मैंने सुना है,
एक बार एक आदमी को सत्य मिल गया। शैतान के शिष्य भागे हुए शैतान के पास
गए और उन्होंने कहा, क्या सो रहे हो, एक
आदमी को सत्य मिल गया है! सब मुश्किल पड़ जाएगी। शैतान ने कहा, घबराओ मत, जाकर गांव में खबर कर दो कि एक आदमी को सत्य
मिल गया है, किसी को अनुयायी बनना हो तो बन जाओ। शैतान के शिष्यों
ने कहा, इससे क्या फायदा होगा; हम ही प्रचार
करें?
शैतान ने कहा कि मेरे हजारों साल का अनुभव यह है कि अगर किसी आदमी
को सत्य मिला हो और उस आदमी को और उसके सत्य को खत्म करना हो तो अनुयायियों की भीड़
इकट्ठी कर दो। तुम जाओ, गांव-गांव में डुंडी पीट दो कि किसी आदमी को अगर सत्य गुरु चाहिए हो तो सत्य
गुरु पैदा हो गया है। तो जितने मूढ़ होंगे वे भाग कर उसके आस-पास इकट्ठे हो जाएंगे और
एक बुद्धिमान आदमी हजार मूढ़ों के बीच में क्या कर सकता है!
और यही हुआ। शैतान के शिष्यों ने गांव-गांव में खबर कर दी। जितने
बुद्धिहीन जन थे वे सब इकट्ठे हो गए। और वह आदमी भागने लगा कि मुझे बचाओ। लेकिन उसे
कौन बचाता! शिष्यों ने उसे जोर से पकड़ लिया। दुश्मन से आप बच सकते हैं, शिष्यों से कैसे बच सकते हैं?
इसलिए अगर कभी किसी को सत्य मिल जाए तो अनुयायियों से सावधान रहना,
शिष्यों से बचना। वे हमेशा तैयार हैं, शैतान उनको
सिखा कर भेजता है।
गांधी जिंदगी भर चिल्लाते रहे कि मेरा कोई वाद नहीं है और अब गांधीवादी
उनके वाद को सुव्यवस्था देने की कोशिश में लगे हैं। वे रिसर्च कर रहे हैं, शोध-केंद्र बना रहे हैं,
स्कॉलरशिप्स दे रहे हैं, और कह रहे हैं कि गांधी
के वाद का रेखाबद्ध रूप तय करो। गांधी के वाद को खड़ा किया जा रहा है। गांधी जिंदगी
भर कोशिश करते रहे कि मेरा कोई वाद नहीं है।
सच बात तो यह है कि किसी भी विवेकशील आदमी का कोई वाद नहीं होता।
विवेकशील आदमी प्रतिपल अपने विवेक से जीता है, वाद के आधार पर नहीं। वाद के आधार पर वे जीते हैं
जिनके पास विवेक नहीं होता है।
वाद का क्या मतलब होता है?
वाद का मतलब होता है,
तैयार उत्तर। जिंदगी रोज बदल जाती है, जिंदगी रोज
नए सवाल पूछती है और वादी के पास तैयार उत्तर होते हैं। वह अपनी किताब में से उत्तर
लेकर आ जाता है कि यह उत्तर काम करना चाहिए। जिंदगी रोज बदल जाती है, वादी बदलता नहीं, वादी ठहर जाता है।
जो महावीर पर ठहर गए हैं वे ढाई हजार वर्ष पहले ठहर गए हैं। ढाई
हजार वर्ष में जिंदगी कहां से कहां चली गई और वादी महावीर पर ठहरा है। वह कहता है, हम महावीर को मानते हैं। जो
कृष्ण पर ठहरा है वह साढ़े तीन, चार हजार वर्ष पहले ठहरा है। जो
क्राइस्ट पर ठहरा है वह दो हजार साल पहले ठहरा है। वे वहां ठहर गए हैं जिंदगी वहां
नहीं ठहरी है, जिंदगी आगे बढ़ती चली गई है।
जिंदगी प्रतिपल बदल जाती है। जिंदगी रोज नए सवाल लाती है और वादी
के पास बंधे हुए रेडीमेड उत्तर हैं। रेडीमेड कपड़े हो सकते हैं, रेडीमेड उत्तर नहीं हो सकते।
वह बंधे हुए उत्तर को लेकर नए सवालों के सामने खड़ा हो जाता है। वह कहता है कि हमारे
उत्तर सही हैं। तब ये उत्तर हारते चले जाते हैं। इसलिए वादी व्यक्ति के पास निरंतर
हार आती है, कभी जीत नहीं आती। वादी हमेशा हार जाते हैं।
एक एक कदम
ओशो
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