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Saturday, August 4, 2018

आप कहते हैं तो मानना पड़ेगा कि कृष्ण को कोई सिंधी बाई नहीं मिली थी। लगता है सिंधी माइयां आपके इंतजार में थीं, अचानक कहां से प्रकट हो गई हैं, समझ में नहीं आता। आप ही समझाने की कृपा करें।

दादा चूहड़मल फूहड़मल से एक सिंधी बाई ने पूछा, दादा साईं, मुझे रात में अकेलेपन से बहुत घबड़ाहट होती है, मैं क्या करूं? लगता है कि कोई मेरे पलंग के नीचे छुपा बैठा है। इससे कैसे छुटकारा हो?


दादा बोले, इसमें घबराने की क्या बात है री बाई, अरे बिजली जला ली और बिजली के जलते ही तू अकेली नहीं रह जाएगी, घबड़ाहट अपने आप मिट जाएगी।
 
बाई ने पूछा, बिजली के जलते ही वहां कोई और आ जाएगा क्या?


दादा बोले, लो, इतनी-सी बात समझ नहीं आती। अरे बिजली के जलते ही मैं पलंग के नीचे से निकल आऊंगा। अंधेरे में निकलते मुझे भी डर लगता है।


झामनदास ने एक नई राशन की दुकान खोली। राशन की दुकान में खूब भीड़ लगी। लोग एक-दूसरे को धक्कम-धक्का कर रहे थे। एक व्यक्ति लाइन में घुस जाने की कोशिश कर रहा था। दोत्तीन बार कोशिश कर चुका था। जब चौथी बार गुस्से से लाइन में घुसा तो एक पहलवान ने उसे घूंसा मारा और उठा कर बाहर फेंक दिया। वह व्यक्ति बोला, तुम मुझे नहीं जानते, छोड़ दो, मैं तो जा रहा हूं, अब मुझे नहीं घुसना।


पहलवान ने कहा, जा-जा, तू क्या कर लेगा?


तभी वह व्यक्ति गुस्से में आकर बोला, क्या कर लूंगा, अरे अब राशन की दुकान नहीं खोलूंगा। मरो, जाओ, मरो। मैं झामनदास हूं।


सिंधी जो न करें थोड़ा, तू ठीक कहती है। और जानकारी तूने खूब दी! और तू कहती है कि कृष्ण को कोई सिंधी बाई नहीं मिली। मिल जाती तो कृष्ण संन्यासी हो गए होते। अर्जुन को न समझाते कि बेटा कहां भाग रहा है, खुद ही भाग गए होते, पहले ही भाग गए होते। सिंधी बाइयां अगर न हों तो संसार में संन्यास का कोई अर्थ ही नहीं है। क्या सार? यह तो सिंधी बाइयों का ही काम है, जो उन्होंने अच्छे-अच्छों को अखाड़े से भगा दिया।


और तू कहती है, "लगता है सिंधी माइयां आपके इंतजार में थीं, अचानक कहां से प्रकट हो गईं, समझ में नहीं आता।'


बात सच है, मेरे ही इंतजार में थीं। मुझे कोई माई, मुझे कोई साईं, कोई नहीं भगा सकता। मुझे किसी से कोई डर ही नहीं है, क्योंकि मुझे बैकुंठ जाना नहीं है। सिंधी माइयों को खुद ही मैं नरक ले जाने की तैयारी कर रहा हूं कि आओ! जैसे कृष्णा पंजाबी को कितना बुलाया दो दिन कि चल बाई, आ जा; मगर अब चुप हो गई है। आज नहीं कुछ पूछा। देखा कि यह खतरे का मामला है, इसमें उलझना ठीक नहीं। वैसे पूछ रही थी कि तटस्थ कैसे होना इत्यादि-इत्यादि, अब शांत बैठी है, चुप्पी मारे, कि अपने को प्रकट न करना ही ठीक है।


कितना ही चुप्पी मार कर बैठ, अब भाग नहीं सकती। और कहीं भी भाग जा, मैं तेरा पीछा करूंगा। मैं उनमें से नहीं हूं कि मेरा कोई माइयां पीछा करें, मैं उनका पीछा करता हूं। मुझे भ्रष्ट तो किया ही नहीं जा सकता। मैं तो भ्रष्ट जहां तक आदमी हो सकता है वहीं पहुंच ही गया, पहले ही से। जीसस का वचन मान कर चलता हूं। जीसस ने कहा: अंतिम खड़े हो जाओ। सो मैं पहले ही वहीं खड़ा हो गया। मुझे क्या कोई वहां से...वहां से आगे कोई जगह ही नहीं है। कृष्ण को जैनियों ने सातवें नरक में भेज दिया। इसीलिए भेज सके कि कृष्ण चढ़ने की कोशिश कर रहे होंगे स्वर्ग में। मैं सातवें नरक में पहले ही से अड्डा जमाए बैठा हूं। मेरा जैन भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते। अब कहां भेजोगे? अब तो कोई जगह भी नहीं है।


कहते हैं कि लाओत्सू जब कहीं जाता था किसी सभा वगैरह में तो हमेशा जहां लोग जूते उतारते थे वहीं बैठता था। कई दफा उससे लोगों ने कहा, अंदर आइए, ठीक जगह से बैठिए। आप और वहां बैठें? वह कहता कि नहीं, यहीं। क्योंकि यहां से मुझे कोई हटा नहीं सकता। कोई हटाना ही नहीं चाहेगा। और कहीं बैठूं तो शायद कोई हटाने आ जाए।


जीसस ने कहा: धन्य हैं वे जो अंतिम हैं, क्योंकि अब उन्हें और हटाया नहीं जा सकता। 


तो मैं तो अंतिम हूं। अब मुझे कोई हटाने का उपाय नहीं है। तो मैं किसी से क्या डरूं? सिंधी माई मेरा क्या बिगाड़ेगी? इसलिए सिंधी माइयां प्रकट हो रही हैं। और-और प्रकट होंगी, तू देखना अभी। अभी तो निमंत्रण भेज रहा हूं, धीरे-धीरे सब माइयां यहां आएंगी। ये सब ब्रह्माकुमारियां यहां आने वाली हैं, क्योंकि पांच-सात साल में कोई प्रलय होने वाली है


मैं कहता हूं, अभी करवा दूं प्रलय, कहां की तुम बातों में पड़े हो, पांच-सात साल! इतनी क्या प्रतीक्षा करनी? संन्यास लिया कि प्रलय हुई। संन्यास यानी मृत्यु। और संन्यास यानी नया जन्म।

सहज आसिकी नाहीं 

ओशो

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