एक
फकीर हुआ। एक नास्तिक था उस गांव में। उसको बहुत लोगों ने समझाया, वह नहीं समझा। तो उन्होंने कहा कि पास के गांव में एक फकीर है, तुम वहां जाओ। वही तुम्हें समझा सकता है, अब
और तुम्हें कोई नहीं समझा सकता।
उस नास्तिक ने कहा कि ठीक है, वहां भी मैं
जाता हूं। नास्तिक बड़े गुरूर से भरा हुआ था, उसके पास
दलीलें थीं। और नास्तिक के पास हमेशा दलीलें रही हैं, दलीलों
में कमी नहीं है। वह दलीलें लेकर गया। पहुंचा, सुबह कोई
आठ बजते थे, जाकर मंदिर में गया जहां वह फकीर रहता था,
साधु रहता था। देख कर हैरान हो गया, शंकर
का मंदिर था और वह जो साधु नाम के सज्जन थे, शंकर की
पिंडी पर पैर रखे हुए विश्राम कर रहे थे, सो रहे थे। उसे
तो बहुत हैरानी हो गई, उसने कहा कि नास्तिक तो मैं जरूर
हूं, लेकिन अभी पैर मैं भी शंकर की पिंडी को नहीं लगा
सकता। पता नहीं कौन सी झंझट खड़ी हो जाए? पता नहीं ये शंकर
इसका क्या बदला लें? हों ही कहीं, क्या पता? दलीलें तो ठीक हैं, लेकिन अगर कहीं हुए तो वे तो मुसीबत बाद में डालेंगे, तो पैर तो मैं भी नहीं लगा सकता। लेकिन यह साधु अजीब है! और यह मुझे
क्या समझाएगा, यह तो परम नास्तिक मालूम होता है। और यह भी
कैसा साधु है, ब्रह्ममुहूर्त कब का निकल गया और यह अभी आठ
बज रहे हैं और सो रहा है? क्योंकि साधु तो ब्रह्ममुहूर्त
में उठते हैं!
इसलिए साधु होना बहुत आसान है। ब्रह्ममुहूर्त में उठिए, साधु हो गए। यह तो सीधा सा गणित है, इसमें
कठिनाई क्या?
वह बहुत हैरान हुआ। लेकिन बैठ गया। बोला, इसके
पास भेजा है! लेकिन थोड़ी देर बाद वह साधु उठा तो उसने पूछा कि महाराज, मैंने तो सुना था कि साधु ब्रह्ममुहूर्त में उठते हैं और आप अभी सो रहे
हैं और सूरज आकाश में खूब चढ़ चुका!
वह साधु हंसने लगा और बोला, हमने भी बहुत खोजा
कि ब्रह्ममुहूर्त कौन सा है, इसका पता चल जाए। फिर हमको
यही पता चला कि जब हमारी नींद खुल जाए, ब्रह्म का जब
जागरण हो जाए, वही ब्रह्ममुहूर्त है। तो जब हम उठते हैं
उसी को ब्रह्ममुहूर्त मान लेते हैं। और तो हमारी समझ में नहीं आया कि
ब्रह्ममुहूर्त कौन सा है? बहुत खोजा, लेकिन कुछ पक्का पता नहीं चला। फिर हमने यही सोचा कि भीतर तो ब्रह्म है,
जब वह खुलती है उनकी नींद तो समझो ब्रह्ममुहूर्त है। और नींद खुल
रही है तो वह मुहूर्त ब्रह्म। तो जब हमारी नींद खुलती है तब हम ब्रह्ममुहूर्त
मानते हैं।
उसने कहा कि ठीक है। अब इनसे क्या बकवास की जाए! कहा, और यह क्या कर रहे हैं कि आप भगवान की मूर्ति पर पैर रखे हुए हैं?
उसने कहा कि पहले हम भी ऐसा ही सोचते थे। लेकिन जब भगवान को जाना तो
मुसीबत हो गई कि अब पैर कहां रखें? कहीं भी पैर रखें वहीं
भगवान है। कहीं भी पैर रखें वहीं भगवान है, तो कहीं तो
रखेंगे ही! तो यह बताने को लोगों को कि जहां भी पैर रखें वहीं भगवान है, इसलिए जहां-जहां लोग भगवान मानते हैं वहीं-वहीं हम पैर रखते हैं,
ताकि लोगों को पता चल जाए कि कहीं भी पैर रखो वहीं भगवान है।
वह बोला कि ठीक है, अब आपसे तो कोई रास्ता न
रहा, बाकी हम तो हैं नास्तिक और हम विवाद करने आए थे।
उसने कहा, फिर भी रुको, कुछ खाना-वाना हम बनाएंगे तो तुम खाकर ही जाना, अब आ गए हो।
तो वह गांव से भिक्षा मांग कर लाया और उसने बाटियां बनाईं। और जब वह
बाटियां बना रहा था, एक कुत्ता उसकी बाटी लेकर भाग गया।
तो वह घी की हंडी लेकर उसके पीछे भागा। वह नास्तिक हैरान हुआ कि दिखता है यह दुष्ट
उसकी बाटी छुड़ा कर लौटेगा। तो वह नास्तिक भी पीछे गया। लेकिन उसने कुत्ते को आखिर
जाकर पकड़ ही लिया उस फकीर ने और उससे कहा कि देखो राम, बिना
घी की बाटी न तो हमको पसंद है और हम सोचते हैं तुमको भी पसंद न होगी, इसलिए पहले इस बाटी को घी में डुबा लेने दो और फिर खाना। उस कुत्ते से
कहा, देखो राम, हमको बिना घी की
बाटी पसंद नहीं तो तुमको भी न होगी। तो कृपा करके इतना करो। तो उसने उस कुत्ते के
मुंह से बाटी निकाली, अपने घी के बर्तन में उसको डुबाई,
वापस कुत्ते के मुंह में लगाई और कहा, राम,
अब जाओ।
उस नास्तिक ने उसके पैर छुए और कहा, मैं जाता
हूं, अब मुझे कुछ सीखना नहीं आपसे। क्योंकि मैं तो हैरान
हो गया, भगवान की मूर्ति पर पैर टेकते हो और कुत्ते से
राम कहते हो!
जो जानता है वह यही करेगा। क्योंकि जिसे दिखाई पड़ेगा परमात्मा, उसे फिर कुत्ते में भी दिखाई पड़ेगा, पत्थर में
भी, मकान में भी, सब तरफ वही
दिखाई पड़ेगा, उसके अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं पड़ सकता है।
लेकिन आपको दिखाई पड़ता है मंदिर में, तो जरूर गड़बड़ है।
आपको दिखाई पड़ता है मूर्ति में, तो जरूर गड़बड़ है। मूर्ति
में तो भगवान नहीं है, लेकिन जिस दिन भगवान का अनुभव होगा
उस दिन मूर्ति भी भगवान के बाहर नहीं रहेगी। वह तो समष्टि का अनुभव है। लेकिन इन
क्षुद्रताओं में जो उलझ जाता है वह समष्टि तक नहीं उठ पाता है, नहीं उठ सकता है।
क्षुद्रताएं छोड़ें, जागें विराट के प्रति,
जागें विराट के प्रति, असीम के प्रति,
तब तो धर्म का अनुभव होगा, तब तो भगवान
की या सत्य की--या कोई भी नाम दे दें--उसकी प्रतीति होगी।
समाधी कमल
ओशो
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