एक गांव में एक आदमी इतना मूर्ख था, इतना मूढ़ था कि सारा
गांव जानता था कि वह आदमी बहुत ही मूर्ख है। और वह स्वयं भी इस बात से इतना
आश्वस्त हो गया था कि वह मूर्ख है, कि वह बोलने से, एक शब्द भी मुंह से निकालने से घबराता था, क्योंकि
जैसे ही वह कुछ भी बोला कि लोग कहेंगे, ''यह श्री तुमने क्या
मूर्खता की बात कही! ''
वह आदमी इतना उदास हो गया कि वह एक फकीर के पास गया और उससे
पूछा, ''मैं
क्या करूं? मैं ऐसा प्रसिद्ध मूर्ख हूं कि मैं एक शब्द
भी नहीं बोल सकता। जरा—सा बोलते ही लोग कहने लग जाते हैं कि
चुप रहो। बीच में मत बोलो। ''
उस फकीर ने कहा,
''तुम एक काम करो। आज से किसी भी बात के लिए ही मत कहना। जो भी तुम
देखो, उसकी निंदा करना। ''
उस मूर्ख ने कहा,
''लेकिन वे लोग मेरी सुनेंगे ही नहीं। ''
फकीर ने कहा,
''तुम इस बात की चिंता ही मत करो। यदि वे कहें कि यह चित्र बड़ा
सुंदर है, तो तुम कहना. यह चित्र और सुंदर? इससे ज्यादा असुंदर चित्र पहले कभी नहीं देखा। यदि वे कहें कि यह उपन्यास
बड़ा मौलिक है तो तुम कहना, यह सिर्फ पुनरुक्ति है।
हजारों बार यही कहानी लिखी जा चुकी है। इसे सिद्ध करने की कोशिश मत करना। सिर्फ हर
चीज को इंकार करना, यही आधारभूत दर्शन बना लो। यदि कोई
कहे कि रात बडी सुंदर है, चांद बड़ा सुंदर है तो तुम
कहना, इसको तुम सुंदरता कहते हो? और वे इसके विपरीत साबित नहीं कर सकते। याद रखना, वे साबित नहीं कर सकते। ''
वह आदमी लौट कर वापस गांव गया। उसने हर बात के लिए ना कहना शुरू
कर दिया। एक सप्ताह में गांव में खबर फैल गई. ''हम लोग तो बड़े गलत थे। वह आदमी तो मूर्ख
नहीं है। वह तो बडा भारी आलोचक है; वह तो प्रतिभाशाली
व्यक्ति है। ''
ना कहने के लिए किसी बुद्धिमत्ता की जरूरत नहीं है। यदि तुम
महान प्रतिभाशाली व्यक्ति बनना चाहते हो तो इंकार करो, आलोचक हो जाओ। किसी भी
बात के लिए हा कहने की चिंता ही मत करो। जो भी कुछ दूसरा कहे, उसे पूरी तरह से इंकार कर दो। और कोई भी इस बात को साबित नहीं कर सकता, क्योंकि किसी भी बात को साबित करना बड़ा कठिन है। इंकार करना सबसे आसान
तरकीब है।
जब तुम उच्चतर अनुभवों के बारे में बात कर रहे हो तो कोई भी
तुम्हें इंकार कर सकता है—कोई भी मूढ़ इंकार कर सकता है—और तुम अन्यथा साबित
नहीं कर सकते। अत: बड़े सजग रहना। उसके बारे में कभी बात नहीं करना, जब तक कि कोई बहुत ही सहानुभूति से भरा हृदय सुनने को, ग्रहण करने को राजी न हो। और बहस मत करना। यदि तुम्हें कुछ घटित हुआ है तो
तुम्हारा होना ही एक प्रमाण बन जायेगा। किसी को समझाने में अपनी ऊर्जा बरबाद मत करना। तुम्हारे
भीतर जितनी ऊर्जा है उसको स्वयं के रूपांतरण में लगाओ। तुम्हारा रूपांतरण बहुतों
की सहायता करेगा; तुम्हारा तर्क किसी के भी काम 'नहीं पड़ेगा।
एक बार तुम रूपांतरित हो जाओ, तो लोग अपने से ही तुम्हारे प्रेम में
पड़ने लगेंगे। वे ग्राहक हो जायेंगे, निमंत्रित करने
लगेंगे। वे तुम्हारे आतिथेय हो जायेंगे। और जो कुछ भी तुम कहोगे वे उसे बीज की तरह
ग्रहण कर लेंगे, वे उसे अपने हृदय में ले जायेंगे।
लेकिन किसी को मनवा लेने की कोशिश मत करना, न ही तर्क
करना; उसके बारे में तार्किक अथवा बौद्धिक मत होना।
पूरी बात ही इतनी बेबूझ ते, इतनी विरोधाभासी है!
यह विरोधाभासी है क्योंकि होशपूर्वक पागल होने से तुम सारे
पागलपन के पार चले जाते हो। कोई व्यक्ति जो इस विधि का प्रयोग कर रहा है, कभी पागल नहीं हो
सकता। यह असंभव है, क्योंकि तूम अपनी सारी विक्षिप्तता
बाहर फेंके दे रहे हो, इकट्ठी नहीं कर रहे हो। और जब तक
तुम इकट्ठी न करो, तूम विक्षिप्त नहीं हो सकते।
तुम रोज अपने को स्वच्छ कर रहे हो; तुम रोज एक निर्जरा से
गुजर रहे हो। तुम बदल रहे हो, अपनी विक्षिप्तता को
ध्यान में रूपातरित कर रहे हो। इस विधि को करते हुए, जो
कि ऊपर से इतनी विक्षिप्ततापूर्ण है, तुम एक संभावना
निर्मित कर रहे हो जहा कि वास्तविक स्वास्थ्य पैदा हो सकता है। यह बात बड़ी
विरोधाभासी है; इसीलिए मैं इसे बेबूझ कहता हूं।
हंसो, गाओ, नाचो, लेकिन
तर्क मत करो। तुम्हारा नृत्य 'संक्रामक हो सकता है, तुम्हारा गीत किसी को छू सकता है। तुम्हारे हृदय की गहराई से निकला हास्य
किसी के हृदय को स्पर्श कर सकता है। अधिक आनदपूर्ण, नाचते
हुए, उत्सव मनाते हुए रहो, जैसे
कि हर क्षण एक आशीर्वाद हो, जैसे कि हर क्षण एक अहोभाव
हो। और प्रत्येक पल को महोत्सव बना लो।
इस शिविर के लिए मेरे ये अंतिम शब्द हैं : प्रत्येक क्षण को
महोत्सव बना लो... तब फिर तुम्हे परमात्मा को नहीं खोजना पड़ेगा। तुम जहाँ भी होओगे, परमात्मा खुद तुम्हें
खोजता हुआ आ जायेगा।
केनोउपनिषद
ओशो
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