जीवन तो आपको पूरे आनंद का मौका, सुविधा, अवसर, सामर्थ्य, सब देता
है। आप ही कुछ गड़बड कर लेते हैं। आप ही बीच में खड़े हो जाते हैं और अस्तित्व और अपने
बीच बाधा बन जाते हैं। यह जो कृष्ण का कहना है कि मैं वापस लौट आता हूं। यह इसका सूचक
है कि अस्तित्व से आप जो भी गहन भाव से प्रार्थना करेंगे, अस्तित्व से जो भी गहन भाव से आप कहेंगे, प्रेमपूर्वक
अस्तित्व से जो भी आप निवेदन करेंगे, अस्तित्व बहरा नहीं है,
अस्तित्व हृदयहीन नहीं है।
यही विज्ञान और धर्म की समझ का भेद है। विज्ञान कहता है, अस्तित्व
है हृदयहीन, हार्टलेस। कुछ भी करो, अस्तित्व तुम्हारी सुनने वाला नहीं है। कुछ भी करो, अस्तित्व के पास कान नहीं हैं कि तुम्हारी सुने। कुछ भी करो, अस्तित्व को पता भी नहीं चलेगा। यह विज्ञान की दृष्टि है। अस्तित्व है गहन
उपेक्षा में। तुम क्या हो, हो या नहीं हो, कोई प्रयोजन नहीं है।
धर्म कहता है, यह असंभव है। अगर हम अस्तित्व के ही हिस्से हैं,
तो यह असंभव है कि अस्तित्व हमारे प्रति इतना उपेक्षा से भरा हो।
अस्तित्व हमारे प्रति किसी गहरे लगाव में न हो, यह नहीं माना
जा सकता, क्योंकि हम अस्तित्व से पैदा हुए हैं। अगर हम अस्तित्व
से ही पैदा हुए हैं और उसी में लीन हो जाएंगे, तो हम उसी का
खेल हैं। तो अस्तित्व प्रतिपल हमारे प्रति सजग है, और अस्तित्व
हृदयपूर्ण है।
गीता दर्शन
ओशो
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