उसका सतत स्मरण ही ध्यान है। यदि आप उसे सतत स्मरण कर सकें, तो
फिर आप ध्यान में हैं। जब आप वस्तुओं के साथ हो, उसे स्मरण रखें जब आप
लोगों के साथ हों, उसे स्मरण रखें। जहां भी आप हों उसे सदैव स्मरण रखें। हम
कभी सीमित को सीमित की भांति नहीं देखते सदैव गहरे देखें और उस असीम को
अनुभव करें। कभी आकृति को आकृति तरह न देखें सदैव आकृति के नीचे गहरे जो
आकृतिहीन है उसे देखें। कभी वस्तुओं को वस्तुओं की तरह न देखें, गहरे जाए,
उन्हें अनुभव करें, और वह–दैट प्रकट हो जाएगा। कभी किसी व्यक्ति को उसके
व्यक्तित्व में कैद न देखें। उसके भीतर गहरे में प्रवेश कर जाएं और उसका
अनुभव करें जो कि पार चला जाता है, वह जो भीतर है उसके भी पार चला जाता है।
उसका सतत स्मरण ही ध्यान है। कोई विधि, कोई पद्धति, कोई तरीका नहीं है–बस,
केवल सतत स्मरण। परन्तु यह बहुत कठिन है।
उसका सतत स्मरण रखना है–बिना किसी अंतराल के, बिना क्रम टूटे, बिना एक क्षण के लिए भूले। सतत स्मरण हो–लगातार बिना किसी भी अंतराल के। यह जो निरंतर स्मरण है, बहुत ही कठिन है। हम कुछ लोगों के लिए लगातार स्मरण नहीं कर सकते। जरा अपनी श्वासों को गिनना शुरू करो, और याद रखो कि लगातार स्मरण के आप कितनी श्वासें गिन पाते हैं, श्वास की क्रिया को, आती-जाती श्वास को खयाल में रखना कितने श्वास गिन पाते हैं। स्मरण रखें और गिनें। आप तीन या चार गिन पाएंगे और फिर चूक जाएंगे। कुछ बीच में आ गया और आप भूल गए। और तब आपको याद आता है कि ओह, मैं तो गिन रहा था और मैंने तीन गिने और चूक गया।
स्मरण सबसे कठिन बात है, क्योंकि हम सोए हुए लोग हैं। हम गहरी नींद में सोए हुए हैं। हम नींद में चल रहे हैं, नींद में बात कर रहे हैं, गति कर रहे हैं, जी रहे हैं, प्रेम कर रहे हैं! हम सब कुछ नींद में ही कर रहे हैं, एक गहरी निद्रा में, एक गहरे प्राकृतिक सम्मोहन में। इसीलिए इतनी गड़बड़ है, इतना संघर्ष है। इतनी हिंसा है और इतनी लड़ाई है। यह में कैसे जीवित रही! और अभी भी हम किसी तरह चला रहे हैं। परन्तु हम सोए हुए हैं। हमारा व्यवहार ऐसा व्यवहार नहीं कि उसे जागा हुआ, सावधानी पूर्ण या सचेतन कहा जा सके। हम जागे हुए नहीं हैं। एक मिनिट के लिए भी हम अपने प्रति सजग नहीं रह सकते। इसका थोड़ा प्रयत्न करें और तब आपको पता चलेगा कि आप कितने सोए हुए हैं। यदि मैं अपने आपको एक मिनट के–साठ सेकेंड के लिए भी लगातार स्मरण नहीं रख सकता, तो कितनी गहरी नींद में मैं सोया हूं! दो या तीन सेकेंड और फिर नींद आ जाती है, और मैं वहां नहीं होता–मैं कहीं चला गया। सजगता चली गई और मूच्र्छा उसकी जगह आ गई। एक गहरा अंधकार हो जाता है और फिर मुझे खयाल आता है कि मैं अपने प्रति सजग हो रहा था।
ओशो
उसका सतत स्मरण रखना है–बिना किसी अंतराल के, बिना क्रम टूटे, बिना एक क्षण के लिए भूले। सतत स्मरण हो–लगातार बिना किसी भी अंतराल के। यह जो निरंतर स्मरण है, बहुत ही कठिन है। हम कुछ लोगों के लिए लगातार स्मरण नहीं कर सकते। जरा अपनी श्वासों को गिनना शुरू करो, और याद रखो कि लगातार स्मरण के आप कितनी श्वासें गिन पाते हैं, श्वास की क्रिया को, आती-जाती श्वास को खयाल में रखना कितने श्वास गिन पाते हैं। स्मरण रखें और गिनें। आप तीन या चार गिन पाएंगे और फिर चूक जाएंगे। कुछ बीच में आ गया और आप भूल गए। और तब आपको याद आता है कि ओह, मैं तो गिन रहा था और मैंने तीन गिने और चूक गया।
स्मरण सबसे कठिन बात है, क्योंकि हम सोए हुए लोग हैं। हम गहरी नींद में सोए हुए हैं। हम नींद में चल रहे हैं, नींद में बात कर रहे हैं, गति कर रहे हैं, जी रहे हैं, प्रेम कर रहे हैं! हम सब कुछ नींद में ही कर रहे हैं, एक गहरी निद्रा में, एक गहरे प्राकृतिक सम्मोहन में। इसीलिए इतनी गड़बड़ है, इतना संघर्ष है। इतनी हिंसा है और इतनी लड़ाई है। यह में कैसे जीवित रही! और अभी भी हम किसी तरह चला रहे हैं। परन्तु हम सोए हुए हैं। हमारा व्यवहार ऐसा व्यवहार नहीं कि उसे जागा हुआ, सावधानी पूर्ण या सचेतन कहा जा सके। हम जागे हुए नहीं हैं। एक मिनिट के लिए भी हम अपने प्रति सजग नहीं रह सकते। इसका थोड़ा प्रयत्न करें और तब आपको पता चलेगा कि आप कितने सोए हुए हैं। यदि मैं अपने आपको एक मिनट के–साठ सेकेंड के लिए भी लगातार स्मरण नहीं रख सकता, तो कितनी गहरी नींद में मैं सोया हूं! दो या तीन सेकेंड और फिर नींद आ जाती है, और मैं वहां नहीं होता–मैं कहीं चला गया। सजगता चली गई और मूच्र्छा उसकी जगह आ गई। एक गहरा अंधकार हो जाता है और फिर मुझे खयाल आता है कि मैं अपने प्रति सजग हो रहा था।
ओशो
No comments:
Post a Comment