Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Saturday, September 24, 2016

प्रश्न: भगवान, हमें जो आपमें दिखाई पड़ता है, वह दूसरों को दिखाई नहीं पड़ता। ऐसा क्यों है भगवान? क्या जन्मों-जन्मों में ऐसा कुछ अर्जन करना होता है?



एक-एक व्यक्ति की अलग-अलग यात्रा है, अलग-अलग रुझान है, अलग-अलग दृष्टि है। किसी को संगीत प्यारा लगता है, और किसी को केवल शोरगुल मालूम होता है। किसी के पास सौंदर्य को अनुभव करने की क्षमता होती है, और किसी के पास सिवाय पत्थर के, और हृदय में कुछ भी नहीं होता। ऐसे ही कोई प्रेम के झरने से भरा होता है और कोई सूखा।

दो व्यक्ति समान नहीं है। हो भी नहीं सकते। लेकिन हमारी अनजाने यह चेष्टा होती है कि हम सबको एक जैसा अनुभव हो, एक जैसी प्रतीति हो। यह असंभव है। और जितनी ऊंचाई होगी अनुभूति की, उतना ही और असंभव हो जाएगा। नीचे तल पर शायद तालमेल बैठ भी जाए, बाजार के तल पर शायद सहमति हो भी जाए, लेकिन आकाश की ऊंचाइयों में हमारी निजता और प्रत्येक व्यक्ति की अनूठी क्षमता भरपूर प्रकट होती है।

तो जो तुम्हें मुझमें दिखाई पड़ता है, वह जरूरी नहीं है कि दूसरे को भी दिखाई पड़े। निश्चित ही, तुमने जन्मों-जन्मों में कुछ अर्जित किया होगा। अपनी आंखों को निखार दिया होगा, अपनी पहचान को सम्हाला होगा, तो आज तुम्हें कुछ दिखाई पड़ता है। घने अंधेरे में भी रोशनी की किरण तुम पहचान लेते हो।

पर दूसरे को दिखाई पड़े, इससे तो परेशान होना, ही दूसरे पर नाराज होना। क्योंकि यही हमारी सामान्य प्रक्रिया है। अगर दूसरे को भी दिखाई नहीं पड़ता वही, तो हमें शक होने लगता है कि कहीं हम गलती में तो नहीं है? और अगर भीड़ दूसरों की ज्यादा हो, तो संदेह और गहरा हो जाता है। क्योंकि हम अकेले पड़ गए हैं। हम अकेले कैसे सही हो सकते हैं? जहां इतने लोगों की भीड़ है, वहां निश्चित ही हम गलत होंगे, भीड़ ही सही होगी।

मैं तुमसे कहना चाहता हूं, भीड़ कभी सही हुई है और कभी सही हो सकती है। सत्य का अनुभव वैयक्तिक है। उसका भीड़ से कोई भी नाता नहीं है। कितने लोग थे, जिनको वही दिखाई पड़ता था, जो गौतम बुद्ध को दिखाई पड़ा? सत्य की यात्रा में आदमी अकेला, और अकेला होता चला जाता है। और एक घड़ी आती है कि सारा संसार एक तरफ, और तुम बिलकुल अकेले। इसलिए भीड़ से मत घबड़ाना।

यह शुभ सूचना है कि तुम अकेले होने लगे हो। यह सौभाग्य की घड़ी है, कि तुम्हारी निजता प्रकट होने लगी है। तुम भीड़, और भीड़ के संस्कारों से मुक्त होने लगे हो। तुम्हारी आंखों पर बंधी हुई परंपरा की पट्टियां उतरने लगी है। और तुम्हारे प्राणों में तुम्हारे अपने स्वर गूंजने लगे हैं, बाजार और शेअर मार्केट की आवाजें नहीं।


इस जगत में बड़े से बड़ा धन है: निजता को उपलब्ध हो जाना। सो घबड़ाना मत। ठीक राह पर हो। अभी और अकेले हो जाओगे। अभी धीरे-धीरे और भी बहुत कुछ दिखाई पड़ेगा, जो औरों को दिखाई नहीं पड़ेगा। अंधों की इस दुनिया में आंखें बड़े सौभाग्य से मिलती हैं।

और दूसरी बात, नाराज मत होना औरों पर। उनको कोई कसूर नहीं है। उनको कोई दोष नहीं है। उनको ऐसे ही ढाला गया है, जन्मों-जन्मों से। उन्हें इसी तर संस्कारित किया गया है, कि वे भीड़ के साथ ही जी सकते हैं। भीड़ से जरा अलग हुए कि उनके प्राण छटपटाने लगते हैं।

कोपलें फिर फूट आयी 

ओशो 


No comments:

Post a Comment

Popular Posts