यह बड़ा उलटा लगेगा। जीवन
बड़ा जटिल है। जीवन निश्चित ही काफी जटिल है और विरोधाभासी है, पैराडाक्सिकल है।
इसका मतलब यह हुआ कि जो जीवन को पकड़ता है, वह मृत्यु को पाता है। इसका
यह अर्थ हुआ कि जो जीवन को छोड़ता है, वह महाजीवन को पाता है।
यह बिलकुल विरोधाभासी लगता है, लेकिन ऐसा है। यह विरोधाभास
ही जीवन का गहनतम स्वरूप है।
आप करके देखें। धन को पकड़े और आप दरिद्र रह जाएंगे। कितना ही धन
हो, दुःखी रह
जाएंगे। धन को छोड्कर देखें। और आप भिखमंगे भी हो जाएं, तो
भी सम्राट आपके सामने फीके होंगे। आप शरीर को जोर से पकड़े। और शरीर से सिर्फ दुख
के आप कुछ भी न पाएंगे। और शरीर से आप तादाम्य तोड़ दें, शरीर
को पकड़ना छोड़ दें। और आप अचानक पाएंगे कि शरीर को पकड़ने की वजह से आप सीमा में
बंधे थे, अब असीम हो गए।
यहां जो छीनने चलता है,
उसका छिन जाता है। यहां जो देने चल पड़ता है, उससे
छीनने का कोई उपाय नहीं। यह जो विरोधाभास है, यह जो जीवन का
पैराडाक्स है, यह जो पहेली है, इसको हल
करने की व्यवस्था ही साधना है।
दो काम करें। जीवन ने क्या दिया है, इसकी परख रखें। क्या मिला
है जीवन से, क्या मिल सकता है, इसका
हिसाब रखें। पाएंगे कि सब हाथ खाली हैं। आशा भी टूट जाएगी कि कल भी कुछ मिल सकता
है। क्योंकि जो अतीत में नहीं हुआ, वह भविष्य में भी नहीं
होगा। जो कभी नहीं हुआ, वह आगे भी कभी नहीं होगा। और फिर
देखें कि सब जीवन मृत्यु के सागर में उंडलते चले जाते हैं। कोई आज, कोई कल। हम सब क्यू में खड़े हैं। आज नहीं कल, बारी आ
जाती है और मृत्यु में उतर जाते हैं।
तो यह सारा जीवन मृत्यु में पूरा होता है, निश्चित ही यह मृत्यु का ही
छिपा हुआ रूप है। क्योंकि अंत में वही प्रकट होता है, जो
प्रथम से ही छिपा रहा हो। तो जिसे हम जीवन कहते हैं, वह मौत
है। और जीवेषणा को छोड़ेंगे, तो ही यह मौत छूटेगी। तब हमें उस
जीवन का अनुभव होना शुरू होगा, जिसका मिटना कभी भी नहीं होता
है।
उस जीवन को ही परमात्मा कहें, उस जीवन को मोक्ष कहें, उस
जीवन को आत्मा कहें, उस जीवन को जो भी नाम देना हो, वह हम दे सकते हैं।
गीता दर्शन
ओशो
No comments:
Post a Comment