अंधेरी रात थी, और कोई आधी रात गए एक रेगिस्तानी सराय में सौ ऊंटों का एक बड़ा काफिला आकर ठहरा। यात्री थके हुए थे और ऊंट भी थके हुए थे। काफिले के मालिक ने खूंटियां गड़वाईं और ऊंटों के लिए रस्सियां बंधवाईं, ताकि वे रात भर विश्राम कर सकें। लेकिन खूंटियां गाड़ते समय पता चला, ऊंट सौ थे, एक खूंटी कहीं खो गई थी। खूंटियां निन्यानबे थीं। एक ऊंट को खुला छोड़ना कठिन था। रात उसके भटक जाने की संभावना थी।
उन्होंने सराय के मालिक को जाकर कहा कि यदि एक खूंटी और रस्सी मिल जाए, तो बड़ी कृपा हो। हमारी एक खूंटी और रस्सी खो गई है। सराय के मालिक ने कहाः खूंटियां और रस्सियां तो हमारे पास नहीं हैं। लेकिन तुम ऐसा करो, खूंटी गाड़ दो और रस्सी बांध दो और ऊंट को कहो कि सो जाए।
वह काफिले का मालिक बहुत हैरान हुआ। उसने कहाः अगर खूंटी और रस्सी हमारे पास होती, तो हम खुद ही बांध देते। कौन सी खूंटी गाड़ दें और कौन सी रस्सी बांध दें?
उस मालिक ने कहाः जरूरी नहीं है कि असली खूंटी से ही ऊंट बांधा जाए; नकली खूंटी से भी ऊंट बांधा जा सकता है। तुम एक झूठी खूंटी ही ठोक दो और तुम एक झूठी रस्सी ही ऊंट के गले पर बांधो और उससे कहो कि वह सो जाए।
कोई रास्ता न था, उन्हें विश्वास तो न आया कि यह बात हो सकेगी। लेकिन उन्होंने झूठी खूंटी गाड़ी जो खूंटी नहीं थी, उसके ऊपर उन्होंने चोटें कीं। ऊंट ने चोटें सुनीं और समझा होगा कि खूंटी गाड़ी जा रही है। और जो रस्सी नहीं थी, उससे उन्होंने ऊंट के गले को बांधा और उसके गले पर हाथ फेरा। ऊंट ने समझा होगा कि रस्सी बांधी जा रही है। और फिर उन्होंने जैसे और सारे ऊंटों को कहा था कि सो जाओ, उसको भी कहा। ऊंट बैठ गया और सो गया।
सुबह जब काफिला रवाना होने लगा उस सराय से, तो उन्होंने निन्यानबे ऊंटों की खूंटियां उखाड़ीं और रस्सियां खोलीं। सौवें ऊंट की तो कोई खूंटी थी नहीं, न कोई रस्सी थी। इसलिए न तो उन्होंने खूंटी उखाड़ी और न रस्सी खोली। निन्यानबे ऊंट तो उठ कर खड़े हो गए लेकिन सौवें ऊंट ने उठने से इनकार कर दिया।
वे बहुत परेशान हुए। उन्होंने जाकर फिर उस सराय के बूढ़े मालिक को कहा कि तुमने कौन सा मंत्र किया है, हमारा ऊंट तो जमीन में बंधा रह गया, वह उठ नहीं रहा? सारे ऊंट उठ कर जाने को तैयार हो गए हैं, लेकिन सौवां ऊंट जमीन नहीं छोड़ता है, बैठा हुआ है।
उस बूढ़े मालिक ने कहा सराय के, पहले जाकर उसकी खूंटी उखाड़ो और उसकी रस्सी खोलो। उन्होंने कहाः लेकिन न तो कोई खूंटी है और न रस्सी है। उस मालिक ने कहाः तुम्हारे लिए नहीं होगी, लेकिन ऊंट के लिए है। जाओ, खूंटी उखाड़ो और रस्सी खोल दो।
वे गए, उन्होंने उस झूठी खूंटी को उखाड़ा, जो कि नहीं थी और वे रस्सियां खोलीं, जिनका कोई अस्तित्व न था। ऊंट उठ कर खड़ा हो गया और बाकी साथियों के साथ चलने को तैयार हो गया।
वे बहुत हैरान हुए! और उन्होंने उस मालिक को पूछा कि यह क्या रहस्य है इस बात का? उसने कहाः न केवल ऊंट बल्कि आदमी भी ऐसी खूंटियों से बंधे होते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं है और ऐसी रस्सियों से परतंत्र होते हैं जिनकी कोई सत्ता नहीं है।
इन आने वाले चार दिनों में मैं उन खूंटियों कि थोड़ी सी आपसे बात करूंगा जिनसे मनुष्य-जाति बंधी हुई है। और उन रस्सियों की थोड़ी सी चर्चा करूंगा जिनके द्वारा हम परतंत्र हैं। और बड़े मजे कि बात यह है कि वह ऊंट ही उस रात गलती में नहीं रहा था हजारों साल से पूरी मनुष्य-जाति उस तरह की गलती में है। तो उन खूंटियों की चर्चा करूंगा और उन रस्सियों की जिनकी कोई सत्ता नहीं है, लेकिन मनुष्य का जीवन जिनके कारण परतंत्र है। और जिनके कारण मनुष्य परमात्मा तक पहुंचने के लिए यात्रा नहीं कर पाता है। और जिनके कारण उसका जीवन जो हो सकता है वह नहीं हो पाता है, और जिनके कारण उसे जमीन पर घसीटना पड़ता है और सरकना पड़ता है, और आकाश की उड़ान उसके लिए संभव नहीं रह जाती।
उन खूंटियों की चर्चा इसलिए करूंगा कि यदि हम उन खूंटियों को समझ लें, और उस परतंत्रता को समझ लें, और उन रस्सियों को पहचान लें जो कि हमारी गर्दन में बंधी हैं, तो शायद उसे खोलने के लिए और उन खूंटियों को तोड़ने के लिए और कुछ भी करना जरूरी नहीं होगा। उन्हें जान लेना ही, उन्हें पहचान लेना ही, उन्हें समझ लेना ही उनकी मृत्यु बन जाती है।
क्या मनुष्य यन्त्र है?
ओशो
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