प्रेम के शास्त्र का यह बुनियादी सिद्धांत है। कंजूस की वहां
गति नहीं। पकड़ने वाले के लिए वहां उपाय नहीं। वहां खोनेवाले की मालिकी है। वहां जो
बचाते हैं, दीन
और दरिद्र रह जाते हैं। वहां जो लुटाते हैं, वही पाते हैं।
प्रेम का जगत् बड़ी उलटबांसी है।
संसार में एक गणित चलता है; प्रेम का गणित बड़ा उलटा है। संसार में बचाओगे
तो बचेगा। प्रेम में लुटाओगे तो बचेगा। संसार में लुटाओगे तो दीन-दरिद्र हो जाओगे।
प्रेम में न लुटाया तो दीन-दरिद्र हो जाओगे।
संसार से सत्य की दिशा बिल्कुल उलटी है।
संसार परमात्मा की प्रतिछाया है। जैसे कभी-कभी किसी झील पर तुम
खड़े हो और झील में झांक कर देखो,
तो जमीन पर तो तुम्हारे पैर नीचे हैं और सिर ऊपर है; लेकिन झील में दिखाई पड़ेगा कि पैर ऊपर हैं और सिर नीचे है।
परमात्मा से संसार ठीक उलटा है। संसार के गणित को उलटा लो तो
धर्म का गणित बन जाता है।
आज के सूत्र बड़े बहुमूल्य हैं। उनका मूल्य नहीं आंका जा सकता।
धर्म के शास्त्र की जो बुनियादी भित्ति है,
इन्हीं सूत्रों की ईंटों से बनी है। इन्हें खूब भाव से ग्रहण करना।
इनके रस में डूबना।
"सीस उतारै हथ से, सहज आसिकी नाहिं।'
तुमने सदा सुना है कि भक्ति का मार्ग बड़ा सरल है। बात सच भी है
और झूठ भी है। सच इसलिए कि जिन्हें प्रेम आ जाए उनके लिए भक्ति से सरल और क्या!
झूठ इसलिए कि प्रेम आना बड़ा कठिन है। प्रेम आ जाए तो सब सुगम। फिर तो प्रयास करना
ही नहीं होता--प्रसाद में मिलता है। प्रभु की तरफ जाना ही नहीं पड़ता भक्त को, भगवान ही भक्त को खोजने आता
है। हरि सुमिरण मेरा करैं! भक्त की स्मृति हरि को होने लगती है। भक्त तो भूल ही
जाता है। प्रेम में किसको याद रहती है! प्रेम की मस्ती में कौन हिसाब रखता
है--मंत्र, पाठ-पूजा, प्रार्थना,
उपासना! लेकिन परमात्मा स्मरण रखने लगता है। इधर भक्त का स्मरण
भूलता है उधर परमात्मा में स्मरण जगता है। और मजा तो तभी है जब हरि तुम्हारा स्मरण
करे। तुम्हीं स्मरण करते रहे तो कुछ खास मजा नहीं। जब आग दोनों तरफ से लगे तभी
प्रेम के फल पकते हैं।
तो तुमने सुना है बहुत बार कि भक्ति बड़ी आसान है। तुमने यह भी सुना
है कि कलियुग में तो भक्ति ही मार्ग है। सच्चाई है इसमें और सच्चाई नहीं भी।
सच्चाई है अगर प्रेम कर पाओ। मगर प्रेम कर पाओगे? प्रश्न तो वहां खड़ा है।
"सीस उतारै हाथ से, सहज आसिकी नाहिं।'
पलटू कहते हैं : भूलकर भी यह मत सोचना कि प्रेम का रास्ता सरल
है, कि आशिकी
सहज है कि सुगम है। हां, सुगम है किन्हीं के लिए। जो अपने
सिर को अपने हाथ से उतार कर रख दें, उनके लिए ज़रा भी कठिन
नहीं है। लेकिन जिन्होंने अपने को बचा-बचा कर चाहा कि पहुंच जाएं, उनके लिए महा दुर्गम है यह पथ। वे कभी नहीं पहुंच पाएंगे। जिन्होंने सोचा
कि हम अपने को भी बचा लें और परमात्मा को भी पा लें, वे भटकेंगे
अनंत काल तक, कभी न पहुंच पाएंगे।
अजहुँ चेत गंवार
ओशो
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