एक आदमी आंख
से चश्मा लगाकर देख रहा है। तो जो उसे आंख से नहीं दिखाई पड़ता था, वह अब दिखाई
पड़ रहा है। लेकिन वह कोई सूक्ष्म चीज नहीं देख रहा है। वैज्ञानिक बड़ी दूर की चीजें
देख रहे हैं; बड़े
दूर का, लेकिन
वह भी स्थूल है। जो भी दिखाई पड़ेगा,
जो भी सुनाई पड़ेगा,
जो भी स्पर्श में आ जाएगा,
इंद्रियों की सीमा के भीतर जो भी आ जाएगा, वह स्थूल है। सूक्ष्म का मतलब है, जो मनुष्य की
इंद्रियों की सीमा में नहीं आता है,
नहीं आ सकता है,
नहीं लाया जा सकता है। असल में विचार भी जिसे नहीं पकड़ सकता, वही सूक्ष्म
है।
अब
वैज्ञानिक कहते हैं...कल तक वह परमाणु सूक्ष्मतम था। अब परमाणु भी टूट गया, अब इलेक्ट्रान
है, न्यूट्रान
है, प्रोटान
है। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि वे सर्वाधिक सूक्ष्म हैं। क्योंकि अब वे दिखाई पड़ने के
बाहर ही हो गए। अब अनुमान का ही मामला है। लेकिन जो अनुमान में भी आता है, वह भी सूक्ष्म
नहीं है। क्योंकि अनुमान भी मनुष्य के विचार का हिस्सा है।
इसलिए
वैज्ञानिक जिसे इलेक्ट्रान कह रहे हैं,
वह भी कृष्ण का सूक्ष्म नहीं है। इलेक्ट्रान के भी पार, ठीक होगा कहना, आलवेज दि बियांड, जहां तक आप पहुंच
जाएंगे, उसके
जो पार। वहां भी पहुंच जाएंगे,
तो उसके जो पार,
दि ट्रांसेंडेंटल;
वह जो सदा अतिक्रमण कर जाता है,
वही सूक्ष्म है। पार होना ही जिसका गुण है। आप जहां तक पकड़ पाते हैं, जो उसके पार
सदा शेष रह जाता है; सदा
ही शेष रह जाता है और रह जाएगा।
ठीक
से समझ लेना उचित होगा। हमारे पास दो शब्द हैं-- अज्ञात, अननोन; अज्ञेय, अननोएबल। साधारणतः
जब हम सूक्ष्म को समझने जाते हैं,
तो ऐसा लगता है,
जो अज्ञात है, अननोन
है। नहीं, कृष्ण
उसे सूक्ष्म नहीं कह रहे हैं। क्योंकि जो अननोन है, वह नोन बन सकता है; जो अज्ञात है, वह कल ज्ञात
हो जाएगा। वह सूक्ष्म नहीं है। जिसके ज्ञात होने की अनंत में भी कभी संभावना है, वह सूक्ष्म नहीं
है।
स्थूल
ही ज्ञात हो सकता है। आज न हो,
कल हो जाए। कल न हो,
कभी हो जाए। लेकिन जो भी ज्ञात हो सकता है, वह स्थूल है। जो ज्ञात हो ही नहीं सकता, जो सदा ही ज्ञान
के बाहर छूट जाता है, जो
सदा ही जानने की पकड़ के बाहर रह जाता है,
अननोएबल, अज्ञेय
है। नहीं, जाना
ही नहीं जा सकता जो, वही
सूक्ष्म है। इसलिए सूक्ष्म का मतलब ऐसा नहीं है कि हमारे पास अच्छे उपकरण होंगे तो
हम उसे जान लेंगे।
लोग
पूछते हैं कि क्या विज्ञान कभी परमात्मा को जान पाएगा? जिसे भी विज्ञान
जान लेगा, वह
परमात्मा नहीं होगा। क्योंकि परमात्मा से अर्थ ही है कि जो जानने की पकड़ में नहीं आता।
किसी दिन विज्ञान की प्रयोगशाला अगर परमात्मा को पकड़ लेगी, तो वह पदार्थ
हो जाएगा। असल में जहां तक परमात्मा पकड़ में आता है, उसी का नाम पदार्थ है। और जहां परमात्मा पकड़
में नहीं आता, वहीं
परमात्मा है।
सूक्ष्म
का कृष्ण का अर्थ ठीक से खयाल में ले लेना जरूरी है। क्योंकि जो सूक्ष्म है, वही सत है। जो
पकड़ में आता है, वह
असत होगा। वह आज होगा, कल
नहीं होगा। जो पकड़ में नहीं आता,
वही सत है।
एक
कमरे में हम जाएं, वहां
फूल रखा है। फूल सुबह ठीक है,
सांझ मुरझा जाएगा। उसी फूल के नीचे शंकर जी की पिंडी रखी है, पत्थर रखा है।
वह सुबह भी था, सांझ
भी होगा। लेकिन सौ वर्ष,
दो सौ वर्ष, तीन
सौ वर्ष, हजार
वर्ष--बिखर जाएगा। फूल एक दिन में बिखर गया। पत्थर था, हजारों वर्ष
में बिखरा। इससे अंतर नहीं पड़ता। कमरे में सिर्फ एक चीज है जो नहीं बिखरेगी, वह कमरे का कमरापन
है, रूमीनेस
है। वह जो खालीपन है, वह
भर नहीं बिखरेगा। वही सूक्ष्म है,
वही सत है। बाकी कमरे में जो भी है,
वह सब बिखर जाएगा।
गीता दर्शन
ओशो
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