Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Wednesday, November 22, 2017



मुल्ला नसरुद्दीन को एक रात एक आदमी ने एकांत में पकड़ लिया। छाती पर पिस्तौल लगा दी और कहा कि रख दो जो भी तुम्हारे पास हो। चाबी भी दे दो। या तो सब दे दो जो है और नहीं तो जान से हाथ धो बैठोगे।

मुल्ला ने कहा कि भई, एक दो मिनट सोचने दो। वह आदमी भी थोड़ा हैरान हुआ। उसने कहा, मैंने बहुत लोगों को लूटा, मगर जहां जिंदगी और मौत का सवाल हो वहां कोई सोचने की बात नहीं करता।

मगर मुल्ला ने कहा कि बिना सोचे मैं कोई काम नहीं करता। आंख बंद करके सोचा और फिर कहा कि ठीक है, तुम गोली मारो। वह आदमी और चौंका। पहली दफा जिंदगी में उसके हाथ ढीले पड़े कि इस आदमी को मारना कि नहीं मारना! उसने कहा कि भई मुझे भी सोचने दो, तुम आदमी कैसे हो! अरे थोड़े से पैसों के पीछे...!
 
मुल्ला ने कहा कि सवाल यह है कि पैसे मैंने बचाए हैं बुढ़ापे के लिए, पैसे चले गए तो फिर मैं मुश्किल में पडूंगा। अरे जिंदगी का क्या है, यूं मुफ्त में मिली थी, मुफ्त में जाएगी, एक दिन जानी ही है।


मैं तत्वज्ञानी हूं, मुल्ला ने कहा। मैं कोई छोटा-मोटा ऐसा-वैसा ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे, उनमें मेरी गिनती मत करना। मैं तत्वज्ञानी हूं। ब्रह्मज्ञान जानता हूं। अरे जीवन का क्या, यह तो खेल है, अभिनय है। यह तो लीला है भगवान की। दिया है, फिर मिलेगा। मगर जो मैंने बुढ़ापे के लिए रखा है बचाकर, वह मैं नहीं दे सकता। वह लीला नहीं है, वह खेल नहीं है। वह मामला गंभीर है। और फिर जीवन मुफ्त मिला है, मुफ्त तो जाना ही है। आज नहीं कल खतम होना है। ले ले, तू ही ले ले।
 
वह आदमी, कहते हैं, भाग गया। ऐसे आदमी को क्या करना! अरे मारे को क्या मारना! मरे-मराए को क्या मारना! यह तो स्वर्गीय है ही!

कंजूसी न करना।


कंजूस बाप को
मरती हुई हालत में देखकर
बेटे ने बुलवा लिया
दो गुना बड़ा कफन
और हुआ प्रसन्न
कि बाप जी ने जीवन-भर
बड़ा कष्ट पाया
न तरीके से पहना, न खाया
मैं आज कम से कम
जी भर
उढ़ा तो सकूंगा कफन
परंतु कान में पड़ते ही
लड़के की बात
बाप जी ने खोली
धीरे से आंख
और बोले
कि बेटे!
ठीक नहीं है तेरी मर्जी
क्यों करता है फिजूल-खर्ची
इस कफन के आधे से
मेरी लाश ढंकना
और आधा
जरा सम्हाल कर रखना
कपड़ा है
रखा रहेगा
बेकार नहीं जाएगा
तू जब मरेगा
तेरे काम आएगा

हंसो, जी भर कर हंसो। मेरा आश्रम हंसता हुआ होना चाहिए। हंसी यहां धर्म है। यह आनंद-उत्सव है। यहां उदास होकर नहीं बैठना है। यह कोई उदासीन साधुओं की जमात नहीं। उदासीनता को मैं रोग मानता हूं, साधुता नहीं--रुग्णता! जो उदासीन हैं, उनकी मानसिक चिकित्सा की जरूरत है। प्रफुल्लता स्वास्थ्य का लक्षण है! प्रफुल्लित होओ और धीरे-धीरे जैसे-जैसे तुम्हारे जीवन में हंसी की किरणें फैलेंगी, चकित होओगे कि कितना हंसने को है! खुद के जीवन में हंसने को है, औरों के जीवन में हंसने को है! चारों तरफ हंसने ही हंसने की घटनाएं हैं। वह तो हम देखते नहीं, कंजूस हैं, कि कहीं हंसना न पड़े। तो हमने देखना ही बंद कर दिया है। नहीं तो चारों तरफ प्रतिपल क्या-क्या नहीं घट रहा है! हर चीज हंसने की है। कोई ऐसे ही थोड़े कि कभी-कभी कोई केले के छिलके पर फिसल कर गिर पड़ता है, हर आदमी यहां केले के छिलके पर फिसल रहा है! सड़कें केलों के छिलकों से भरी पड़ी हैं। यहां तुम हर आदमी को गिरते देखोगे।


और ऐसा नहीं है कि दूसरे ही गिर रहे हैं! दूसरों के लिए हंसे तो वह हंसी ठीक नहीं, काफी नहीं, पूरी नहीं, सम्यक नहीं। तुम अपने को भी गिरते देखोगे। और हंसी तो तुम्हें तब आएगी कि उन्हीं छिलकों पर गिर रहे हो जो तुम्हीं ने बिछाए थे, कोई और भी नहीं बिछा गया। उन्हीं गङ्ढों में गिर रहे हो, जो तुम्हीं ने बिछाए थे।

प्रीतम छवि नैन बसी 

ओशो

No comments:

Post a Comment

Popular Posts