अभी एक दिन मैं रामकृष्ण की एक कथा पढ़ रहा था। मुझे प्यारी
लगती है वह। मैं फिर फिर पढ़ता हूं उसे जब कभी मेरे सामने आ
जाती है वह। वह सारी कथा गुरु के कैटेलिटिक उत्पेरक होने की ही है। कथा है
एक बच्चे को जन्म देते हुए एक शेरनी मर गई, और बच्चे को पाला
बकरियों
ने। निस्संदेह, शेर स्वयं को इस तरह बकरी ही समझता था। यह
बात सहज थी, स्वाभाविक थी, बकरियों
द्वारा पाले
जाने से, बकरियों के साथ रहने से, वह समझने लगा कि वह बकरी था। वह शाकाहारी बना रहा, घास ही खाता चबाता रहा। उसके पास कोई धारणा न थी।
अपने स्वप्नों तक में भी वह स्वप्न न देख सकता था कि वह शेर था, और वह था तो शेर।
फिर एक दिन ऐसा हुआ कि एक के शेर ने बकरियों के इस झुंड को
देखा और वह का शेर विश्वास न कर सका अपनी दृष्टि पर। एक युवा शेर
चल रहा था बकरियों के बीच। न तो बकरियां भयभीत थीं उस शेर से
और न उन्हें पता था कि शेर उनके बीच चल रहा था, शेर भी बकरी
की भांति ही चल
रहा था।
वृद्ध शेर ने बस किसी तरह जा पकड़ा युवा शेर को, क्योंकि कठिन था उसे पकड़ पाना। वह तो भागा ऐसी कोशिश की उसने, वह
रोया, चीखा चिल्लाया। वह भयभीत था, वह कांप रहा था भय से। सारी बकरियां भाग
निकलीं और वह भी उनके साथ भाग जाने की कोशिश में था, लेकिन के शेर ने उसे पकड़ लिया और उसे खींचता हुआ ले चला झील की ओर। वह
जाता न था। उसने उसी ढंग से बाधा डाली जैसे कि तुम मेरे साथ कर रहे हो! उसने अपनी ओर
से पूरी कोशिश की न जाने की। वह मरने की हालत तक डरा हुआ था, चीख रहा था और रो रहा था, लेकिन वह का शेर तो उसे जाने न देगा। का शेर
अभी भी खींचता था उसे और वह उसे ले गया झील की तरफ।
झील शांत, निस्तरंग थी किसी दर्पण की भांति। उसने
युवा शेर को बाध्य किया पानी में झांकने के लिए। उसने देखा, आंसू भरी आंखों से दृष्टि साफ न थी लेकिन दृष्टि थी तो कि वह लगता था एकदम वृद्ध शेर की भांति ही। आंसू मिट गए और होने का एक नया
बोध उदित हुआ; बकरी मिटने लगी मन से। अब कोई बकरी न थी, लेकिन तो भी वह विश्वास न कर सका उसके अपने ज्ञान के जागरण पर। अभी
भी शरीर कुछ कांप रहा था, वह भयभीत था। वह सोच रहा था, 'शायद मैं कल्पना ही कर रहा हूं। एक बकरी ऐसे अचानक ही शेर
कैसे बन सकती है। यह संभव नहीं, ऐसा कभी हुआ नहीं। ऐसा इस तरह से कभी
नहीं हुआ।’ वह
विश्वास न कर
सका अपनी आंखों पर, लेकिन अब वह पहली चिंगारी, प्रकाश की पहली किरण उसकी अंतस सत्ता में प्रवेश
कर गई थी। सचमुच
ही अब वह वही न रहा था। वह कभी फिर से वही न हो सकता था।
वह वृद्ध शेर उसे ले गया अपनी गुफा में। अब वह उतना
प्रतिरोधी नहीं था, उतना
अनिच्छुक न था, उतना भयभीत न था। धीरे धीरे वह निर्भीक हो रहा था, साहस एकत्र कर रहा था। जैसे ही वह गया गुफा की ओर, वह चलने लगा शेर की भांति। के शेर ने उसे कुछ मांस खाने को दिया। यह
बात कठिन है शाकाहारी के लिए, करीब करीब असंभव, उबकाई लाने
वाली, लेकिन का शेर तो कुछ सुनता ही न था। उसने उसे मजबूर
किया खाने के
लिए। जब युवा शेर की नाक मास के निकट आई तो कुछ हो गया. उस गंध से
उसके प्राणों की
कोई गहरी बात जो कि सोई पड़ी थी जाग गयी। वह खिंच गया, आकर्षित हो उठा मास की ओर, और वह खाने लग गया। एक
बार उसने स्वाद
चख लिया मांस का, एक गर्जन फूट पड़ी उसके
प्राणों से।
बकरी विलीन हो गई उस गर्जन में, और शेर वहा
मौजूद था अपने
सौंदर्य और भव्यता सहित।
यही है सारी प्रक्रिया। और एक के शेर की जरूरत होती है। यही
है तकलीफ का शेर है यहां, और चाहे कैसे ही कोशिश करो बच निकलने की, इस ढंग से और उस ढंग से, वैसा संभव नहीं। तुम अनिच्छुक होते हो; झील तक तुम्हें ले चलना कठिन है, लेकिन मैं
तुम्हें ले
चलूंगा। तुम घास खाते रहे जीवन भर। तुम बिलकुल भूल ही चुके हो मांस की
गंध, लेकिन मैं तुम्हें बाध्य करू दूंगा उसे खाने के लिए। एक
बार स्वाद मिल जाए
तो गर्जना फूट पड़ेगी। उस विस्फोट में बकरी तिरोहित हो जाएगी और
बुद्ध उत्पन्न
होंगे।
तो तुम्हें इसमें चिंता करने की जरूरत नहीं कि मुझे अध्ययन
करने के लिए
इतने सारे बुद्ध कहां मिलेंगे! मैं निर्मित करूंगा उन्हें।
पतंजलि योग सूत्र
ओशो
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