बहुत प्रसिद्ध फकीर हुआ,
यहूदी बालसेन। बालसेन के शिष्य जो भी बालसेन बोलता था, लिखते थे। बालसेन अकसर उनसे कहता कि लिख लो, जो
मैंने कहा ही नहीं। और यह भी लिख लेना, तुम वही लिख रहे हो,
जो मैंने कहा नहीं है।
बालसेन को समझा भी तो नहीं जा सकता। क्योंकि समझ शब्दों से नहीं
आती, तुम्हारे
अनुभव से आती है। तुम वही तो सुनोगे जो तुम सुन सकते हो।
एक दिन ऐसा हुआ कि बालसेन बोलता ही गया। सुननेवाले थक गए। और
थोड़ी ही देर में सुनने वालों के हाथ से सब सूत्र खो गए। यह समझ में ही न आया कि वह
क्या बोलता है? कहां
बोल रहा है? क्यों बोल रहा है? फिर
धीरे-धीरे लोगों के काम का समय हो गया। मंदिर खाली होने लगा। लोगों की दुकानें
खुलने का वक्त आ गया। आफिस, दफ्तर लोग भागे। आखिर में बालसेन
अकेला रह गया। जब आखिरी आदमी जा रहा था तो उसने कहा कि, 'रुक!
क्या मेरी जान लेगा?' उस आदमी ने कहा, कि
'मैं क्यों आपकी जान लूंगा? मैं तो जा
रहा हूं। सब लोग जा चुके हैं।'
बालसेन ने कहा कि 'मेरी हालत तुमने वैसी कर दी, जैसे कोई आदमी सीढ़ी पर
चढ़े। तुम्हें जहां तक दिखाई पड़ा, तुम सीढ़ी को सम्हाले रहे।
लेकिन यह सीढ़ी वहां है, जो ज्ञात से अज्ञात तक जाती है। और
जैसे ही मैं तुम्हारी आंखों के पार हुआ, तुम सीढ़ी छोड़कर जाने
लगे। मेरी जान लोगे? मैं तो चढ़ गया अज्ञात पर और तुम सब भागे
जा रहे हो। सीढ़ी सम्हालने वाला तक कोई नहीं। तो तू जब तक रुका था, तो मैंने सोचा कम से कम एक तो मौजूद है, जो सीढ़ी को
सम्हाले रखेगा। तब तक मैं कुछ न बोला। कम से कम मुझे नीचे तो उतर आने दे!'
बुद्ध जहां से बोलते हैं वह सीढ़ी का वह हिस्सा है, जो अज्ञात से टिका है। तुम
जहां खड़े हो वह सीढ़ी का वह हिस्सा है, जो ज्ञात की पृथ्वी से
टिका है। तुम्हारे बीच संवाद तो होना असंभव है। बुद्ध जो कहेंगे, तुम वह न समझ पाओगे। तुम जो समझोगे, वह बुद्ध ने कभी
कहा नहीं।
इसलिए महावीर या बुद्ध के पास जब भी कोई आता तो वे कहते हैं, इसके पहले कि मैं बोलूं,
तू सुनने की कला सीख ले। मेरे बोलने से कुछ सार नहीं है। क्योंकि
मैं जो भी कहूंगा वह गलत समझा जाएगा। और गलत समझा गया ज्ञान अज्ञान से भी ज्यादा
खतरनाक है। अज्ञानी तो विनम्र होता है, भयभीत होता है,
डरता है; सोचता है कि मुझे कुछ पता नहीं है,
लेकिन अर्ध-ज्ञानी अहंकार से भर जाता है। और उसे लगता है, मुझे पता है। और एक दफे जिसे खयाल हो गया मुझे पता है और पता नहीं है,
उसका भटकना सुनिश्चित है।
इस बात को हम ठीक से समझ लें। 'सम्यक श्रवण' का, 'राईट लिसनिंग' का क्या अर्थ होगा? सम्यक श्रवण का अर्थ होगा, जब कोई बोलता हो, तब तुम सिर्फ सुनो। तब तुम सोचो मत। क्योंकि तुमने सोचा कि एक धुआं खड़ा हो
गया। तुमने सोचा, कि तुम्हारे विचार मिश्रित होने लगे। तुमने
सोचा कि तुम्हारा मन खिचड़ी की भांति हो गया। तुमने सोचा, कि
तुम सुनोगे कैसे?
मन एक साथ एक ही काम कर सकता है। मन की क्षमता दो काम एक साथ
करने की नहीं है। और जब कभी तुम दो काम भी करते हो, तब भी तुम समझ लेना; एक
क्षण मन एक काम करता है फिर तुम दूसरा काम करते हो। फिर एक काम करता है। लेकिन एक
क्षण में मन एक ही काम करता है। तुम बदल सकते हो। तुम मुझे सुनो एक क्षण में फिर
एक क्षण सोचो; फिर मुझे सुनो, फिर
सोचो। ऐसा तुम कर सकते हो, लेकिन जितनी देर तुम सोचोगे,
उतनी देर तुम मुझे चूक जाओगे। इसका यह अर्थ नहीं है कि आवाज
तुम्हारे कानों में न पड़ेगी, आवाज तो पड़ेगी; कान झंकृत होंगे, शब्द सुने जाएंगे, लेकिन समझे न जा सकेंगे।
तुम्हारे घर में आग लग गई हो, रास्ते पर कोई गीत गा रहा हो, क्या तुम वह गीत सुन सकोगे? गीत सुनाई तो पड़ेगा लेकिन
तुम न सुन सकोगे। तुम वहां मौजूद नहीं। तुम्हारे घर में आग लगी है, तुम चिंता से भरे हो; तुम्हारे मन में लपटें उठ रही
हैं। भविष्य, अतीत सब सामने खड़ा हो गया है; अब क्या होगा? तुम भयातुर हो, तुम
पत्ते की तरह कंप रहे हो तूफान में; तुम गीत सुन सकोगे?
गीत कान पर पड़ेगा, आवाज तो टकराएगी, ध्वनि तो सुनी जाएगी, लेकिन अगर बाद में कोई तुमसे
पूछेगा कि 'कौन-सा गीत गाया गया था?' तुम
कहोगे, 'कैसा गीत! किसने गाया?'
घर में आग लग गई है,
और तुम भागे जा रहे हो, रास्ते पर लोग नमस्कार
करेंगे, क्या तुम उनकी नमस्कार सुन सकोगे? यह भी हो सकता है कि तुम जवाब भी दो, फिर भी तुमने
सुना नहीं। यह भी हो सकता है कि हाथ यंत्रवत उठें और नमस्कार का उत्तर दे दें। आदत
के कारण एक आटोमेटिक, यंत्रवत तुम व्यवहार कर लो, लेकिन नमस्कार न तो तुमने सुनी, न तुमने जवाब दिया।
तुम सोए हुए थे। तुम वहां थे ही नहीं।
सम्यक श्रवण का अर्थ होगा,
जब बोला जाए तब तुम चुप रहो। तुम्हारे भीतर की जो अंतर्वाता है,
वह मौन हो जाए। तुम्हारे भीतर कोई तरंगें न चलती हों। तब तुम्हारा
सुनना शुद्ध होगा। तभी बुद्ध कहेंगे, झेन फकीर कहेंगे कि
तुमने सुना, तुमने कानों का उपयोग किया। तुम जब देखते हो तब
तुम देखते ही नहीं हो, तुम जो देखते हो, उसके ऊपर प्रक्षेप भी करते हो; प्रोजेक्ट भी करते
हो।
बिन बाती बिन तेल
ओशो
No comments:
Post a Comment