जीवन
के उठते-बैठते, चलते-सोते-जागते जो भी घटनाएं हैं, उन सबमें एक स्मृतिपूर्वक इस बात का विवेक और इस बात की निरंतर चेष्टा देखने की कि घटनाएं कहां घट रही हैं? वे मुझ पर घट रही हैं या मैं केवल देखने वाला हूं?
हमारी
आदतें तादात्म्य की घनी हैं। अगर आप एक फिल्म भी देखते हों, एक नाटक देखते हों, तो यह हो सकता है कि आप फिल्म या नाटक देखते हुए रोने लगें। यह हो सकता है कि आप हंसने लगें। यह हो सकता है कि जब प्रकाश जले भवन में, तो आप चोरी से अपने आंसू पोंछ लें कि कोई देख न ले। आप रोए, एक चित्र को देखकर आपने तादात्म्य किया। चित्र के किसी नायक से, किसी पात्र से आपने तादात्म्य कर लिया। उस पर पीड़ा घटी होगी, वह पीड़ा आप तक संक्रमित हो गयी और आप रोने लगे।
मनुष्य
के अंतस जीवन में भी शरीर पर जो घटित हो रहा है, चेतना उसे 'मुझ पर हो रहा है', ऐसा मानकर दुखी और पीड़ित है। सारे दुख का एक ही कारण है कि हमारा शरीर से तादात्म्य है। और सारे आनंद का भी एक ही कारण है कि शरीर से तादात्म्य विच्छिन्न हो जाए, हमें यह स्मरण आ जाए कि हम देह नहीं हैं।
तो
उसके लिए सम्यक स्मृति, देह की क्रियाओं के प्रति सम्यक स्मृति, राइट अवेयरनेस, देह की क्रियाओं का सम्यक दर्शन, सम्यक निरीक्षण प्रक्रिया है। देह-शून्यता आएगी देह के प्रति सम्यक निरीक्षण से।
यह
निरीक्षण करना जरूरी है। जब रात्रि बिस्तर पर सोने लगें, तो यह स्मरणपूर्वक देखना जरूरी है कि मैं नहीं, मेरी देह बिस्तर पर जा रही है। और जब सुबह बिस्तर से उठने लगें, तो स्मृतिपूर्वक यह स्मरण रखना जरूरी है कि मैं नहीं, मेरी देह बिस्तर से उठ रही है। नींद मैंने नहीं ली है, नींद केवल देह ने ली है। और जब भोजन करें, तो जानें कि भोजन केवल देह ने किया है। और जब वस्त्र पहनें, तो जानें कि वस्त्र केवल देह को ढंकते हैं, मुझे नहीं। और जब कोई चोट करे, तो स्मरणपूर्वक आप जान सकेंगे कि चोट देह पर की गयी है, मुझे नहीं। इस भांति सतत बोध को जगाते-जगाते किसी क्षण विस्फोट होता है और तादात्म्य टूट जाता है।
आप
जानते हैं, जब आप स्वप्न में होते हैं, तो आपको अपनी देह की स्मृति नहीं रह जाती है। और आप जानते हैं, जब आप गहरी निद्रा में जाते हैं, तो आपको अपनी देह का पता रह जाता है? क्या आपको अपना चेहरा याद रह जाता है?
आप
अपने भीतर जितने गहरे जाते हैं, उतने ही अनुपात में देह भूलती चली जाती है। स्वप्न में देह का पता नहीं होता। और प्रगाढ़ निद्रा में, सुषुप्ति में देह का बिलकुल ही पता नहीं होता है। जब वापस होश आना शुरू होता है, क्रमशः देह का तादात्म्य जागता है। किसी दिन सुबह जब नींद खुल जाए, तो एक क्षण अंदर देखना, आप देह हैं? तो आपको धीरे-धीरे दिखायी पड़ेगा स्पष्ट, देह का तादात्म्य जग रहा है, पैदा हो रहा है।
ध्यान सूत्र
ओशो
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