पचास प्रतिशत लोग तो स्तन के परिपूरक की तरह सिगरेट पी रहे हैं। अब इनसे तुम सिगरेट छोड़ने को कहो, क्योंकि सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकर है; इसका कोई तालमेल ही नहीं है। इनके कारण से इसका कोई संबंध नहीं जुड़ता।
कुछ लोग और कारणों से सिगरेट पी रहे हैं। छोटे बच्चे शुरू करते हैं सिगरेट, क्योंकि सिगरेट बड़े होने का प्रतीक है। बड़े लोग पी रहे हैं सिगरेट, अकड़ कर चल रहे हैं। जब आदमी सिगरेट पीता है तब उसकी अकड़ देखो, जैसे कोई महान कार्य कर रहा है। उसकी भाव-भंगिमा देखो, जिस ढंग से वह निकाल कर सिगरेट को बजाता है अपनी डब्बी पर। फिर उसका चेहरा देखो, कैसी गरिमा आ जाती है। अचानक उसके चारों तरफ एक आभामंडल आ जाता है। फिर वह सिगरेट को मुंह में दबाता है; उसका पूरा क्रियाकांड देखो। फिर वह माचिस या लाइटर निकालता है। फिर किस ढंग से और किस शान से सिगरेट को जलाता है। फिर किस शान से वह धुएं को बाहर-भीतर करता है। अचानक वह कोई दीन नहीं रहा।
छोटे-छोटे बच्चे देख रहे हैं। उनको लगता है कि सिगरेट जो है सिंबालिक है;
यह प्रतीकात्मक है बड़े होने का, शक्तिशाली होने का। क्योंकि सिर्फ बड़े ही पीते हैं, छोटों को कोई पीने नहीं देता। लोग कहते हैं, तुम अभी बहुत छोटे हो; बड़े हो जाओ फिर पीना। सब तरफ निषेध है। तो छोटे बच्चे इसलिए पीना शुरू कर देते हैं कि बड़प्पन का इसमें भाव है।
कुछ लोग इसलिए पी रहे हैं कि उनके भीतर हीनता की ग्रंथि छिपी है अभी भी। तो जब भी उनको हीनता लगती है तभी वे सिगरेट पीकर अपनी हीनता को छिपा लेते हैं, बड़े हो जाते हैं। सस्ते में बड़े हो जाते हैं। एक सिगरेट पीने से इतना बड़प्पन मिलता है, क्या हर्ज है?
कुछ लोग इसलिए सिगरेट पी रहे हैं कि उनको खाली रहना बहुत मुश्किल है, कोई व्यस्तता चाहिए; नहीं तो उनको घबड़ाहट होने लगती है। तुम जैसे अकेले रहो दिन भर घर के भीतर तो बेचैन होने लगोगे कि जाओ क्लब, कि मंदिर, कि कहीं सत्संग करो, कि कुछ करो। खाली बैठे हो! मन खाली नहीं रहना चाहता। क्योंकि मन खाली रहा कि मिटा। मन को व्यस्तता चाहिए, आकुपेशन चाहिए। अगर कुछ भी न करने को हो तो कम से कम सिगरेट पी सकते हो हर हालत में। सिगरेट संगी-साथी है, सस्ता संगी-साथी है। खीसे में लेकर चल सकते हो, पोर्टेबल है। अकेले भी बैठे हो कमरे में, कोई कहीं क्लब-घर जाने की जरूरत नहीं; बस सिगरेट निकालो, जलाओ। चैन आ गया; आकुपेशन आ गया; काम शुरू हो गया।
सिगरेट एक तरह की व्यस्तता है कुछ लोगों के लिए। और इस तरह के और-और कारण हैं। हर आदमी को अपना कारण खोजना पड़े। और जब अपना कारण खोज ले कोई आदमी तो मुक्त होना इतना आसान है जितनी और कोई चीज नहीं। लेकिन उधार कारणों से कोई मुक्त नहीं हो सकता; दूसरों के बताने से कोई मुक्त नहीं हो सकता। और छोटी-छोटी चीज भी काफी जटिल है; क्योंकि तुम्हारी पूरी आत्मकथा उसमें छिपी है।
निष्क्रियता को साधने का अर्थ होगा कि तुम कर्म को देखो। तुम जो भी कर रहे हो उसको देखो, पहचानो। उतरो कर्म की गहनता में, क्यों कर रहे हो? और जल्दी से दूसरों के उत्तर मत मान लेना। वही तुम्हारी भूल है। बताने वाले हर जगह तैयार खड़े हैं कि हम बताए देते हैं, क्यों कर रहे हो। लेकिन हर व्यक्ति इतना पृथक और भिन्न है कि कोई भी सामान्य फार्मूला काम नहीं करता। तुम अपने ही कारण कर रहे हो। तुम्हारी आत्मकथा बस तुम्हारी है। जैसे तुम्हारे अंगूठे का निशान बस तुम्हारा है, वैसे ही तुम्हारी आत्मकथा तुम्हारी है, किसी दूसरे की नहीं।
और तुम जब अपने कृत्यों में, अपने निजी कृत्यों में अपने निजी होश से उतरोगे, तभी तुम समझ पाओगे उनकी व्यर्थता। और एक बार व्यर्थता दिख जाए तो जिस कृत्य में व्यर्थता दिख जाती है, वह गिर जाता है। उसे ढोने का उपाय ही नहीं है। यही है साधना निष्क्रियता का।
धीरे-धीरे-धीरे-धीरे व्यर्थ कृत्य गिर जाएंगे; सार्थक बचेंगे। सार्थक से कोई विरोध नहीं है। बिलकुल जरूरी बचेंगे। बिलकुल जरूरी जरूरी हैं। उनको तोड़ना भी नहीं है, हटाना भी नहीं है। सिर्फ अकारण समाप्त हो जाए; तुम शुद्ध हो जाओगे, तुम निष्कलुष हो जाओगे; तुम्हारी ऊर्जा संगृहीत होने लगेगी।
ताओ उपनिषद
ओशो
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