एक कहानी कहना चाहता हूं। कहानी बिलकुल ही झूठी है। लेकिन जो वह
कहती है वह एकदम सत्य है, सौ प्रतिशत सत्य है। दूसरे महायुद्ध के बाद की बात है। परमात्मा ने युद्ध
में मनुष्य को मनुष्य के साथ जो करते देखा था उससे वह बहुत चिंतित था। लेकिन चिंता
उस दिन उसकी परम हो गई थी जिस दिन उसके दूतों ने बताया कि मनुष्य-जाति अब तीसरे
महायुद्ध की तैयारी में संलग्न है। परमात्मा की आंखों में मनुष्य की इस
विक्षिप्तता से आंसू आ गए थे और उसने तीन बड़े राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को अपने
पास बुलवाया था। इंग्लैंड, रूस और अमरीका के प्रतिनिधि बुलाए
गए थे। परमात्मा ने उनसे कहाः मैं यह सुन रहा हूं कि तुम अब तीसरे महायुद्ध की
तैयारी में लग गए हो? क्या दूसरे महायुद्ध से तुमने कोई पाठ
नहीं सीखा है?
मैं वहां होता तो कहता कि मनुष्य-जाति सदा ही पाठ सीखती रही है।
पहले महायुद्ध से दूसरे महायुद्ध के लिए पाठ सीखा था! अब दूसरे से तीसरे के लिए
ज्ञान पाया है! लेकिन मैं वहां नहीं था और इसलिए जो परमात्मा से नहीं कह सका, वह आपसे कहे देता हूं।
परमात्मा ने अपनी सदैव की आदत के अनुसार फिर उनसे कहाः मैं
तुम्हें एक-एक मनचाहा वरदान दे सकता हूं,
यदि तुम यह आश्वासन दो कि इस आत्मघाती वृत्ति से बचोगे। दूसरा
महायुद्ध ही काफी है। मैं मनुष्य को बना कर बहुत पछता लिया हूं, अब बुढ़ापे में मुझे और मत सताओ। क्या तुम्हें पता नहीं है कि मनुष्य को
बनाकर मैं इतने कष्टों में पड़ गया कि फिर उसके बाद मैंने कुछ भी निर्मित नहीं किया
है?
मैं वहां होता तो कहता,
हे परमात्मा! यह बिलकुल ही ठीक है। दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर
पीता है। लेकिन मैं वहां नहीं था!
अमरीका के प्रतिनिधि ने कहाः हे परमपिता! हमारी कोई बड़ी
आकांक्षा नहीं है। एक छोटी सी हमारी कामना है। वह पूरी हो जाए तो तीसरे महायुद्ध
की आवश्यकता ही नहीं है।
परमात्मा क्षण भर को प्रसन्न दिखाई पड़ा था। लेकिन जब अमरीका के
प्रतिनिधि ने कहा, पृथ्वी तो हो लेकिन पृथ्वी पर रूस का कोई नामोनिशान न रह जाए--बस छोटी सी
और एकमात्र यही हमारी कामना है। तो वह पुनः ऐसा उदास हो गया था जैसा कि मनुष्य को
बना कर भी उदास न हुआ होगा। निश्चय ही मनुष्य अपने बनाए जाने का पूरा-पूरा बदला ले
रहा था!
फिर परमात्मा ने रूस की तरफ देखा। रूस के प्रतिनिधि ने कहाः
कामरेड! पहली बात तो यह कि हम मानते नहीं कि आप हैं। बरसों हुए हमने अपने महान देश
से आपको सदा के लिए विदा कर दिया है। वह भ्रम हमने तोड़ दिया है जो कि आप थे। लेकिन
नहीं, हम पुनः
आपकी पूजा कर सकते हैं, और उजड़े और वीरान पड़े चर्चों और
मंदिरों तथा मस्जिदों में फिर आपको रहने की भी आज्ञा दे सकते हैं। पर एक छोटा सा
काम आप भी हमारा कर दो। दुनिया के नक्शे पर हम अमरीका के लिए कोई रंग नहीं चाहते
हैं। ऐसे यदि यह आपसे न हो सके तो चिंतित होने की भी कोई बात नहीं। देर-अबेर हम
स्वयं बिना आपकी सहायता के भी यह कर ही लेंगे। हम बचें या न बचें लेकिन यह कार्य
तो हमें करना ही है। यह तो एक ऐतिहासिक अनिवार्यता है जिसे कि सर्वहारा के हित में
हमें करना ही पड़ेगा। मनुष्य का भविष्य अमरीका की मृत्यु में ही निहित है।
और फिर आंसुओं में डूबी आंखों से परमात्मा ने इंग्लैंड की ओर
देखा। और इंग्लैंड के प्रतिनिधि ने क्या कहा?
क्या आप कल्पना भी कर सकते हैं? नहीं। नहीं,
उसकी कल्पना कोई नहीं कर सकता है। क्योंकि वह बात ही ऐसी अद्वितीय
है।
इंग्लैंड के प्रतिनिधि ने कहाः हे महाप्रभु, हमारी अपनी कोई आकांक्षा
नहीं है। बस दोनों मित्रों की आकांक्षाएं एक ही साथ पूरी कर दी जाएं, तो हमारी आकांक्षा अपने आप ही पूरी हो जाती है।
ऐसी स्थिति है। क्या यह कहानी झूठी है? लेकिन इससे सच्ची कहानी और
क्या हो सकती है? और यह किसी एक राष्ट्र की बात नहीं है,
सभी राष्ट्रों की बात है। राष्ट्रीयता जहां भी है, वहां युद्ध है। वह ज्वर ही तो अंततः युद्ध लाता है।
और यह राष्ट्रों की ही बात नहीं है। व्यक्ति-व्यक्ति की भी यही
बात है। क्योंकि जो ज्वर व्यक्ति-व्यक्ति में न हो, वह राष्ट्रों में भी कैसे हो सकता है? व्यक्ति ही तो है इकाई, उस सबकी, जो कि मनुष्य के जगत में कहीं भी घटित होता है।
गंगा चाहे प्रेम की हो,
चाहे घृणा की; गंगोत्री तो सदा व्यक्ति ही है।
और चाहे जीवन के विराट आकाश में घृणा के ऐसे बादल घिरे हों कि सारी पृथ्वी ही उनसे
ढंक गई हो, तो भी व्यक्ति के छोटे से हृदय में ही खोजना होगा
उस मूल उत्स को जहां से क्रोध, घृणा, वैमनस्य,
महत्वाकांक्षा, दुख, चिंता
और संताप के छोटे-छोटे वाष्प खंड धीरे-धीरे उठ कर सारे आकाश को घेर लेते हैं। और
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की, घृणा और हिंसा की जब मुठभेड़
होती है तो उनमें जोड़ नहीं, गुणन हो जाता है। यह गुणन फैलता
ही जाता है और फिर मृत्यु के जो बादल आकाश में छा जाते हैं, वे
सब व्यक्तियों की हिंसा के जोड़ से बहुत ज्यादा होते हैं। लेकिन यह गुणन प्रक्रिया
कोई चिंता की बात नहीं है, क्योंकि जो घृणा के संबंध में हुआ
है, वही प्रेम के संबंध में भी हो सकता है।
शिक्षा में क्रांति
ओशो
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