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Saturday, November 25, 2017

कभी कभी ऐसा लगता है जैसे कि आप एक स्वप्न हैं....



यह सच है। अब तुम्हें और गहरा करना है इस अनुभूति को, ताकि कभी तुम अनुभव कर सको कि तुम भी एक स्वप्न हो। और गहरे उतरो इस अनुभूति में। एक घड़ी आती है जब तुम जान लेते हो कि जो भी है, सब सपना ही है। जब तुम यह जान लेते हो कि जो भी है सब सपना है, तो तुम मुक्त हो जाते हो।


यही तो अर्थ है हिंदुओं की माया की धारणा का। वह यह नहीं कहती कि सब कुछ झूठ है; वह इतना ही कहती है कि सब कुछ सपना है। सवाल सच या झूठ का नहीं है। तुम क्या कहोगे सपने को? वह सच है या झूठ? यदि वह झूठ है, तो कैसे दिखाई पड़ता है वह? यदि वह सच है, तो कैसे मिट जाता है वह इतनी आसानी से?  तुम अपनी आंखें खोलते हो और वह कहीं नहीं होता। सपना जरूर कहीं सच और झूठ के बीच होगा। उसमें जरूर कुछ न कुछ अंश होगा सच्चाई का और उसमें जरूर कुछ न कुछ अंश होगा झूठ का। सपना भी होता तो है, सपना एक सेतु है, न वह इस किनारे पर है और न उस किनारे पर है; न इधर है, न उधर है।

 
यदि तुम सपने को सच मान लेते हो, तो तुम सांसारिक हो जाओगे। यदि तुम सपने को झूठ मान लेते .हो तो तुम बच कर भागने लगोगे हिमालय की ओर; तुम असांसारिक हो जाओगे। और दोनों ही दृष्टिकोण अतियां हैं। सपना ठीक मध्य में है. वह सच और झूठ, दोंनों है। उससे भागने की कोई जरूरत नहीं है, वह एक झूठ है। उसे पकड़ने की भी कोई जरूरत नहीं है, वह एक झूठ है। सपनों के पीछे जिंदगी गंवाने की कोई जरूरत नहीं है, वे झूठ हैं। और उन्हें त्याग देने की भी कोई जरूरत नहीं है क्योंकि कैसे तुम झूठ का त्याग कर सकते हो? उनका उतना भी अर्थ नहीं है।

और इसी समझ से संन्यास की मेरी धारणा का जन्म होता है. तुम सपने को यह जानते हुए जीते हो कि वह एक सपना है। तुम संसार में यह जानते हुए जीते हो कि वह एक सपना है। तब तुम संसार में होते हो, लेकिन संसार नहीं होता तुम में। तुम संसार में चलते हो, लेकिन संसार नहीं चलता है तुम में। तुम बने रहते हो संसार में। असल में, तुम अब उसका और भी आनंद लेते हो क्योंकि एक सपना ही है; तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। तब तुम गंभीर नहीं होते। असल में, तुम खेलने लगते हो बच्चों की भांति क्योंकि सपना ही है। तुम उसका आनंद ले सकते हो, उसका मजा ले सकते हो। अपराधी अनुभव करने जैसा कुछ नहीं है उसमें। एक उत्सव है जीवन का। संसार में रह कर भी संसार के न होना, संसार में जीना और फिर भी अलग थलग रहना; क्योंकि जब तुम जानते हो कि यह सपना है, तो तुम बिना किसी अपराध भाव के उसका आनंद ले सकते हो, और तुम बिना किसी समस्या के उससे अलिप्त रह सकते हो।


पतंजलि योगसूत्र

ओशो

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