कल भी ऐसा था—ऐसा ही दुःख, ऐसी ही पीड़ा, ऐसा ही संताप। वैसा ही
आज भी है। और कुछ तुमने न किया तो कल भी ऐसा ही होगा। कल भी अंधविश्वास थे
और आदमी उनकी जंजीरों में बंधा था—आज भी बंधा है। और अगर सजग न हुए और
जंजीरें तोड़ी नहीं, तो कल भी बंधे रहोगे।
कल भी जो सत्य के मार्ग पर चले उन्हें सूली थी आज भी है। लेकिन धन्यभागी हैं वे, जो सत्य के मार्ग पर चल कर सूली पर चढ़ जाते हैं, क्योंकि उन्हीं का असली सिंहासन है।
जो प्रभु के मार्ग पर मिटना जानते हैं, वही जीवन की वास्तविक संपदा के मालिक हो पाते हैं। जो अपने को बचाते हैं, वे अपने को नष्ट कर लेते हैं। जो अपनी सुरक्षा कर रहा है, वह परमात्मा से दूर और दूर पड़ता चला जाएगा। जो साहस करता है दुस्साहस करता है, छलांग लगाता है, वही परमात्मा के पास पहुंच पाता है।
धर्म कायरों की बात नहीं है। और ऐसा मजा हुआ है कि धर्म कायरों की बात ही हो गया है। मंदिर—मस्जिदों में मिलता कौन है? — कायर और हरे हुए लोग और भयभीत लोग। और धर्म कायर का मामला ही नहीं। वह उसका अभियान है। जो सब दांव पर लगाने को तत्पर है, उसका अभियान है।
कल भी थीं जहनीयतें मजरूह ओहामो—गुमा। अंधविश्वासों से कल भी बुद्धि घायल थी। शकों, और संदेहों, अनास्थाओ से, कल भी मनुष्य की आत्मा पर घाव थे। कुश्तए—ईहाम है दुनियाए इसा आज भी। और आज भी अंधविश्वासों से बरबाद है।
तुमने जिसे धर्म समझा है, धर्म नहीं है, सिर्फ अंधविश्वास है। अंधविश्वास का अर्थ होता है— जाना नहीं और मान लिया। देखा नहीं और मान लिया। देखने में श्रम करना पड़ता है। देखने के लिए आंख माजनी पड़ती है। देखने के लिए आंख की धूल झाड़नी पड़ती है। देखने के लिए आंख पर नया काजल चढ़ाना होता है। आंख खोलने की झंझट कौन करे! आंख साफ करने का उपद्रव कौन ले! इसलिए लोग आंख बंद किए—किए ही मान लेते हैं कि प्रकाश है। उनका मानना सिर्फ झंझट से बचाना है। प्रकाश की खोज में कौन जाए? क्योंकि वहां तो कीमत चुकानी पड़ती है।
इसलिए अकसर ऐसे लोगों की बातें, जो कहते हैं—कुछ करने की जरूरत नहीं है, बस राम— राम जप लो और सब हो जाएगा। कि रोज जाकर मंदिर में सिर झुका लो और सब हो जाएगा। कि सुबह एक प्रार्थना दोहरा लो तोतों की तरह यंत्रवत और सब हो जाएगा। ऐसे लोगों की बातें लोगों को रुच जाती है। मनुष्य के अकर्मण्य स्वभाव से इनका मेल बैठ जाता है।
ओशो
कल भी जो सत्य के मार्ग पर चले उन्हें सूली थी आज भी है। लेकिन धन्यभागी हैं वे, जो सत्य के मार्ग पर चल कर सूली पर चढ़ जाते हैं, क्योंकि उन्हीं का असली सिंहासन है।
जो प्रभु के मार्ग पर मिटना जानते हैं, वही जीवन की वास्तविक संपदा के मालिक हो पाते हैं। जो अपने को बचाते हैं, वे अपने को नष्ट कर लेते हैं। जो अपनी सुरक्षा कर रहा है, वह परमात्मा से दूर और दूर पड़ता चला जाएगा। जो साहस करता है दुस्साहस करता है, छलांग लगाता है, वही परमात्मा के पास पहुंच पाता है।
धर्म कायरों की बात नहीं है। और ऐसा मजा हुआ है कि धर्म कायरों की बात ही हो गया है। मंदिर—मस्जिदों में मिलता कौन है? — कायर और हरे हुए लोग और भयभीत लोग। और धर्म कायर का मामला ही नहीं। वह उसका अभियान है। जो सब दांव पर लगाने को तत्पर है, उसका अभियान है।
कल भी थीं जहनीयतें मजरूह ओहामो—गुमा। अंधविश्वासों से कल भी बुद्धि घायल थी। शकों, और संदेहों, अनास्थाओ से, कल भी मनुष्य की आत्मा पर घाव थे। कुश्तए—ईहाम है दुनियाए इसा आज भी। और आज भी अंधविश्वासों से बरबाद है।
तुमने जिसे धर्म समझा है, धर्म नहीं है, सिर्फ अंधविश्वास है। अंधविश्वास का अर्थ होता है— जाना नहीं और मान लिया। देखा नहीं और मान लिया। देखने में श्रम करना पड़ता है। देखने के लिए आंख माजनी पड़ती है। देखने के लिए आंख की धूल झाड़नी पड़ती है। देखने के लिए आंख पर नया काजल चढ़ाना होता है। आंख खोलने की झंझट कौन करे! आंख साफ करने का उपद्रव कौन ले! इसलिए लोग आंख बंद किए—किए ही मान लेते हैं कि प्रकाश है। उनका मानना सिर्फ झंझट से बचाना है। प्रकाश की खोज में कौन जाए? क्योंकि वहां तो कीमत चुकानी पड़ती है।
इसलिए अकसर ऐसे लोगों की बातें, जो कहते हैं—कुछ करने की जरूरत नहीं है, बस राम— राम जप लो और सब हो जाएगा। कि रोज जाकर मंदिर में सिर झुका लो और सब हो जाएगा। कि सुबह एक प्रार्थना दोहरा लो तोतों की तरह यंत्रवत और सब हो जाएगा। ऐसे लोगों की बातें लोगों को रुच जाती है। मनुष्य के अकर्मण्य स्वभाव से इनका मेल बैठ जाता है।
ओशो