अगर
कोई महावीर को
ठीक से समझेगा,
तो सबसे तो
मुक्त हो ही
जाएगा, महावीर से भी
मुक्त हो जाएगा।
नहीं तो फिर
ठीक से समझा
नहीं। मेरी बात
समझिए। उनकी अनुकंपा
समझिए, वे सदगुरु
हैं इस जगत
में, जो आपको
सबसे तो मुक्त
कर ही दें,
लेकिन अपने से
न बांध लें।
नहीं तो बंधन
शुरू हो गया।
अगर महावीर यह
कहें कि तुम
सब छोड़ दो
और मेरी शरण
आ जाओ, तो
सब नहीं छूटा।
महावीर की शरण
बाहर है न!
कि महावीर की
शरण भीतर है?
क्या वे चरण
भीतर हैं आपके?
जो भी चीज
पकड़ी जा सकती
है, बाहर होगी।
महावीर सदगुरु इस अर्थों
में हैं कि
वे सारे बाहर
से तो आपको
मुक्त करते हैं
और यह भी
स्मरण दिला देते
हैं कि उनको
मत पकड़ लेना,
अन्यथा फिर वही
का वही शुरू।
मेरा कहना है
कि सदगुरु वह
है जो सबसे
तो आपको छुड़ा
दे और अपने
से भी न
बांधे, अपने से
भी न बांधे।
असदगुरु वह है
जो सबसे तो
छुड़ाए और अपने
चरणों को पकड़ने
के लिए कहे
कि ये पकड़
लो। वह असदगुरु
है।
यह
जो मैं कह
रहा हूं इसलिए
कह रहा हूं
कि आपको जो
शुभ प्रभाव मालूम
होते हैं, मैं
उनको अशुभ नहीं
कह रहा, घातक
कह रहा हूं।
अशुभ प्रभाव अलग
हैं, शुभ प्रभाव
अलग हैं, लेकिन
दोनों घातक हैं।
और घातक इस
अर्थ में हैं
कि वे आच्छादक
हैं, वे आपको
बाहर से रोकते
हैं। उनके प्रति
अपरिग्रह चाहिए। विचार के
जगत में विचारों
के प्रति अपरिग्रह
रखिए। कितना ही
प्रीतिकर और कितना
ही शुभ विचार
मालूम पड़े, जानिए
कि मेरा नहीं
है। इसे स्मरणपूर्वक
जानिए कि मेरा
नहीं है। तो
जब चित्त शांत
करने में आप
जाने लगेंगे, तो
वह जो पराया
विचार है उसका
छूटना आसान होगा,
क्योंकि हम उसे
पकड़े हुए नहीं
होंगे। अन्यथा हम एक
तरफ सोचते हैं
कि विचार शांत
हो जाएं और
दूसरी तरफ शुभ
विचारों को पकड़े
रखते हैं, तो
फिर बहुत मुश्किल
है। फिर कैसे
संभव होगा? वे
शांत कैसे होंगे?
जब उनको हम
समझते हैं कि
वे बड़े महान
हैं, और बड़े
ऊंचे हैं, और
जरूरी हैं, और
बड़े कीमती हैं,
तो उन कीमती
चीजों को छोड़ना
संभव कैसे होगा?
इसके पहले कि
कोई हीरे जवाहरातों
को मुट्ठी से
नीचे फेंक दे,
यह जान लेना
जरूरी है कि
वे हीरे जवाहरात
नहीं, कंकड़ पत्थर
हैं। नहीं तो
फेंक नहीं सकेगा,
मुट्ठी खोलेगा और फिर
बांध लेगा।
तो
आपको मैं इसलिए
कह रहा हूं
कि विचार को
समझें कि उधार
है। कितने ही
श्रेष्ठ पुरुष से आया
हो, आपका नहीं
है, इसे स्मरण
रखें! और स्मरण
रखें कि बाहर
से आया है,
वह आश्रव है।
फिर उस आश्रव
को निर्जरा कर
देने के पूर्व,
निर्जरा तो ध्यान
से होगी, लेकिन
यह भाव अपरिग्रह
का सहयोगी होगा।
तो विचार के
तल पर पहली
चीज है. विचार
के प्रति अपरिग्रह
भाव।
समाधी
कमल
ओशो
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