पति मालिक है पत्नी का। पति शब्द का अर्थ ही मालिक होता है, द ओनर। पति को हम स्वामी कहते हैं। स्वामी का मतलब होता है, मालिक। परिग्रह का अर्थ है–स्वामित्व की आकांक्षा। पिता बेटे का मालिक हो सकता है, गुरु शिष्य का मालिक हो सकता है। जहां भी मालकियत है वहां परिग्रह है, और जहां भी परिग्रह है वहां संबंध हिंसात्मक हो जाते हैं। क्योंकि बिना किसी के साथ हिंसा किये मालिक नहीं हुआ जा सकता; और बिना किसी को गुलाम बनाये मालिक नहीं हुआ जा सकता। और बिना परतंत्रता थोपे पजेसिव होना असंभव है।
लेकिन क्यों है मनुष्य के मन में इतनी आकांक्षा कि वह मालिक बने? क्यों दूसरे का मालिक बनने की आकांक्षा है? दूसरे के मालिक बनने में इतना रस क्यों है?
बहुत मजे की बात है: चूंकि हम अपने मालिक नहीं हैं, इसलिए। जो व्यक्ति अपना मालिक हो जाता है, उसकी मालकियत की धारणा खो जाती है। लेकिन हम अपने मालिक नहीं हैं और उसकी कमी हम जिंदगी भर दूसरों के मालिक होकर पूरी करते रहते हैं।
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लेकिन कोई चाहे सारी पृथ्वी का मालिक हो जाये तो भी कमी पूरी नहीं हो सकती। क्योंकि अपने मालिक होने का मजा और है, और दूसरे के मालिक होने में सिवाय दुख के और कुछ भी नहीं। अपना मालिक होना एक आनंद है, दूसरे का मालिक होना सदा दुख है। इसलिए जितनी बड़ी मालकियत होती है, उतना बड़ा दुख पैदा हो जाता है। जिंदगी भर हम कोशिश करते हैं कि वह जो एक चीज चूक गई है, कि हम अपने मालिक नहीं हैं, सम्राट नहीं हैं अपने, वह हम दूसरों के मालिक बन कर पूरा करने की कोशिश करते हैं।
ओशो
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