं।
साक्षी की साधना
ओशो
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