सूत्र में प्रवेश के पहले पीछे मैंने आपको कहा था कि मंत्र के संबंध में कुछ कहूंगा। आज शिविर का
अंतिम दिन है; मंत्र के पर्त संबंध में कुछ समझ लें। उसका
प्रयोग जीवन में क्रांति ला सकता है।
पहली बात जैसा मैंने कल कहा, पर्त पर्त
तुम्हारे व्यक्तित्व में है; जैसे प्याज में होती है। एक एक पर्त को उघाड़ना है, ताकि भीतर छिपे केंद्र को तुम
खोज पाओ। हीरा छिपा है, खोया तुमने नहीं है। खो सकते भी नहीं
हो; क्योंकि वह हीरा तुम ही हो। दब सकते हो; हीरा भी मिट्टी में दब जाता है। हीरे पर भी पर्त जम जाती है। हीरा भी
पत्थर जैसा दिखाई पड़ने लगता है। पर भीतर कुछ भी नष्ट नहीं होता।
तुम्हें शायद खयाल न हो कि हीरे का इतना मूल्य क्यों है? हीरे के मूल्य के पीछे,
मनुष्य की शाश्वत की खोज है। इस जगत में हीरा सबसे थिर है। सब चीजें
बदल जाती हैं; हीरा बिना बदला हुआ बना रहता है। करोड़ों—करोड़ों वर्ष में भी, वह क्षीण नहीं होता। इस बदलते
हुए संसार में हीरा न बदलते हुए अस्तित्व का प्रतीक है। इसलिए हीरे का इतना मूल्य
है। अन्यथा वह पत्थर है। मूल्य है उसकी शाश्वतता का, उसके
ठहराव का। हीरा होना तुम्हारा शाश्वत स्वभाव है। और सारी साधना तुम्हारी मिट्टी की
जम गयी पर्तों को अलग करने की है। पर्तें मिट्टी की हैं; इसलिए
अलग करना बहुत कठिन न होगा। और पर्तें हीरे पर हैं और मिट्टी की है, शाश्वत पर है, परिवर्तनशील की हैं, इसलिए बहुत कठिन बात नहीं होगी। मंत्र इन पर्तों को खोदने की विधि है।
एक छोटी घटना तुमसे कहूं।
मुल्ला नसरुद्दीन का एक मित्र बहुत वर्षों बाद मिला। तो उसने घर
के समाचार पूछे और फिर पूछा कि तुम्हारी बेटी का क्या हुआ। नसरुद्दीन ने कहा, 'तुम भरोसा करो या न करो,
बेटी की शादी हो गयी और साधारण आदमी से नहीं, एक
बड़े डाक्टर से।’
मित्र को भरोसा न आया। उसने कहा, ' क्षमा करना; विश्वास
करना कठिन है। और बुरा मत मानना, तुम भी जानते हो कि बेटी
तुम्हारी सुंदर तो थी ही नहीं; निश्चित रूप से कुरूप थी।
मिलिट्री के टेंट जैसी उसकी देह थी। तो मैं भरोसा नहीं कर सकता कि उसकी शादी हो
गयी, और वह भी फिर डाक्टर से! बड़े डाक्टर से! बड़े रहस्य की
घटना है! कैसे फांस लिया उसने एक डाक्टर को?'
नसरुद्दीन ने कहा,
' अच्छा—अच्छा! तो न ही सही बडा डाक्टर,
न सही डाक्टर। लेकिन एक बात मैं तुमसे कहूंगा। मेरे सिर का दर्द
उसने दूर किया। मेरे लिए वह डाक्टर है।’
जो सिर का दर्द दूर करे,
वह डाक्टर; और जो सिर को ही दूर कर दे,
वह मंत्र है। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी!
सिर जब तक है, तब तक दर्द होता ही रहेगा; ऐसी भी विधि है, जिससे सिर दूर हो जाये। तुम्हारी
सारी तकलीफ तुम्हारा सिर है, तुम्हारे विचार हैं, विचारों का ऊहापोह है, चितना है। अगर विचार खो जायें
तो सिर खो गया! तब तुम तो रहोगे, लेकिन मन न रहेगा। मन को जो
मार दे वह मंत्र है। मन की जिससे मृत्यु घटित हो जाये, वह
मंत्र है। और मन जब नहीं रह जाता तो तुम्हारे और शरीर के बीच जो सेतु है वह टूट
जाता है। मन ही जोड़े हुए है तुम्हें शरीर से। अगर बीच का सेतु, बीच का संबंध टूट जाये तो शरीर अलग, तुम अलग हो जाते
हो। और जिसने जान लिया अपने को शरीर से अलग और मन से शून्य, वह
शिवत्व को उपलब्ध हो जाता है। वह परम केवली है।
इसलिए मंत्र को समझ लें। मंत्र की परिभाषा है—जिससे सिर ही खो जाये,
मन न बचे। और ये जो पर्तें हैं शरीर की, मन की,
इनको काटने की विधि है। एक—एक कदम बढ़ना जरूरी
है। और धैर्य रखना होगा। क्योंकि मंत्र बहुत धीरज का प्रयोग है। अधैर्य जिनके मन
में बहुत ज्यादा है, उन्हें मंत्र से लाभ न होगा, नुकसान हो सकता है। इसे पहले समझ लें। क्योंकि वैसे ही तुम काफी परेशान हो
और मंत्र एक नई परेशानी बन जायेगी अगर अधैर्य हुआ।
तुम वैसे ही विक्षिप्त दशा में हो। मंत्र से विक्षिप्तता टूट भी
सकती है, बढ़ भी
सकती है। वैसे ही तुम बोझ से भरे हो और नया मंत्र और एक बोझ ले आयेगा। इसलिए एक
अनहोनी घटना रोज घटती है, कि जिनको तुम साधारणतया धार्मिक
आदमी कहते हो, वे साधारण सांसारिक आदमी से ज्यादा परेशान हो
जाते हैं; क्योंकि संसारी को संसार की परेशानी है, उनको संसार की तो बनी ही रहती है, धर्म की और जुड़
जाती है। वह प्लस है। उससे कुछ घटता नहीं, बढ़ता है। मन
पुराने सब धंधे तो जारी रखता है, यह एक नया धंधा और पकड़ लिया
है; व्यस्तता और बढ गयी।
तो मंत्र के साथ अत्यंत धैर्य चाहिए, अन्यथा उस झंझट में मत
पडना। जैसे दवा को मात्रा में लेना होता है—यह मत सोचना कि
पूरी बोतल इकट्ठी पी गये तो बीमारी अभी ठीक हो जायेगी; उससे
बीमार मर सकता है, बीमारी न मरेगी—उसे
मात्रा में ही लेना। और मंत्र की मात्राएं बड़ी होमियोपौथिक हैं, बड़ी सूक्ष्म हैं। तो बहुत धैर्य की जरूरत है, वह
पहली जरूरत है। फल की बहुत जल्दी आकांक्षा मत करना; वह जल्दी
आयेगा भी नहीं। क्योंकि यह परम फल है। यह कोई मौसमी फूल नहीं है कि बोया और
पन्द्रह दिन के भीतर आ गया। जन्म—जन। लग जाते हैं। और एक
कठिन बात जो समझ लेने की है, वह यह है कि जितना धैर्य हो
उतना जल्दी फल आ जायेगा। और जितना अधैर्य हो, उतनी ज्यादा
देर लग जायेगी।
एक आदमी जा रहा था रास्ते से। उसका जूता उसे काट रहा था; जूता छोटा था। वह जूते को
गालियां दे रहा था और परेशान था। नसरुद्दीन ने उससे पूछा कि मेरे भाई, इतना तंग जूता कहां से खरीदा। वह आदमी वैसे ही जला— भुना
था, वैसे ही क्रोध में था, उसने कहा,
'जूता कहां से खरीदा! झाड से तोड़ा है! 'नसरुद्दीन
ने कहा, 'मेरे भाई, थोड़ी देर रुक जाते
तो पैर के नाप का तो हो जाता। कच्चा तोड़ लिया!'
मंत्र कभी कच्चा मत तोडना,
नहीं तो बुरे फंस जाओगे। जूते को तो कोई फेंक दे, मंत्र को फेंकना बहुत मुश्किल है। क्योंकि जूता तो बाहर है, मंत्र भीतर होता है। और अगर गलती से मंत्र में फंस गये तो निकालना बहुत
मुश्किल हो जाता है। बहुत—से धार्मिक लोग पागल हो जाते हैं।
उसका कारण है कि मंत्र में फंस गये, कुछ जल्दी कर ली तोड्ने
की; फल पक नहीं पाया था, कच्चा ले गये।
पके तो फल बहुत मीठा हो जाता है; कच्चा बहुत तिक्त होगा,
बहुत क्क्वा होगा, जहरीला होगा।
शिव सूत्र
ओशो
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