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Saturday, September 3, 2016

तथ्य - सत्य



एक ऐतिहासिक घटना तुमसे कहूँ। सुकरात अपने सत्य के लिए मरा। क्योंकि सत्य इतना मूल्यवान था कि जीवन भी उसके लिए चुका देना कोई महँगा सौदा नहीं था। जीसस अपने सत्य के लिए सूली चढ़े। क्योंकि सत्य इतना मूल्यवान था कि एक जिंदगी क्या, हजार जिंदगियाँ सूली चढ़ जाएँ तो भी सत्य को छोड़ा नहीं जा सकता। मंसूर ने अपने हाथ पैर कटवा डाले, जब उसके हाथ पैर काटे जा रहे थे तो वह आकाश की तरफ देख कर हँसा। भीड़ इकट्ठी थी, लोगों ने पूछा कि मंसूर, तुम क्यों हँसते हो? तो उसने कहा मैं इसलिए हँस रहा हूँ, मैं परमात्मा को कहना चाहता हूँ कि तू मुझे धोखा न दे पाएगा। तू जीवन चाहे जीवन ले ले, मगर मैंने तुझे देख लिया है, अब मैं तुझे भुला नहीं सकता। मैंने तुझे पहचान लिया, अब तू सब छीन ले तो भी मैं तुझे छोड़ नहीं सकता। मैं तुझे हर हालत में पकड़े रहूँगा। इसलिए हँस रहा हूँ, कि यह मेरी कसौटी हो रही है, परीक्षा ले रहा है वह। और परीक्षा में जीत रहा हूँ, वह हार रहा है। क्योंकि उसका उपाय व्यर्थ हुआ जा रहा है।


लेकिन गैलेलियो ऐसा नहीं कर सका। गैलेलियो ने कहा कि सूरज जमीन का चक्कर नहीं लगाता। गैलेलियो के पहले तक आदमी मानते रहे थे कि सूरज पृथ्वी का चक्कर लगाता है ऐसा दिखायी भी पड़ता है रोज हमें; सुबह ऊगता है, फिर आधा चक्कर लगाकर साँझ डूब जाता है, ऊगता पूरब में, डूब जाता पश्चिम में। चक्कर बिलकुल साफ लग रहा है, सीधा है। पृथ्वी ठहरी मालूम पड़ती है, सूरज चक्कर लगाता हुआ मालूम पड़ता है। यह हमारा सामान्य अनुभव है। इसी सामान्य अनुभव के आधार पर मनुष्यजाति सदा से सोचती रही थी कि सूरज पृथ्वी का चक्कर लगा रहा है।
गैलेलियो ने उल्टा अनुभव पाया। वैज्ञानिक प्रयोग से पाया कि पृथ्वी सूरज का चक्कर लगा रही है। और चूँकि पृथ्वी इतनी बड़ी है और हम इतने छोटे हैं इसलिए हमें पृथ्वी की गति का पता नहीं चलता। और भ्रांति हमें पैदा हो रही है। कभी कभी तुम्हें हो जाती है, तुम ट्रेन में बैठे हो, स्टेशन पर खड़ी है गाड़ी, बगल की गाड़ी चलती है और तुम्हें लगता है अपनी गाड़ी चली। या अपनी गाड़ी चलती है और तुम्हें लगता है बगल की गाड़ी चली। ऐसी भ्रांति अक्सर हो जाती है। चल तो रही है पृथ्वी, लग रहा है कि सूरज चल रहा है। गैलेलियो ने बड़े प्रमाणिक रूप से सिद्ध कर दिया कि सूरज नहीं चल रहा है, पृथ्वी चल रही है। मगर चर्च बर्दाश्त नहीं कर सका, क्योंकि बाइबिल कहती है सूरज चल रहा है। गैलेलियो को अदालत में बुलाया गया और उससे कहा गया कि तुम क्षमा माँग लो। उसने क्षमा माँग ली।

उसकी क्षमा बड़ी विचारपूर्ण है।

यह सत्य कुछ ऐसा नहीं था जिसके लिए जीवन गँवाया जाए। गैलेलियो क्यों जीवन गँवाए? मेरे भी बात समझ में आती है क्यों जीवन गँवाए? सूरज लगाए चक्कर कि पृथ्वी लगाए, इससे गैलेलियो का क्या बनता बिगड़ता है? इस सत्य में गैलेलियो के प्राण नहीं समाए हुए हैं। यह सत्य जीसस जैसा सत्य नहीं है, न सुकरात जैसा, न मैसूर जैसा; जो अपने से भी मूल्यवान है। यह वैज्ञानिक सत्य है। वे धार्मिक सत्य थे।


फर्क समझना, यह गणित का सत्य है, वे हृदय के सत्य थे। गैलेलियो ने कहा  मैं क्षमा माँग लेता हूँ। उसने घुटने टेक कर क्षमा माँग ली। क्षमा में उसने जो वचन कहे वे बड़ी होशियारी के हैं। गणित का आदमी था। उसने कहा  मैं क्षमा माँग लेता हूँ कि मैंने जो वक्तव्य दिया वह ठीक नहीं है, यद्यपि मैं यह निवेदन करना चाहता हूँ कि मेरे कहने से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, चक्कर तो पृथ्वी ही लगा रही है। मैं क्षमा माँगता हूँ, इसमें मैं कोई एतराज नहीं करता कि मुझसे भूल हो गयी जो मैने यह कहा, मगर यह सिर्फ मेरी भूल. है, अब मैं इसमें क्या कर सकता हूँ, अगर पृथ्वी चक्कर लगा रही है तो यह तुम पृथ्वी से क्षमा मँगवा लो, मगर लगा तो रही है पृथ्वी ही चक्कर। लेकिन उसने बार—बार याद दिला दिया अदालत को कि याद रखना, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि मैं क्षमा नहीं माँगता। मैं तो क्षमा माँगने को तैयार हूँ, मेरा क्या लेना देना, कोई लगाए चक्कर, क्या फर्क पड़ता है मुझे, मैं जिंदगी गँवाने को तैयार नहीं हूँ। और मुझे लगता है कि बात ठीक है। गैलेलियो क्यों जिंदगी गँवाए?


यह कोई सत्य बड़ा सत्य नहीं है। इसको सत्य कहना भी ठीक नहीं है। मेरे हिसाब से तो सत्य तो वही है जिसके लिए तुम जीवन देने को तैयार हो जाओ। सत्य तो वही है जिसके लिए आदमी जीए और जरूरत पड़े तो मरे। शेष सब तथ्य हैं, सत्य नहीं।

और सत्य और तथ्य का भेद समझ लेना। तथ्य गणित के होते हैं, सत्य हृदय के होते हैं।

संतो मगन भया मन मेरा 

ओशो 

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