यदि तुम इससे बाहर आते
हो, तो तुम
कुत्ता बन जाओगे। यदि तुम खो जाते हो, पूरी तरह खो जाते हो फिर कोई बचता ही नहीं जो इसके बाहर आ सकता हो तो तुम
परमात्मा हो जाओगे। इसलिए मुझसे मत पूछो कि इससे बाहर कैसे निकलूं। यह अहंकार पूछ
रहा है कि इससे बाहर कैसे निकलूं। तुम्हें पता नहीं चल रहा है कि तुम कहां हो।
सुंदर है, शुभ है। थोड़े और खो जाओ और 'ना कुछ' हो जाओ। और मिट जाओ।
तुम थोड़े कम खोए हो : आधा कुत्ता ही खोया है।
भारत में हमारे पास मनुष्य के विकास के संबंध में सुंदर कथाएं
हैं। सर्वाधिक अर्थपूर्ण और सुंदर कथाओं में से एक है परमात्मा के अवतार की कथा, नरसिंह अवतार की कथा आधा मनुष्य, आधा सिंह। हिंदू अवतारों में परमात्मा
का एक अवतार है नरसिह आध मनुष्य, आधा
सिंह। यही है खोई हुई अवस्था। जब तुम्हें लगता है कि तुम आधे कुत्ते हो और आधे
परमात्मा; जब तुम्हें लगता है कि न तुम कुत्ते हो और न
परमात्मा, हर चीज धुंधली धुंधली है,
सीमाएं अस्पष्ट हैं; जब तुम स्वयं को सेतु के
मध्य में अनुभव करते हो; तो यह नरसिंह की अवस्था है. आधा
मनुष्य, आधा सिंह।
यदि तुम इससे बाहर आने की कोशिश करते हो, तो तुम पूरे सिंह हो जाओगे,
क्योंकि तब तुम और ज्यादा सघन हो जाओगे। तुम पीछे लौट जाओगे। इससे
बाहर आने का अर्थ है पीछे हट जाना। वह कोई प्रगति न होगी, विकास
न होगा। उसकी जरूरत नहीं है। और खो जाओ, और मिट जाओ। तुम
इतने भयभीत क्यों हो इस स्थिति से? क्योंकि तुम खोया—खोया अनुभव कर रहे हो; तुम्हारी पहचान अब स्पष्ट
नहीं है, तुम कौन हो एकदम पक्का नहीं है, सीमाएं खो रही हैं; तुम्हारा चेहरा एकदम पहचान में
नहीं आ रहा है। तुम्हारा जीवन प्रवाह जैसा हो गया है। अब वह पत्थर जैसा नहीं है।
वह पानी की भांति ज्यादा है; कोई रूप नहीं, आकार नहीं। तुम भयभीत हो जाते हो।
तुम्हारे भीतर जो भयभीत है, वह कुत्ता है। क्योंकि यदि तुम थोड़ा और आगे
बढ़ते हो तो कुत्ता पूरी तरह खो जाएगा, मिट जाएगा।
पहली बात, जब कोई यात्रा आरंभ करता है, तो वह बर्फ की भांति
होता है, एकदम ठंडा, पत्थर जैसा होता
है। जब थोड़ा आगे बढ़ता है, तो वह पिघलता है, बर्फ पानी बन जाती है। यह होती है धुंधली धुंधली
अवस्था, नरसिंह की अवस्था, आधी आधी। यदि तुम और आगे जाते हो, तो तुम
वाष्पीभूत हो जाओगे, मिट जाओगे। न केवल तुम पानी हो जाओगे,
तुम भाप बन जाओगे, अब तुम दिखाई नहीं पड़ोगे;
तुम तिरोहित हो जाओगे। यदि तुम भयभीत हो इस मिटने से, तो तुम सहारा खोजोगे। तुम कोशिश करोगे फिर से जम जाने की, ठोस हो जाने की, ताकि तुम कोई रूप, कोई आकार, कोई नाम पा सको कोई 'नाम रूप'। हिंदुओं ने इस संसार
को कहा है, नाम रूप का संसार। तब
तुम्हारी एक पहचान होगी, तुम जानोगे कि तुम कौन हो।
केवल कुत्ता जानता है कि वह कौन है हर चीज निश्चित है, तय है। यदि तुम यात्रा पर आगे बढ़ते हो, पथ पर गतिमान होते हो,
तो सब धुंधला धुंधला हो जाता है पहाड़ पहाड़ नहीं रहते, नदियां नदियां नहीं रहती। बड़ी
अस्तव्यस्तता हो जाती है, एक अराजकता हो जाती है।
लेकिन स्मरण रहे : केवल अराजकता से ही नाचते सितारे पैदा होते
हैं। ध्यान रहे, केवल अराजकता में ही परमात्मा पाया जाता है। फिर तीसरी अवस्था है वाष्पीभूत होने की, इस तरह तिरोहित हो जाने की कि
कोई नामो निशान भी नहीं बचता। एक पदचिह्न भी पीछे नहीं
छूटता। तुम खो जाते हो। तुम्हारा होना 'न होने' जैसा हो जाता है। और यही वह अवस्था है,
जिसे मैं परम अवस्था कहता हूं परमात्म अवस्था कहता हूं।
इसीलिए तुम परमात्मा को नहीं देख सकते। तुम खोजते रहो, खोजते रहो : एक दिन तुम खो
जाओगे, और वही ढंग है परमात्मा को पाने का। परमात्मा कहीं
मिलेगा नहीं। तुम परमात्मा को कहीं खड़े हुए नहीं पाओगे साक्षात्कार करने के लिए,
क्योंकि कौन करेगा साक्षात्कार? यदि तुम अभी
भी मौजूद हो, बचे हो साक्षात्कार करने के लिए, तो परमात्मा की कोई संभावना नहीं है। और जब तुम्हीं न बचे तो कौन करेगा
साक्षात्कार? किसी विषय—वस्तु की भांति
परमात्मा का साक्षात्कार नहीं होगा तुमसे। तुम्हारा उससे साक्षात्कार होगा अपने
आत्यंतिक केंद्र की भाति। लेकिन वह केवल तभी संभव है जब तुम पिघल जाओ, तुम तरल हो जाओ पानी की भांति, फिर तुम वाष्पीभूत हो
जाते हो—तुम आकाश में उड़ते बादल हो जाते हो, जिसका कोई पता नहीं होता, कोई नाम नहीं होता,
कोई रूप नहीं होता; एक निर्मुक्त बादल,
जिसका कोई ठौर ठिकाना नहीं होता।
यही भय है : क्योंकि यह एक महामृत्यु है। यह है संपूर्ण अतीत के
प्रति मरना। जो भी तुम हो, जो भी तुम्हारे पास है ,सब छोड़ना होता है; सूली पर चढ़ना होता है। मृत्यु से पहले मर जाओ, वही
एकमात्र ढंग है परमात्मा होने का।
तो इस बीच की अवस्था से भयभीत मत होना; अन्यथा तुम पीछे जा सकते
हो। तुम फिर ठोस हो जाओगे बर्फ की भांति। तुम कोई नाम रूप,
पहचान पा लोगे, लेकिन तुम चूक गए।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
No comments:
Post a Comment