आप कुछ नए नहीं हैं।
इस पृथ्वी पर कुछ भी नया नहीं है, सभी बहुत पुराने हैं। आप बुद्ध के चरणों में भी बैठ कर सुने हैं, आपने कृष्ण को भी देखा है, आप जीसस के पास भी उठे —बैठे हैं, लेकिन फिर भी वंचित रह गए हैं! क्योंकि कभी भी आपका हृदय तैयार नहीं था। आपके पास से बुद्ध की सरिता बहती निकल गई है, महावीर की सरिता बहती निकल गई है, आप प्यासे रह गए हैं।
आनंद रो रहा था, जिस दिन बुद्ध के प्राण छूटने को थे, और छाती पीट रहा था। और बुद्ध ने उससे कहा कि तू रोता क्यों है? जरूरत से ज्यादा मैं तेरे पास था, चालीस वर्ष! और अगर चालीस वर्ष में भी नहीं हो पाई वह घटना, तो अब रोने से क्या होगा! मेरे मिटने से इतना परेशान क्यों हो रहा है? तो आनंद ने कहा है, इसलिए परेशान हो रहा हूं कि आप मौजूद थे और मैं न मिट पाया। अगर मैं मिट जाता तो आपको मेरे भीतर प्रवेश मिल जाता। चालीस साल नदी मेरे पास बहती थी और मैं प्यासा रह गया हूं। और अब मैं रोता हूं क्योंकि जरूरी नहीं है कि यह नदी कब, किस जन्म में दुबारा मुझे मिलेगी।
आप कुछ नए नहीं हैं। आपने बुद्धों को दफनाया, महावीरों को दफनाया, जीसस, कृष्ण, क्राइस्ट, सबको आप दफना कर जी रहे हैं। वे हार गए आपसे, आप काफी पुराने हैं। जब से जीवन है, तब से आप हैं। अनंत—अनंत यात्रा है।
कहां हो जाती होगी चूक?
बस यहीं हो जाती है कि आप खुले ही नहीं हैं, बंद हैं।
मैं तो आपसे वही कहूंगा, जो मैंने जाना है। अगर आप भी अपने को एक खुलापन बना सकें, तो आप भी उसे जान लेंगे। और ऐसा नहीं है कि कोई कठिनाई है बहुत! एक ही कठिनाई है और वह आप हैं। कुछ लोग कुतूहल से चलते हैं। जैसे राह चलते बच्चे पूछ लेते हैं, इस वृक्ष का नाम क्या है? और अगर आप उत्तर न दें, तो तत्थण भूल जाते हैं कि उन्होंने पूछा भी था! वे दूसरी बात पूछने लगते हैं कि यह पत्थर यहां क्यों पड़ा है? पूछने के लिए पूछते हैं, जानने के लिए नहीं पूछते। बिना पूछे नहीं रह सकते हैं, इसलिए पूछते हैं; जानने के लिए नहीं पूछते।
जो लोग कुतूहल से जी रहे हैं, वे अभी भी बचकाने हैं। अगर आप ऐसे ही पूछ लेते हैं कि ईश्वर क्या है, जैसे कि कोई बच्चा राह चलते दुकान देख कर पूछ लेता हो कि यह खिलौना क्या है, तो आप अभी बच्चे हैं। और बच्चा तो माफ किया जा सकता है, आप माफ नहीं किए जा सकते। कुतूहल नहीं चलेगा। धर्म कोई खिलवाड़ नहीं है बच्चों का। और फिर उत्तर भी मिल जाए तो उससे कोई प्रयोजन नहीं है। बच्चे का मजा पूछने में है। उसने पूछा, यही उसका मजा है। आप उत्तर देंगे भी, तो उस उत्तर में उसे कोई बहुत रस नहीं है। क्या बात है?
मनसविद कहते हैं कि बच्चे नया—नया बोलना सीखते हैं, तो अपने बोलने का अभ्यास करते हैं पूछ—पूछ कर। जैसे बच्चा नया—नया चलना सीखता है, तो बार —बार उठ कर चलने की कोशिश करता है। बोलना सीखता है, तो बार—बार बोलने की कोशिश करता है। इसलिए बच्चे एक ही बात को कई दफा कहते हैं। इसीलिए कई दफा कहते हैं, क्योंकि उन्हें बोलने का एक नया अनुभव, एक नया आयाम मिला है। उस नए आयाम में वे तैर कर अभ्यास कर रहे हैं। इसलिए कुछ भी पूछते हैं, कुछ भी बोलते हैं।
अगर आप भी धर्म की दुनिया में कुछ भी पूछ रहे हैं, कुछ भी बोल रहे हैं, कुछ भी सोच रहे हैं—और कोई गहरी जिज्ञासा नहीं है, बस कुतूहल है—तो अभी आप और कुछ बुद्धों को दफनाके! अभी और न मालूम कितने बुद्धों को आपके साथ मेहनत करनी पडेगी!
कुतूहल से सत्य का कोई संबंध नहीं है।
ओशो
इस पृथ्वी पर कुछ भी नया नहीं है, सभी बहुत पुराने हैं। आप बुद्ध के चरणों में भी बैठ कर सुने हैं, आपने कृष्ण को भी देखा है, आप जीसस के पास भी उठे —बैठे हैं, लेकिन फिर भी वंचित रह गए हैं! क्योंकि कभी भी आपका हृदय तैयार नहीं था। आपके पास से बुद्ध की सरिता बहती निकल गई है, महावीर की सरिता बहती निकल गई है, आप प्यासे रह गए हैं।
आनंद रो रहा था, जिस दिन बुद्ध के प्राण छूटने को थे, और छाती पीट रहा था। और बुद्ध ने उससे कहा कि तू रोता क्यों है? जरूरत से ज्यादा मैं तेरे पास था, चालीस वर्ष! और अगर चालीस वर्ष में भी नहीं हो पाई वह घटना, तो अब रोने से क्या होगा! मेरे मिटने से इतना परेशान क्यों हो रहा है? तो आनंद ने कहा है, इसलिए परेशान हो रहा हूं कि आप मौजूद थे और मैं न मिट पाया। अगर मैं मिट जाता तो आपको मेरे भीतर प्रवेश मिल जाता। चालीस साल नदी मेरे पास बहती थी और मैं प्यासा रह गया हूं। और अब मैं रोता हूं क्योंकि जरूरी नहीं है कि यह नदी कब, किस जन्म में दुबारा मुझे मिलेगी।
आप कुछ नए नहीं हैं। आपने बुद्धों को दफनाया, महावीरों को दफनाया, जीसस, कृष्ण, क्राइस्ट, सबको आप दफना कर जी रहे हैं। वे हार गए आपसे, आप काफी पुराने हैं। जब से जीवन है, तब से आप हैं। अनंत—अनंत यात्रा है।
कहां हो जाती होगी चूक?
बस यहीं हो जाती है कि आप खुले ही नहीं हैं, बंद हैं।
मैं तो आपसे वही कहूंगा, जो मैंने जाना है। अगर आप भी अपने को एक खुलापन बना सकें, तो आप भी उसे जान लेंगे। और ऐसा नहीं है कि कोई कठिनाई है बहुत! एक ही कठिनाई है और वह आप हैं। कुछ लोग कुतूहल से चलते हैं। जैसे राह चलते बच्चे पूछ लेते हैं, इस वृक्ष का नाम क्या है? और अगर आप उत्तर न दें, तो तत्थण भूल जाते हैं कि उन्होंने पूछा भी था! वे दूसरी बात पूछने लगते हैं कि यह पत्थर यहां क्यों पड़ा है? पूछने के लिए पूछते हैं, जानने के लिए नहीं पूछते। बिना पूछे नहीं रह सकते हैं, इसलिए पूछते हैं; जानने के लिए नहीं पूछते।
जो लोग कुतूहल से जी रहे हैं, वे अभी भी बचकाने हैं। अगर आप ऐसे ही पूछ लेते हैं कि ईश्वर क्या है, जैसे कि कोई बच्चा राह चलते दुकान देख कर पूछ लेता हो कि यह खिलौना क्या है, तो आप अभी बच्चे हैं। और बच्चा तो माफ किया जा सकता है, आप माफ नहीं किए जा सकते। कुतूहल नहीं चलेगा। धर्म कोई खिलवाड़ नहीं है बच्चों का। और फिर उत्तर भी मिल जाए तो उससे कोई प्रयोजन नहीं है। बच्चे का मजा पूछने में है। उसने पूछा, यही उसका मजा है। आप उत्तर देंगे भी, तो उस उत्तर में उसे कोई बहुत रस नहीं है। क्या बात है?
मनसविद कहते हैं कि बच्चे नया—नया बोलना सीखते हैं, तो अपने बोलने का अभ्यास करते हैं पूछ—पूछ कर। जैसे बच्चा नया—नया चलना सीखता है, तो बार —बार उठ कर चलने की कोशिश करता है। बोलना सीखता है, तो बार—बार बोलने की कोशिश करता है। इसलिए बच्चे एक ही बात को कई दफा कहते हैं। इसीलिए कई दफा कहते हैं, क्योंकि उन्हें बोलने का एक नया अनुभव, एक नया आयाम मिला है। उस नए आयाम में वे तैर कर अभ्यास कर रहे हैं। इसलिए कुछ भी पूछते हैं, कुछ भी बोलते हैं।
अगर आप भी धर्म की दुनिया में कुछ भी पूछ रहे हैं, कुछ भी बोल रहे हैं, कुछ भी सोच रहे हैं—और कोई गहरी जिज्ञासा नहीं है, बस कुतूहल है—तो अभी आप और कुछ बुद्धों को दफनाके! अभी और न मालूम कितने बुद्धों को आपके साथ मेहनत करनी पडेगी!
कुतूहल से सत्य का कोई संबंध नहीं है।
ओशो
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