होश हो तो
दूसरा न तो
कल्याणकारी है और
न अकल्याणकारी; होश
हो तो तुम
सभी जगह से
अपने कल्याण को
खींच लेते हो।
होश न हो
तो तुम सभी
जगह से अपने
अकल्याण को खींच
लेते हो। बोध
हो तो तुम
जहां होते हो,
वहीं स्वर्ग निर्मित
होने लगता है
तुम्हारे बोध के
कारण। बोध न
हो तो तुम
जहां होओगे, वहां
नर्क की दुर्गंध
उठने लगेगी-तुम्हारे
ही कारण।
ऐसा समझो कि
मूर्च्छित मूर्च्छित जीना नर्क
का निर्माण है;
जागकर जीना स्वर्ग
का। जागते हुए
किसी ने कभी
कोई दुख नहीं
पाया। सोते हुए
कभी किसी ने
कोई सुख नही
पाया।
सोते
हुए ज्यादा से
ज्यादा सुख की
आशा हो सकती
है, सुख कभी
मिलता नहीं। सुख
की आशा में
तुम बहुत दुख
उठा सकते हो
भला, लेकिन सुख
कभी मिलता नहीं।
जागकर जो मिलता
है, उसी का
नाम सुख है।
दूसरे से कोई
संबंध ही नहीं
है। अगर तुम
ठीक से समझो
तो दूसरा है
ही नहीं, तुम
ही हो। दूसरे
के संबंध में
जो तुम्हारी धारणा
है, वह भी
तुम्हारी धारणा है। दूसरे
को मित्र मान
लेते हो, मित्र
हो जाता है;
शत्रु मान लेते
हो, शत्रु हो
जाता है। तुम्हारी
मान्यता ही।
अपनी मान्यताओं को गिरा
देना, अपनी मान्यताओं
से मुक्त हो
जाना, संसार से
मुक्त हो जाना
है। संसार बाहर
नहीं है, तुम्हारे
देखने के ढंग
में है।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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