पतंजलि ने समाधि की दो दशाएं कही हैं। चैतन्य समाधि और जड़ समाधि। जड़
समाधि नाम मात्र को समाधि है। समाधि जैसी प्रतीति होती है, पर समाधि नहीं
है। जड़ समाधि में, तुम्हारे पास जो थोड़ी—सी चैतन्य की ऊर्जा है, वह भी खो
जाती है। तुम मूर्च्छित होकर गिर जाते हो। एक आध्यात्मिक कोमा! तुम मनुष्य
से नीचे उतर जाते हो। जरूर शांति मिलेगी, जैसी गहरी नींद में मिलती है।
इसलिए पतंजलि ने यह भी कहा कि समाधि और गहरी नींद में एक समानता है। खूब गहरी नींद आ जाए, स्वप्न भी न हों, तो एक शांति मिलेगी, दूसरे दिन सुबह ताजगी रहेगी। लेकिन उस प्रगाढ़ निद्रा में क्या हुआ था, इसका तो कुछ पता न रहेगा। कहां गए, कहां पहुंचे, क्या अनुभव हुए, कुछ भी पता न होगा। सुबह तुम इतना ही कह सकोगे कि गहरी नींद आई। वह भी सुबह कह सकोगे; उठ आओगे नींद से, तब कह सकोगे।
ऐसी ही जड़ समाधि है। सुगम है, सरल है, आसानी से हो सकती है। इसी जड़ समाधि के कारण ही तो पश्चिम में एल० एस० डी०, मारिजुआना, सिलोसायबिन और इस तरह के मादक द्रव्यों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इसी जड़ समाधि के कारण इस देश का साधु— संन्यासी सदियों से गांजा, भांग, अफीम लेता रहा है। बड़ी सरलता से मन को मूर्च्छित किया जा सकता है। और जब मन मूर्च्छित हो जाता है, तो स्वभावत: सारी चिंता समाप्त हो गई, सारे विचार गए। तुम एक सन्नाटे में छूट गए। लौटकर आओगे। ताजे लगोगे। मगर यह ताजगी महंगी है। यह ताजगी बड़ी कीमत पर तुमने ले ली है। असली समाधि चैतन्य समाधि है। मनुष्य दोनों के मध्य में है।
ऐसा समझो कि मनुष्य पत्थर और परमात्मा के बीच में है, बीच की कड़ी है। पत्थर जड़ है, परमात्मा पूर्ण चेतन है मनुष्य आधा—आधा——कुछ है कुछ चेतन है। यही मनुष्य की चिंता है, यही उसका संताप है। यही उसकी दुविधा, द्वंद्व, यही उसकी पीड़ा, तनाव। आधा हिस्सा खींचता है कि जड़ हो जाओ, आधा हिस्सा खींचता है कि चैतन्य हो जाओ। आधा हिस्सा कहता है कि डूब जाओ संगीत में, शराब में, सेक्स में। आधा हिस्सा कहता है : उठो — ध्यान में, प्रार्थना में, पूजा में। और इन दोनों में कहीं तालमेल नहीं होता। ये दोनों एक — दूसरे के विपरीत जुड़े हैं। जैसे एक ही बैलगाड़ी में दोनों तरफ बैल जुड़े हैं।
और स्वभावत :, जो पीछे की तरफ जा रहे हैं बैल, वे ज्यादा शक्तिशाली हैं। क्यों। क्योंकि अतीत का इतिहास उनके साथ है। तुम्हारा पूरा अतीत जड़ता का इतिहास है। इसलिए जड़ता का बड़ा वजन है। चैतन्य तो भविष्य है। उसकी तो धीमी— सी किरण उतर रही है अभी। अभी उसका बल बहुत नहीं है। अंधेरे का बल बहुत ज्यादा है।
इसलिए तो ध्यान की कोशिश करो, और विचारों की तरंगें उठती ही चली जाती हैं। विचार अतीत से आते हैं, जड़ता से आते हैं, यांत्रिक हैं। ध्यान भविष्य को लाने का प्रयास है। कठिन है भविष्य को उतार लेना। श्रम चाहिए, सतत श्रम चाहिए। जागरूकता चाहिए। अथक जागरूकता चाहिए!
मनुष्य आसानी से पशु हो सकता है। इसलिए तो जिन— जिन बातों से पशु होने की सुविधा मिलती है, तुम उनमें बड़े उत्सुक हो जाते हो। राजनीति में तुम्हारी उत्सुकता देखते हो! वह पशु होने का उपाय है। नीचे गिरने का उपाय है। भीड़— भाड़ के साथ तुम्हें भी नशा छा जाता है। जब भीड़ जोर — जोर से नारा लगाने लगती है, तो तुम्हारा कंठ भी खुल जाता है। ऐसे अकेले शायद तुम्हारी बोलती बंद हो जाए, लेकिन भीड़ के साथ तुम्हारा कंठ खुल जाता है। जब भीड़ आग लगाने लगे कहीं, तो तुम भी आग लगाने में संलग्न हो जाते हो।
तुमने देखा, क्रोध में कितना बल आ जाता है! जब तुम क्रोध में होते हो, बड़ी चट्टान सरका देते हो। वही चट्टान साधारण, सामान्य दशा में हिलाते तो हिलती न। पशुता प्रबल है। पीछे से खींच रही है। जो नीचे गिर जाता है, उसे भी एक तरह की गणित मिलती है। वही शांति अपराध का रस है। तुम यह मत समझना कि अपराधी सिर्फ धन में उत्सुक है, इसलिए चोरी कर रहा है। अपराध की असली रसवता पशुता है। अपराधी पीछे गिर रहा है। आदमी है उत्तरदायित्व। आदमी है चुनौती। अपराधी पीछे गिर रहा है। वह कहता है : मुझे चुनौती स्वीकार नहीं करनी।
ओशो
इसलिए पतंजलि ने यह भी कहा कि समाधि और गहरी नींद में एक समानता है। खूब गहरी नींद आ जाए, स्वप्न भी न हों, तो एक शांति मिलेगी, दूसरे दिन सुबह ताजगी रहेगी। लेकिन उस प्रगाढ़ निद्रा में क्या हुआ था, इसका तो कुछ पता न रहेगा। कहां गए, कहां पहुंचे, क्या अनुभव हुए, कुछ भी पता न होगा। सुबह तुम इतना ही कह सकोगे कि गहरी नींद आई। वह भी सुबह कह सकोगे; उठ आओगे नींद से, तब कह सकोगे।
ऐसी ही जड़ समाधि है। सुगम है, सरल है, आसानी से हो सकती है। इसी जड़ समाधि के कारण ही तो पश्चिम में एल० एस० डी०, मारिजुआना, सिलोसायबिन और इस तरह के मादक द्रव्यों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इसी जड़ समाधि के कारण इस देश का साधु— संन्यासी सदियों से गांजा, भांग, अफीम लेता रहा है। बड़ी सरलता से मन को मूर्च्छित किया जा सकता है। और जब मन मूर्च्छित हो जाता है, तो स्वभावत: सारी चिंता समाप्त हो गई, सारे विचार गए। तुम एक सन्नाटे में छूट गए। लौटकर आओगे। ताजे लगोगे। मगर यह ताजगी महंगी है। यह ताजगी बड़ी कीमत पर तुमने ले ली है। असली समाधि चैतन्य समाधि है। मनुष्य दोनों के मध्य में है।
ऐसा समझो कि मनुष्य पत्थर और परमात्मा के बीच में है, बीच की कड़ी है। पत्थर जड़ है, परमात्मा पूर्ण चेतन है मनुष्य आधा—आधा——कुछ है कुछ चेतन है। यही मनुष्य की चिंता है, यही उसका संताप है। यही उसकी दुविधा, द्वंद्व, यही उसकी पीड़ा, तनाव। आधा हिस्सा खींचता है कि जड़ हो जाओ, आधा हिस्सा खींचता है कि चैतन्य हो जाओ। आधा हिस्सा कहता है कि डूब जाओ संगीत में, शराब में, सेक्स में। आधा हिस्सा कहता है : उठो — ध्यान में, प्रार्थना में, पूजा में। और इन दोनों में कहीं तालमेल नहीं होता। ये दोनों एक — दूसरे के विपरीत जुड़े हैं। जैसे एक ही बैलगाड़ी में दोनों तरफ बैल जुड़े हैं।
और स्वभावत :, जो पीछे की तरफ जा रहे हैं बैल, वे ज्यादा शक्तिशाली हैं। क्यों। क्योंकि अतीत का इतिहास उनके साथ है। तुम्हारा पूरा अतीत जड़ता का इतिहास है। इसलिए जड़ता का बड़ा वजन है। चैतन्य तो भविष्य है। उसकी तो धीमी— सी किरण उतर रही है अभी। अभी उसका बल बहुत नहीं है। अंधेरे का बल बहुत ज्यादा है।
इसलिए तो ध्यान की कोशिश करो, और विचारों की तरंगें उठती ही चली जाती हैं। विचार अतीत से आते हैं, जड़ता से आते हैं, यांत्रिक हैं। ध्यान भविष्य को लाने का प्रयास है। कठिन है भविष्य को उतार लेना। श्रम चाहिए, सतत श्रम चाहिए। जागरूकता चाहिए। अथक जागरूकता चाहिए!
मनुष्य आसानी से पशु हो सकता है। इसलिए तो जिन— जिन बातों से पशु होने की सुविधा मिलती है, तुम उनमें बड़े उत्सुक हो जाते हो। राजनीति में तुम्हारी उत्सुकता देखते हो! वह पशु होने का उपाय है। नीचे गिरने का उपाय है। भीड़— भाड़ के साथ तुम्हें भी नशा छा जाता है। जब भीड़ जोर — जोर से नारा लगाने लगती है, तो तुम्हारा कंठ भी खुल जाता है। ऐसे अकेले शायद तुम्हारी बोलती बंद हो जाए, लेकिन भीड़ के साथ तुम्हारा कंठ खुल जाता है। जब भीड़ आग लगाने लगे कहीं, तो तुम भी आग लगाने में संलग्न हो जाते हो।
तुमने देखा, क्रोध में कितना बल आ जाता है! जब तुम क्रोध में होते हो, बड़ी चट्टान सरका देते हो। वही चट्टान साधारण, सामान्य दशा में हिलाते तो हिलती न। पशुता प्रबल है। पीछे से खींच रही है। जो नीचे गिर जाता है, उसे भी एक तरह की गणित मिलती है। वही शांति अपराध का रस है। तुम यह मत समझना कि अपराधी सिर्फ धन में उत्सुक है, इसलिए चोरी कर रहा है। अपराध की असली रसवता पशुता है। अपराधी पीछे गिर रहा है। आदमी है उत्तरदायित्व। आदमी है चुनौती। अपराधी पीछे गिर रहा है। वह कहता है : मुझे चुनौती स्वीकार नहीं करनी।
ओशो
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