एक अमावस की रात में, घनी अंधेरी रात में एक उल्लू एक दरख्त पर बैठा हुआ था। अंधेरी रात थी, दो छछूंदर दरख्त के नीचे किसी पोल में रहते होंगे, वे निकले--डरे हुए से, कोई उन्हें देख न ले, कोई पकड़ न ले। तभी उल्लू ने ऊपर से कहा, हू!
छछूंदरों
ने
समझा कि यह उल्लू क्या अंग्रेजी
बोलता है! हालांकि
कोई भी उल्लू देशी भाषा बोलना पसंद नहीं करते हैं। इसलिए शक में कोई आश्चर्य
नहीं था। छछूंदरों
ने
भी
बहुत से अखबार देखे और पढ़े-सुने थे, इसलिए थोड़ी-बहुत अंग्रेजी
वे
भी
समझने लगे थे। उन्होंने
समझा कि यह पूछ रहा है--कौन? हू? उन्होंने
समझा कि यह पूछ रहा है--कौन? छछूंदर तो वैसे ही डरे हुए थे निकलते वक्त, तो उन्होंने
देखा कि अंधेरे में भी कौन देख रहा है और किसने पूछा--कौन? तो उन्होंने
पूछा,
क्या आप हमको देख रहे हैं?
उल्लू ने फिर कहा, हू! लेकिन छछूंदरों
ने
समझा कि यू! यानी उन्होंने
कहा कि तुम! अरे हम तुम्हें
भलीभांति पहचानते हैं। छछूंदर तो बहुत घबड़ा गए, उन्होंने
कहा,
क्या आपको अंधेरे में दिखाई पड़ता है? अंधेरे में तो किसी को दिखाई नहीं पड़ता। सतयुग में ऐसा होता था कि कुछ लोगों को अंधेरे में दिखाई पड़ता था। सर्वज्ञ
होते थे, त्रिकालज्ञ
होते थे, अंधेरे में देखने वाले लोग होते थे। अब यहां कलियुग में कहां कि अंधेरे में किसी को दिखाई पड़ता हो।
उल्लू ने फिर कहा, हू! छछूंदरों
ने
समझा कि वह कह रहा है टू। वे दो ही छछूंदर थे, वे तो घबड़ा गए। कहा कि निश्चित
ही
कोई सतयुगी पुरुष, शायद धर्म की हानि हो गई है, इस कारण अवतार लेकर मौजूद हुए हैं। उन्होंने
साष्टांग दंडवत किया और कहा, कितना अच्छा न हो कि आप सब राज्य का कारोबार
सम्हाल लें। यहां तो सब गड़बड़ हुआ जा रहा है। सब राज्य का कारोबार
आप
सम्हाल लें तो कितना अच्छा न हो। वे गए और उन्होंने
अपने राज्य के एक मंत्री को जाकर निवेदन किया कि अब राज्य के नेता के लिए किसी को खोजने की जरूरत नहीं। एक ऐसे प्रज्ञाशील
व्यक्तित्व को हम खोज कर आ गए हैं, जो न केवल अंग्रेजी
बोलना जानता है, बल्कि अच्छी अंग्रेजी
बोलना जानता है। और अगर भारत के बाहर जाए तो बहुत से विश्वविद्यालय
उसको डॉक्ट्रेट देंगे। इसमें कोई शक-शुबहा नहीं। और भी बड़े आश्चर्य
की
बात है, उसे अंधेरे में दिखाई पड़ता है। और जिसको अंधेरे में दिखाई पड़ता है उसके हाथ में अगर मुल्क हो, तो सब ठीक अपने आप हो जाएगा। अंधेरे में दिखाई पड़ना!
मंत्री अभी-अभी चुना गया एक गधा था। ऐसा नहीं था कि उस राज्य में और लोग नहीं थे, लेकिन गधों के अतिरिक्त
कोई मंत्री बनने
को राजी
नहीं हो
रहा था।
वह अभी
नया-नया
चुना गया
था। पढ़ा-लिखा तो
नहीं था।
इससे बहुत
प्रभावित हुआ
कि अंग्रेजी भी बोलते हैं! और
अंधेरे में
भी देखते हैं! तब
तो जरूर
मैं चलूं,
उनकी परीक्षा कर लूं।
और अगर
यह बात
सच है
तो क्यों न उन्हें राष्ट्रपति बना
दिया जाए!
वह
गया। और
अपने दो-चार साथी
मंत्रियों को
भी ले
गया। उसी
वक्त वे
गए। राज्य के लिए
नेता की
जरूरत थी।
उन्होंने जाकर
पूछा, कुछ
प्रश्न पूछे। और प्रश्न पूछने में
उनको वैसे
ही दिक्कत हो गई
जैसे मंत्रियों को किसी
का इंटरव्यू लेते वक्त
होती है
कि क्या
पूछें? उत्तर देने वाले
की दिक्कत तो दूर
है, पूछने वाले की
भी दिक्कत होती है
कि क्या
पूछें? तो
उन्होंने जाकर
पूछा, क्या
आप बता
सकते हैं
हमारे पास
कितने छछूंदर बैठे हैं?
उल्लू ने
कहा, हू!
छछूंदरों ने
कहा, देखो,
कहा न
उसने टू।
गधे ने
कहा कि
उत्तर तो
बिलकुल साफ
दिया। अंधेरे में इसको
दो छछूंदर दिखाई पड़
रहे हैं!
गधे ने
पूछा, हमारे कितने कान
हैं? उसने
कहा, हू!
फिर उन्होंने समझा टू।
कहा कि
इसको क्या
अंधेरे में
दिखाई पड़ता
है? और
अंग्रेजी भी
बिलकुल साफ
बोलता है!
तो उन्होंने प्रार्थना की
कि आप
कृपा करें
और राष्ट्रपति हो जाएं। उल्लू तो
राजी हो
गया। कौन
उल्लू राजी
नहीं हो
जाएगा? वे
वापस लौटे। कहा कि
कल दोपहर में आपका
स्वागत होगा,
ओथ सेरेमनी हो जाएगी। वहीं फिर
आपको शपथ-ग्रहण हो
जाएगी। कल
दोपहर आप
आ जाएं। राजभवन आ
जाएं।
वे
गए तो
रास्ते में
एक लोमड़ी मिल गई।
वह पत्रकार थी। उससे
उस मंत्री महोदय ने
कहा कि
राष्ट्रपति तो
मिल गए,
अब देश
का भाग्य सुधर जाएगा। न केवल
वे अंग्रेजी जानते हैं
बल्कि अच्छी तरह अंग्रेजी जानते हैं।
हो सकता
है इंग्लैंड में ही
पैदा हुए
हों। यह
भी हो
सकता है
कम से
कम एंग्लो इंडियन हों।
अगर यह
भी न
हो तो
इतना तो
तय है
कि वे
किसी साहबी खानदान से
संबंधित हैं।
और फिर
बड़ी बात
यह है
कि उनको
रात में
दिखाई भी
पड़ता है।
और मुल्क में अंधेरा भारी है,
जिसको रात
में दिखाई पड़ता है
वह तो
नौका खेकर
ले जाएगा। यही तो
कठिनाई है
कि रात
में किसी
को दिखाई नहीं पड़ता
और मुल्क में घना
अंधेरा है।
लेकिन लोमड़ी तो
पत्रकार थी,
उसने जरा
तर्क उठाया। उसने कहा,
इसका क्या
पक्का भरोसा कि जिसको रात में
दिखाई पड़ता
हो उसको
दिन में
भी दिखाई पड़ता होगा?
लेकिन सभी गधे
हंसने लगे,
वह जो
सब मंत्रिमंडल था वह
सभी हंसने लगा। उसने
कहा, कैसे
पागल हो!
यह तो
बिलकुल इल्लाजिकल बातें कह
रहे हो।
अरे यह
तो सीधा
तर्क है,
जिसको रात
तक में
दिखाई पड़ता
है उसको
दिन में
दिखाई नहीं
पड़ेगा? यह
तो सीधे
तर्क की
बात है,
सीधा गणित
है। जिसको रात में
दिखाई पड़ता
है उसको
दिन में
तो दिखाई पड़ेगा ही!
जिसको रात
तक में
दिखाई पड़ता
है! वे
सब हंसने लगे। उस
लोमड़ी की
बात तो
टाल दी
गई।
दूसरे दिन उल्लू सज-धज
कर चला।
लेकिन तब
दोपहर थी,
सूरज ऊपर
था। अब
उसकी बड़ी
मुसीबत हो
गई। उसको
दिखाई नहीं
पड़ रहा
है, वह
किसी तरह
चल रहा
है। तो
वह धीरे-धीरे चलने
लगा। क्योंकि टकराने का
डर था।
लेकिन लोगों ने कहा
कि ठीक
राष्ट्रपति चुना,
कितनी गंभीर चाल से
चल रहा
है! कितना! जरूर कुलीन है, किसी
अच्छे परिवार का है।
चाल देखो
कितनी धीमी,
आहिस्ता, कितनी गंभीर! वह
गंभीर चलता
हुआ, वह
अपना डरा
हुआ है,
क्योंकि अब
उसको दिन
में दिखाई नहीं पड़
रहा है।
बहुत थोड़ी-थोड़ी झलक
मिल रही
है। आंखें उसकी झपी
जाती हैं।
लेकिन वह
अपने को
साधे हुए
है, संयत,
चाल-ढाल
सब संयत। वह वहां
पहुंचा। उन
सबने स्वागत किया, उसको
मालाएं पहनाईं। वह उस
राज्य का
राष्ट्रपति हो
गया।
अब
वह राष्ट्र को आगे
बढ़ाने के
लिए आगे
बढ़ा। अब
दिन का
वक्त था,
दोपहर तेज
थी। देर
तक धूप
पड़ने से
और देर
तक फूलमालाएं और फोटोग्राफर और उनके
फ्लैश लाइट
की चमक,
उल्लू बड़ी
दिक्कत में
पड़ गया।
उसको अब
कुछ भी
नहीं सूझ
रहा था।
अब वह
किसी तरह
वापस भाग
कर अपने
घर पहुंचना चाहता था
कि इस
झंझट से
छूटें और
अंधे होने
का पता
न चल
जाए। वह
चला। तो
अब जब
नेता चला
तो उसके
पीछे सारे
जानवर चले,
सारा मंत्रिमंडल चला।
अब
उल्लू को
कुछ दिखाई नहीं पड़
रहा है,
वह गङ्ढों में गिर
पड़ता है,
रास्तों के
उलटे-सीधे
हिस्सों पर
पहुंच जाता
है। तो
उसके पीछे
उचक-उचक
कर वे
जानवर भी
गिरने लगे
जिनको दिखाई पड़ता था।
क्योंकि जहां
नेता जाता
है वहां
अनुयायी जाते
हैं। और
जब उनको
चोटें लगने
लगीं और
टांगें टूटने लगीं तो
उस उल्लू ने कहा,
घबड़ाओ मत,
यह तो
बनते हुए
राष्ट्र में
अनेक मुसीबतें आती ही
हैं और
अनेक चोटें आती हैं।
और जो
शहीद हो
जाएंगे वे
भी न
घबड़ाएं। शहीदों की कब्रों पर जुड़ेंगे मेले, उनकी
चिताओं पर
मेले भरेंगे। इसलिए बिलकुल मत घबड़ाओ।
लेकिन कुछ मरने
लगे पक्षी,
पशु। कुछ
तो छोड़
कर भाग
गए। लेकिन मंत्रिमंडल के
लोग कहां
जाते भाग
कर? क्योंकि जो मंत्रिमंडल में घुस
जाए उसके
लिए बाहर
दुनिया में
फिर भागने की कोई
जगह नहीं
रह जाती। वह तो
और ऊपर
ही ऊपर
जा सकता
है, पीछे
नहीं जा
सकता। तो
उनको तो
राष्ट्रपति के
पीछे जाना
ही था,
तो वे
तो गए।
गिरने लगे,
लेकिन जहां
राष्ट्रपति जाए
वहीं उनको
जाना पड़े।
अनेक उसमें मर गए।
तो राष्ट्रपति ने कहा,
घबड़ाओ मत,
तुम्हारी पत्नियों को महावीर चक्र प्रदान करेंगे, बड़े-बड़े ओहदे
देंगे, तुम्हारे फोटो लगाएंगे,
देश में
तुम्हारा नाम
होगा। देश
ऐसे ही
तो बनता
है। जब
कोई मरेगा नहीं, तो
देश कुर्बानी नहीं देगा
तो बनेगा कैसे? बात
तो ठीक
ही थी।
और विश्वास से पीछा
करो, क्योंकि विश्वास फलदायी है। सोच-विचार की
इसमें जरूरत नहीं है।
सोच-विचार सभी करने
लगेंगे तो
मुल्क मर
जाएगा। सोच-विचार मुझ
पर छोड़ो।
आखिरकार किसी तरह
वे उस
रास्ते पर
पहुंच गए
जो राजपथ था, कांक्रीट का बना
हुआ बड़ा
पथ था,
तो सब
मंत्रिमंडल के
लोग प्रसन्न हुए कि
देखो आखिर,
मुसीबत झेलीं,
परेशानी हुई,
कई योजनाएं गुजरीं, लेकिन फिर आ
तो गए।
हम आ
तो गए
आखिर राजपथ पर। जब
नेता का
पीछा किया,
कुर्बानी दी,
तो आखिर
राजपथ मिल
गया, आ
गए राजपथ पर। वह
राजपथ पर
बीच में
उल्लू चलने
लगा, आसपास उसका मंत्रिमंडल,
और बाकी
जनता तो
घसिट कर
पीछे रह
गई थी,
अब तो
कोई साथ
नहीं था।
जनता में
से तो
अब कोई
साथ नहीं
था। मंत्रिमंडल था और
राष्ट्रपति थे
और वे
चले जा
रहे थे।
और तभी
उधर से
जोर से
एक ट्रक
कोई पचास-साठ मील
की रफ्तार से आता
हुआ, लेकिन उल्लू को
तो दिखाई नहीं पड़ता
था, वह
तो अकड़
से चला
जा रहा
था, उसके
आसपास मंत्रिमंडल चल रहा
था। लेकिन गधों को
दिखाई पड़ता
था। गधों
ने कहा
कि देखिए तो, सामने से ट्रक
आ रहा
है! आप
डरते नहीं
हैं? बड़े
निर्भय मालूम होते हैं!
उल्लू ने
कहा, हू!
कौन डरता
है!
अब
जब नेता
न डरे
तो अनुयायी क्यों डरे।
और डरे
तो फिर
मंत्रिमंडल में
रहने की
गुंजाइश न
रह जाए।
तो वे
बढ़ते ही
गए, बढ़ते
ही गए...आखिर वह
ट्रक ऊपर
ही आ
गया और
वह राष्ट्रपति और मंत्रिमंडल,
सब उसके
नीचे दब
गए। वे
सब लाशें पड़ी रह
गईं। पीछे
ट्रक पर,
जहां लिखा
रहता है
हार्न प्लीज,
वहां यह
नहीं लिखा
था, वहां
लिखा था:
समय, काल।
यह
छोटी सी
कहानी मैं
कहता हूं।
और जिंदगी की धुरी
करीब-करीब
ऐसी मूर्खताओं के किनारे पर बहुत
अनेक-अनेक
सदियों से
घूमती रही
है और
आज भी
घूम रही
है। और
ऐसा नहीं
कि किसी
एक देश
का ऐसा
दुर्भाग्य हो,
सारी दुनिया का ऐसा
दुर्भाग्य है।
जब
तक राजनीति सर्वोपरि है
तब तक
मनुष्य के
जीवन में
न तो
आनंद हो
सकता है,
न शांति हो सकती
है। क्योंकि राजनीति सर्वोपरि होने का
अर्थ यह
है: इस
जीवन में,
इस जगत
में जो
सबसे ज्यादा एंबीशस होंगे,
सबसे ज्यादा महत्वाकांक्षी होंगे,
वे सबसे
ऊपर पहुंच जाएंगे। और
जो महत्वाकांक्षी है
उसे अपने
अतिरिक्त किसी
से कोई
मतलब नहीं
होता। वह
बातें सब
करता हो,
उसे अपने
अतिरिक्त और
कोई मतलब
नहीं होता। अगर उसे
अपने अतिरिक्त किसी और
से मतलब
होता तो
वह महत्वाकांक्षी नहीं
हो सकता
था। महत्वाकांक्षी व्यक्ति हिंसक होता
है। और
महत्वाकांक्षी व्यक्ति अंधा होता
है। महत्वाकांक्षा अंधा
कर देती
है। वह
कुछ भी
कर सकता
है। और
दुनिया भर
में राजनीति इतनी प्रभावी है, उसकी
वजह से
जो जितने ज्यादा महत्वाकांक्षी लोग
हैं, जितने अंधे, जितने क्रूर और
कठोर और
जितने हिंसक,
वे सब
ऊपर पहुंच जाते हैं।
और वे
जीवन को
परिचालित करते
हैं। और
उनके द्वारा जीवन चलता
है। इसीलिए तो आए
दिन रोज
युद्ध हो
जाते हैं
दुनिया में।
तीन
हजार साल
में साढ़े
चार हजार
युद्ध हुए
हैं मनुष्य-जाति के
इतिहास में!
यह घबड़ाने वाला तथ्य
नहीं मालूम होता आपको?
यह कितना आश्चर्यजनक है!
तीन हजार
साल के
इतिहास में
साढ़े चार
हजार लड़ाइयां! मसलन रोज
ही लड़ाई
चलती रही
है। और
जिन दिनों लड़ाई नहीं
चली है
वे दिन
शांति के
दिन नहीं
रहे हैं,
नई लड़ाई
की तैयारी के दिन
रहे हैं।
उस वक्त
नई लड़ाई
की तैयारी चलती रही
है। मतलब
आदमी के
इतिहास को
दो हिस्सों में बांटा जा सकता
है--लड़ने
का समय
और लड़ाई
की तैयारी करने का
समय। शांति जैसी चीज
आज तक
न जानी
गई है
और न
परिचित है।
और यह
कैसे हुआ
है?
राजनीति केंद्र है,
तब तक
ऐसा ही
होगा! क्योंकि जो महत्वाकांक्षी है
वह हिंसक है, और
जो हिंसक है वह
अंततः युद्ध में ले
जाएगा। चाहे
किसी भी
मार्ग से
जाए, राजनीति की अंतिम परिणति युद्ध है। राजनैतिक दृष्टि ही
युद्ध और
हिंसा पर
खड़ी होती
है। अगर
मेरे भीतर
राजनीतिज्ञ होता
है तो
मैं कोशिश करता हूं
कि आपको
पीछे हटाऊं और मैं
आगे जाऊं। मेरे मन
में पोलिटीशियन का अर्थ
यह नहीं
है कि
जो आदमी
सिर्फ इलेक्शन लड़ता है
वह राजनीतिज्ञ हो गया।
मेरी दृष्टि में राजनीतिज्ञ से अर्थ
है वह
व्यक्ति जो
दूसरों को
पीछे हटा
कर खुद
आगे जाना
चाहता है--किसी भी
दिशा में।
जब सारी
दुनिया इस
भांति पोलिटिकल माइंडेड होगी,
इस भांति महत्वाकांक्षी होगी
और दूसरों को पीछे
हटा कर
आगे जाना
चाहेगी, तो
दुनिया में
संघर्ष और
कलह अनिवार्य है। व्यक्ति यही करते
हैं, समाज
यही करते
हैं, राष्ट्र यही करते
हैं, तो
फिर युद्ध अनिवार्य है।
धार्मिक व्यक्ति राजनैतिक व्यक्ति से
ठीक दूसरे छोर पर
खड़ा होता
है। धार्मिक व्यक्ति का
आग्रह यह
है, उसकी
सारी की
सारी चिंतना और साधना यह है
कि वह
अंतिम होने
में समर्थ हो जाए।
और राजनैतिक की चिंतना यह है
कि वह
प्रथम होने
में समर्थ हो जाए।
समाधी कमल
ओशो
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