तीन स्थितियां हैं मन की। स्वप्न, जागृति, सुषुप्ति। स्वप्न तो बंद होना चाहिए चाहे सम्यक समाधि हो, चाहे असम्यक समाधि हो, स्वप्न तो दोनों में बंद हो जाएगा, विचार की तरंगें बंद हो जाएंगी। लेकिन जड़ समाधि में आदमी गहरी मूर्च्छा में पड़ गया, सुषुप्ति में डूब गया, उसे होश ही नहीं है। जब वापस लौटेगा तो निश्चित ही शात लौटेगा, बड़ा प्रसन्न लौटेगा, क्योंकि इतना विश्राम मिल गया। लेकिन यह कोई बात न हुई! यह तो नींद का ही प्रयोग हुआ। यह तो योगतंद्रा हुई। असली बात तो तब घटेगी जब तुम भीतर जाओ और होशपूर्वक जाओ। तब तुम प्रसन्न भी लौटोगे, आनंदित भी लौटोगे और प्रज्ञावान होकर भी लौटोगे। तुम बाहर आओगे, तुम्हारी ज्योति और होगी। तुम्हारी प्रभा और होगी। तुम्हारे चारों तरफ रोशनी होगी। तुम्हारे चारों तरफ जीवन में सुगंध होगी।
ऐसा समझो कि एक आदमी को हम स्ट्रेचर पर लिटा लें, क्लोरोफॉर्म दे दें और फिर बगीचे में घुमा दें। तो निश्चित ही उसकी नाक तो काम कर ही रही है, फूलों की गंध भी उसके भीतर जाएगी उसे पता नहीं चलेगा। और वृक्षों की ताजी हवा भी उसको लगेगी, शीतल भी होगा उसे पता नहीं चलेगा। फिर जैसे जैसे वह होश में आने लगे, हम जल्दी उसे बगीचे के बाहर ले जाएं। आंख खोलकर वह कहेगा, अच्छा लगा। कुछ कुछ भनक याद आएगी ताजा था, सुगंध थी, मगर ज्यादा कुछ पकड़ में न आएगी। और किस रास्ते गया और किस रास्ते लौटा, यह भी पता नहीं होगा। फिर खुद न जा सकेगा। अगर उसको तुम छोड़ दो जाने को तो खुद न जा सकेगा, रास्ते का पता नहीं है।
दो तरह की समाधियां हैं। जड़ समाधि, आदमी गांजा पीकर जड़ समाधि में चला जाता है, अफीम खाकर जड़ समाधि में चला जाता है; मारीजुआना, एल. एस. डी, मेस्कलीन, इनको लेकर जड़ समाधि में चला जाता है। अभी पश्चिम में जड़ समाधि का खूब प्रभाव चल रहा है। भारत में तो रहा ही बहुत दिनों से गंजेड़ी, भंगेड़ी, सब तरह के साधु संन्यासी तुम्हें मिल जाएंगे। वह जड़ समाधियां हैं।
बुद्ध ने उनका बड़ा विरोध किया। बुद्ध ने कहा, यह भी कोई बात है, माना कि सुख मिलता है, इसमें कोई शक नहीं है तुम भी अगर भंग खाकर डूब गए मस्ती में तो सुख मिलता है। गाजे की दम लगा ली तो डूब गए, एक तरह का सुख मिलता है। शराब भी इसी तरह के सुख को देती है भूल गए सब, डूब गए अपने में, मगर यह डुबकी नींद की है। यह कोई डुबकी हुई! यह कुछ मनुष्य योग्य हुआ! ऊपर उठो, जागते हुए भीतर जाओ। दीया लेकर भीतर जाओ। मशाल लेकर भीतर जाओ। ताकि सब रास्ता भी उजाला हो जाए और तुम्हें पता भी हो जाए, तो जब जाना हो तब चले जाओ। और तुम फिर किसी चीज पर निर्भर भी न रहोगे।
तो तुमने देखा, हिंदू साधु संन्यासी तुम्हें मिल जाएंगे कुंभ के मेले में—दम लग रही, सत्संग हो रहा। दम मारो दम! सत्संग हो रहा है, ब्रह्मचर्चा चल रही है! यह कुछ नयी बात नहीं है, इस मुल्क में पांच हजार साल से चल रही है। ये सब समझते हैं कि ये सब शंकर जी के शिष्य हैं। बम भोले!
इसका बुद्ध ने बहुत विरोध किया। क्योंकि बुद्ध ने कहा कि असली ही बात चूंकी जा रही है। असली बात है, जाग्रत होकर आनंद को उपलब्ध हो जाना। उसको उन्होंने सम्यक समाधि कहा।
यह आर्य अष्टांगिक मार्ग। बुद्ध कहते हैं, चार आर्य सत्य हैं दुख है, दुख की उत्पत्ति है, दुख से मुक्ति है और मुक्तिगामी आर्य अष्टांगिक मार्ग है। ये आठ अंग हैं उस दुख मुक्ति के लिए। ऐसी ये दो गाथाएं। ये महत्वपूर्ण हैं। इन पर खूब ध्यान करना।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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