जीसस ने कहा है, 'सत्य को जान लो और सत्य
तुम्हें मुक्त कर देगा।’ जब भी तुम किसी बात को सजग होकर,
होशपूर्वक, पूरी तरह ध्यान देते हुए अनुभव
करते हो कि क्या घट रहा है ध्यान दे रहे होते हो और साथ साथ सहभागी हो रहे होते हो तो वह अनुभव मुक्तिदायी
होता है। तुरंत कोई चीज उमगती है उसमें से : एक अनुभव, जो
सत्य बन जाता है। तुमने उसे शास्त्रों से उधार नहीं लिया होता; तुमने उसे किसी दूसरे से उधार नहीं लिया होता। अनुभव उधार नहीं लिया जा
सकता; केवल सिद्धात उधार लिए जा सकते हैं।
इसीलिए सारे सिद्धात गंदे होते हैं, क्योंकि वे बहुत से हाथों
से गुजरते रहते हैं: लाखों हाथों से। वे गंदे नोटों की भांति
होते हैं। अनुभव सदा ताजा होता है सुबह की ओस जैसा ताजा,
सुबह खिले गुलाब की भांति ताजा। अनुभव सदा निर्दोष और कुंआरा होता
है, किसी ने कभी छुआ नहीं है उसे। तुम पहली बार उसके सामने
आए हो। तुम्हारा अनुभव तुम्हारा है, वह किसी दूसरे का नहीं
है, और कोई उसे दे नहीं सकता तुम्हें।
बुद्ध पुरुष मार्ग दिखा सकते हैं, लेकिन चलना तो तुम्हें ही है। कोई बुद्ध पुरुष
तुम्हारी जगह नहीं चल सकता है; ऐसी कोई संभावना नहीं है। कोई
बुद्ध पुरुष अपनी आंखें तुम्हें नहीं दे सकता कि तुम उनके द्वारा देख सको। और यदि
कोई बुद्ध पुरुष तुम्हें आंखें दे भी दे, तो तुम बदल दोगे आंखों
को, आंखें तुम्हें न बदल पाएंगी। जब आंखें तुम्हारे ढांचे में
बिठाई जाएंगी, तो तुम्हारा ढांचा आंखों को ही बदल देगा,
लेकिन आंखें तुम्हें नहीं बदल सकतीं। वे अंश हैं; तुम एक बहुत बड़ी घटना हो।
मैं अपना हाथ तुम्हें उधार नहीं दे सकता। यदि मैं दूं भी, तो स्पर्श मेरा न रहेगा,
वह तुम्हारा होगा। जब तुम छुओगे और स्पर्श करोगे कुछ चाहे मेरे हाथ द्वारा ही, तो वह तुम्हीं स्पर्श कर
रहे होओगे, मेरा हाथ न होगा। सत्य को उधार पाने की कोई
संभावना नहीं है। अनुभव मुक्त कर्ता है।
पतंजलि योगसूत्र
ओशो
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