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Friday, August 31, 2018

भगवान! बुरे कामों के प्रति जागरण से बुरे काम छूट जाते हैं तो फिर अच्छे काम जैसे प्रेम, भक्ति आदि के भी प्रति जागरण हो, तो क्या होता है? कृपया इसे स्पष्ट करें।



रामछवि प्रसाद! जागरण की तीन सीढ़ियां हैं। पहली सीढ़ी: प्राथमिक जागरण। बुरे का अंत हो जाता है और शुभ की बढ़ती होती है। अशुभ विदा होता होता है, शुभ घना होता है। द्वितीय चरण: शुभ विदा होने गलता है, शून्य घना होता है। और तृतीय चरण:शून्य भी विदा हो जाता है। तब जो सहज...तब जो सहज अवस्था रह जाती है, जो शुद्ध चैतन्य रह जाता है बोधमात्र, वही बुद्धावस्था है, वही निर्वाण है। 


शुरू करो जागना, तो पहले तुम पाओगे जो गलत है छूटने लगा। जागकर सिगरेट पियो, तुम न पी सकोगे। इसलिए नहीं कि सिगरेट पीना पाप है। किसी का क्या बिगड़ रहा है? सिगरेट पीने में क्या पाप हो सकता है? कोई आदमी धुआं बाहर ले जाता है, भीतर ले आता है; बाहर ले जाता है, भीतर ले जाता है। इसमें क्या पाप है? सिगरेट पीने में पाप नहीं है। बुद्धूपन जरूर है, मगर पाप नहीं है। मूढ़ता जरूर है, लेकिन पाप नहीं है। मूढ़ता इसलिए है कि शुद्ध हवा ले जा सकता था और प्राणायाम कर लेता। प्राणायाम ही कर रहा है। लेकिन नाहक हवा को गंदी करके कर रहा है। धूम्रपान एक तरह का मूढ़तापूर्ण प्राणायाम है। योग साध रहे हैं, मगर वह भी खराब करके। शुद्ध पानी था, उसमें पहले कीचड़ मिला लीख फिर उसको पी गए। 


अगर तुम जरा होशपूर्वक सिगरेट पियोगे पीना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि तुम्हें मूढ़ता दिखाई पड़ेगी। इतनी प्रकटता से दिखाई पड़ेगी कि हाथ की सिगरेट हाथ में रह जाएगी। 


पहले ऐसी व्यर्थ की चीजें छूटनी शुरू होंगी। फिर धीरेधीरे तुम जो गलत करते थे, जराजरा सी बात पर क्रुद्ध हो जाते थे, नाराज हो जाते थेवह छूटना शुरू हो जाएगा। क्योंकि बुद्ध ने कहा है: किसी दूसरे की भूल पर तुम्हारा क्रुद्ध होना ऐसे ही है जैसे किसी दूसरे की भूल पर अपने को दंड देना। जब जरा बोध जगेगा, तो तुम यह देखोगे कि गाली तो उसने दी और मैं भुनभुनाया जा रहा हूं और मैं जला जा रहा हूं और मैं विमुग्ध हुआ जा रहा हूं! यह तो पागलपन है! गाली जिसने दी वह भोगे। न मैंने दी न मैंने ली। 


जैसे ही तुम जागोगे, गाली का देनालेना बंद हो गया। अब तुम्हारे भीतर क्रोध नहीं उठेगा, दया उठेगी। क्षमाभाव उठेगाबेचारा! अभी भी गाली देने में पड़ा है। वे ही शब्द जो गीत बन सकते थे, अभी गाली बन रहे हैं। वही जीवनऊर्जाजो कमल बन सकती थी, अभी कीचड़ है। तो पहले तो बुरा छूटना शुरू हो जाएगा। और जैसेजैसे ही बुरा छुटेगा, तो जो ऊर्जा बुरे में नियोजित थी वह भले में संलग्न होने लगेगी। गाली छूटेगी तो गीत जन्मेगा। क्रोध छूटेगा, करुणा पैदा होगी। यह पहला चरण है। घृणा छूटेगी, प्रेम बढ़ेगा। 


फिर दूसरा चरणभले की भी समाप्ति होने लगेगी। क्योंकि प्रेम भी बिना घृणा के नहीं जी सकता। वह घृणा का ही दूसरा पहलू है। इसलिए तो कभी भी तुम चाहो तो घृणा प्रेम बन सकती है और प्रेम घृणा बन सकता है। क्रोध करुणा बन सकती है, करुणा क्रोध बन सकता है, वह परिवर्तनीय है। वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। तो पहले बुरा गया, सिक्के का एक पहलू विदा हुआ; फिर दूसरा पहलू भी विदा हो जाएगा, फिर भला भी विदा हो जाएगा। और शून्य की बढ़ती होगी। तुम्हारे भीतर शांति की बढ़ती होगी। न शुभ न अशुभ। तुम निर्विषय होने लगोगे, निर्विकार होने लगोगे।


और तीसरे चरण में, अंतिम चरण में, यह भी बोध न रह जाएगा कि मैं शून्य हो गया हूं, क्योंकि जब तक यह बोध कि मैं शून्य हूं, तब तक एक विचार अभी शेष हैमैं शून्य हूं, यह विचार शेष है। यह विचार भी जाना चाहिए। यह भी चला जाएगा। तब तुम रह गए निर्विचार, निर्विकल्प। उस को ही पतंजलि ने कहा है निर्बीज समाधि; बुद्ध ने कहा है निर्वाण; महावीर ने कहा है कैवल्य की अवस्था। जो नाम तुम्हें प्रीतिकर हो, वह नाम तुम दे सकते हो। 

अमी झरत बिसगत कँवल 

ओशो

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