..ये दो विपरीत मार्ग मनुष्य के भीतर
हैं। यदि इनको तत्व से कोई जान ले, तो इन दोनों का आकर्षण खो
जाता है। और जब दोनों का ही आकर्षण खो जाता है, जब दोनों ही
नहीं पुकारते, जब दोनों ही नहीं बुलाते, जब दोनों की विपरीतता मिट जाती है, और दोनों ही एक
सिक्के के पहलू मालूम पड़ने लगते हैं-उसी क्षण व्यक्ति परम मुक्ति को उपलब्ध हो
जाता है; उसी क्षण। उस क्षण के बाद उसके लिए संसार में कोई
भी अर्थ नहीं है। उसके बाद उसके लिए मोह, वासना और तृष्णा का
कोई उपाय नहीं है।
इसलिए कृष्ण कहते हैं,
तत्व से जानता हुआ कोई भी योगी फिर मोहित नहीं होता है। इस कारण हे
अर्जुन, तू सब काल में योग-युक्त हो।
सब काल में,
सब समय में, हर स्थिति में योग-युक्त हो। यहां
योग-युक्त का अर्थ दोनों अतियों के बीच मध्य में थिर हो जाना है, दो अतियों के बीच मध्य में थिर हो जाना है, निर्मोह
हो जाना है। जो पुकारते हैं आकर्षण के बिंदु बहुत आसान है एक से दूसरे पर हट जाना।
एक आदमी बहुत भोजन करता है, उसे उपवास आकर्षित करने लगता है।
इसलिए उपवास जहां-जहां करवाया जाता है, वहां अक्सर ज्यादा
भोजन करने वाले पेटू लोग चिकित्सा के लिए इकट्ठे होते हैं। आपके उरली काचन में आप
सदा पाएंगे, वे ही लोग वहां चिकित्सा के लिए आएंगे, जो ज्यादा खा गए हैं, ओवर फेड!
यह बड़े मजे की बात है कि जो भी समाज धनी होता है; वह ज्यादा खाने लगता है,
तो उस समाज में उपवास सहज बन जाता है। हिंदुस्तान में जैनों के समाज
में उपवास भारी चीज है। और उसका कुल कारण यह नहीं कि उपवास भारी चीज है, उसका कुल कारण यह है कि हिंदुस्तान में ओवर फेड, ज्यादा
खाने वाला समाज जैनों का है। जहां भी ज्यादा भोजन होगा, वहा
उपवास आकर्षित करने लगेगा।
यह बड़े मजे की बात है कि गरीब समाज का जब धार्मिक दिन आएगा, तो उस दिन वे अच्छा भोजन
बनाएंगे। और अमीर समाज का जब धार्मिक दिन आएगा, तो उस दिन वे
उपवास करेंगे, दि अपोजिट! अगर गरीब आदमी का धार्मिक दिन आएगा,
मुसलमान का अगर धार्मिक दिन आएगा, तो वह नए,
ताजे और रंगीन कपड़े पहनकर सड़क पर निकलेगा। और अगर अमीर धार्मिक का
धर्म का दिन आ जाए, तो वह सादगी वरण करेगा, उस दिन वह सादा होगा। वह जो विपरीत है, वह हमारे मन
में जगह बना लेता है। वह जो विपरीत है, वह हमें खींचता रहता
है। इसलिए ज्यादा खाने वाला उपवास में उत्सुक हो जाएगा। ज्यादा पहनने वाला नग्न
होने की भी तैयारी दिखा सकता है।
लेकिन विपरीत पर चले जाने से अंत नहीं होता। विपरीत पर जो गया
है, वह मोह के
ही बंधन में गया है। इसलिए उलटे को मत चुनना। उलटे का चुनाव खतरनाक है। अगर चुनना
ही हो, तो दोनों के मध्य को चुनना। दि एग्जेक्ट मिडिल इज दि
प्याइंट आफ फ्रीडम। दो अतियों के बीच जो बिलकुल ठीक मध्य है, वही मुक्त होने की जगह है।
ओशो
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