चंदूलाल! आप यहां कैसे आ गए? और ढब्बू जी को भी साथ ले आए हैं या नहीं?
गलत दुनिया में आ गए। यहां देशों इत्यादि की चर्चा नहीं होती।
आदमी के द्वारा नक्शे पर खींची हुई लकीरों का मूल्य ही क्या है? यहां तो पृथ्वी एक है। यहां
कैसा भारत और कैसा पाकिस्तान और कैसा चीन? इस तरह की बातें
सुननी हों तो दिल्ली जाओ। यहां कहां आ गए? और यहां ज्यादा
देर मत टिकना। यहां की हवा खराब है! कहीं यहां ज्यादा देर टिक गए, नाचने-गाने-गुनगुनाने लगे, तो भूल जाओगे भारत
इत्यादि।
जरूरत क्या है भारत की प्रशंसा की? और भारत की प्रशंसा क्यों
चाहते हो? अहंकार को तृप्ति मिलती है। पाकिस्तान की प्रशंसा
क्यों नहीं? प्रश्न ऐसा क्यों नहीं पूछा कि आप पाकिस्तान की
महानता के संबंध में कुछ कभी क्यों नहीं कहते? पाकिस्तान कभी
भारत था, अब भारत नहीं है। कभी बर्मा भी भारत था, अब भारत नहीं है। कभी अफगानिस्तान भी भारत था, अब
भारत नहीं है। और जो अभी भारत है, कभी भारत रहे, न रहे, क्या पक्का है? तो पानी
पर लकीरें क्यों खींचनी? कौन है भारत? किसको
कहो भारत? रोज की राजनीति है, बदलती
रहती है, बिगड़ती रहती है। आदमी लकीरें खींचता रहता है। आदमी
बड़ा दीवाना है। लकीरें खींचने में बड़ा उसका रस है। और जमीन अखंड है। फिर भी उसको
खंडों में बांटता रहता है।
हम तो यहां पूरी पृथ्वी के गीत गाते हैं। पूरी पृथ्वी के ही
क्यों, पूरे
विश्व के गीत गाते हैं। चांदत्तारों की जरूर यहां बात होती है। सूर्यास्त की,
सूर्योदयों की जरूर यहां बात होती है। वृक्षों की और फूलों की,
नदी और पहाड़ों की, पशुओं और पक्षियों की,
और मनुष्यों की जरूर यहां बात होती है। लेकिन यह कोई राजनैतिक अखाड़ा
नहीं है, जहां हम भारत की प्रशंसा करें।
और भारत की प्रशंसा के पीछे तुम चाहते क्या हो, चंदूलाल? कि तुम्हारी प्रशंसा हो। कि देखो, भारत कितना महान
देश है कि चंदूलाल भारत में पैदा हुए। तुम अगर कहीं और पैदा होते, तो वह देश महान होता। तुम जहां पैदा होते, वही देश
महान होता। सभी देशों को यही खयाल है।
जब अंग्रेज पहली दफा चीन पहुंचे, तो चीनी शास्त्रों में लिखा गया कि ये बिलकुल
बंदर की औलाद हैं। ये आदमी हैं ही नहीं। ये पक्के बंदर हैं। इनकी शक्ल-सूरत तो
देखो! इनके ढंग!
और अंग्रेजों ने क्या लिखा चीनियों के बाबत? कि इनको आदमी मानने में बड़ी
कठिनाई है। आंखें ऐसी कि पता ही नहीं चलता कि खुली हैं कि बंद! भौंहें नदारद!
दाढ़ी-मूंछ, अगर दाढ़ी में चार-छह बाल हैं तो गिनती कर लो। ये
आदमी किस तरह के हैं? इनको हो क्या गया? नाकें चपटी, गाल की हड्डियां उभरी। ये तो एक तरह के
केरीकेचर, व्यंग्य-चित्र। जैसे आदमी को उलटा-सीधा बना दो।
कुछ भूल-चूक हो गई।
मगर यह सभी के साथ है। जर्मन समझते हैं कि वे सर्वश्रेष्ठ। सारी
दुनिया पर उनका हक होना चाहिए। और भारतीय समझते हैं कि वे पुण्यभूमि। यहीं सारे
अवतार पैदा हुए। सारे अवतारों ने इसी पुण्यभूमि को चुना--राम ने, कृष्ण ने, बुद्ध ने और महावीर ने। और कहीं पैदा होने को उनको जगह न मिली। और अगर तुम
यहूदियों से पूछो, तो यहूदी कहते हैं कि यहूदी ही ईश्वर के
द्वारा चुनी गई कौम हैं। ईश्वर ने यहूदियों को चुना है। और अगर ईसाइयों से पूछो,
तो वे कहते हैं, ईसा के सिवाय और कोई ईश्वर का
असली बेटा नहीं है। बाकी तो सब नकली तीर्थंकर, नकली पैगंबर,
नकली अवतार--इनका कोई मूल्य नहीं है। हर देश, हर
जाति अपनी प्रशंसा के गीत गाती है। यह बात ही मूढ़तापूर्ण है। यह अहंकार का ही
प्रच्छन्न रूप है।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन
ओशो
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