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Sunday, July 26, 2015

स्वर्ग और नर्क

एक दुकान पर एक शिकारी कुछ सामान खरीद रहा था। अफ्रीका जा रहा था शिकार करने। कहीं जंगल में भटक न जाए, इसलिए उसने एक यंत्र खरीदा : दिशासूचक यंत्र, कॅम्पास। और तो सब ठीक था, उसने खोलकर देखा, लेकिन कॅम्पास में पीछे एक आईना भी लगा था। यह उसकी समझ में न आया। क्योंकि यह कोई कॅम्पास है या किसी स्त्री का साज-श्रृंगार का सामान? इसमें आईना किसलिए लगा है? यह दिशासूचक यंत्र है, इसमें आईने की क्या जरूरत? उसने दुकानदार से पूछा कि और सब तो ठीक है, लेकिन यह मेरी समझ में नहीं आया कि इसमें आईना क्यों लगा है? दुकानदार ने कहा, यह इसलिए कि जब तुम भटक जाओ, तो कॅम्पास तो बताएगा स्थान, आईने में तुम देख लेना ताकि पता चल जाए-कौन भटक गया है? कहा भटक गए हो यह तो कॅम्पास से पता चल जाएगा; लेकिन कौन भटक गया है!

अपना पता नहीं है, स्वर्ग के नक्शा बना दिए हैं! विवाद चल रहे हैं लोगों के-कितने नर्क होते हैं? हिंदू कहते हैं, तीन। जैन कहते हैं, सात। बुद्ध ने बड़ी मजाक की है, उन्होंने कहा, सात सौ। यह मजाक की है, क्योंकि बुद्ध को जरा भी उत्सुकता नहीं है इस तरह की मूढ़ताओं में। लेकिन मजाक भी -नहीं समझ पाते लोग। बुद्ध के मानने वाले हैं जो कहते हैं कि नहीं, सात सौ ही होते हैं, इसीलिए कहे। मैं तुमसे कहता हूं सात हजार।
आदमी सत्य से भी झूठ खोज लेता है। इसलिए आदमी भटकता है।

ओशो 

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