Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Sunday, January 14, 2018

प्यारे ओशो कई बार मैं आपके शब्दों को समझ नहीं पाता..



.. कयोंकि आपके शब्दों की ध्वनि झरने की भांति मेरे ऊपर झरती और बरसती है। आपकी ध्वनि ऊर्जा मुझ पर आधात करती हुई पूरी तरह मेरे अंदर मुझे भर देती है, मैं अपने मेरुदण्ड में एक धक्के की भाति एक उत्तेजन, कंम्पनों और तरंगों का अनुभव करता हूं! क्या आपके शब्दों के अर्थ के लिए मुझे सावधानी से सजग बनना चाहिए?


 ऐसी स्थिति में शब्दों के अर्थ के सम्बंध में तुम्हें सावधान बनने की कोई जरूरत नहीं है, यह एक अवरोध ही बनेगी। यदि तुम मेरे शब्दों की ध्वनि के साथ लयबद्ध होने का अनुभव करते हो, तो वही उसका अर्थ है। यदि तुम महसूस करते हो कि तुम नूतन ऊर्जा में सान कर रहे हो और यदि तुम्हें रोमांच, कम्पन और स्पंदन का एक नया अनुभव हो रहा है, जिसे तुमने पहले कभी जाना नहीं, और यदि तुम अपने अस्तित्व में एक नए तरह के आयाम को उठता हुआ अनुभव कर रहे हो, और वह मेरे शब्दों की ध्वनि के कारण है तो मेरे बारे में भी सभी कुछ भूल जाओ। तब कुछ और की कोई आवश्यकता ही नहीं, तुम पहले ही उनका अर्थ पा गए।


उस ध्वनि के प्रपात में खान करना ही उसका अर्थ है, मेरुदण्ड में वह सिहरन और कम्पन ही उसका अर्थ है, वे स्पंदन और तरंगें जो तुम्हें ताजा बना रही हैं, वही उसका अर्थ है। तब शब्दों के सामान्य अर्थ के बारे में फिक्र करने की कोई जरूरत ही नहीं। तब तुम उसका गहन अर्थ पा रहे हो, तब तुम अर्थ के एक उच्चतम शिखर पर पहुंच रहे हो। तब तुम वास्तव में शीशी को नहीं, उसमें रखे रस को प्राप्त कर रहे हो। मेरे शब्दों का अर्थ तो, बस उस शीशी में रखा सार तत्व है।


यदि ऐसा तुम्हें घट रहा है, तो मेरे शब्द फिर तुम्हारे लिए शब्द ही नहीं रह गए वे अस्तित्वगत बन गए हैं। तब वे जीवंत हैं और एक हस्तांतरण बन गए हैं। तब मेरी और तुम्हारी ऊर्जा के बीच कोई चीज घट रही है। तब वहां कुछ ऐसी चीज हो रही है जिसे बाउल ' प्रेम ' कहते हैं।


उसे होने दो। शब्दों और उनके अर्थों के बारे में तुम सब कुछ भूल ही जाओ। इनको तुम उन बेवकूफ लोगों के लिए छोड़ दो, जो केवल शब्दों का संग्रह करते हैं और कभी उनके सारतत्व के सम्पर्क में नहीं आते। शब्द तो ठीक बाहर के खोलों जैसे हैं, उनके पीछे छिपा हुआ मैं तुम्हें एक महान संदेश भेज रहा हूं। ये संदेश बुद्धि से नहीं समझे जा सकते, सन्देशों में छिपा रहस्य तुम्हें अपने पूरे अस्तित्व से खोलना होगा। यह जो कुछ घट रहा है—’‘ यह सिहरन, कम्पन, स्पंदन और एक नई ताजा ऊर्जा का बरसना, यह सभी कुछ तुम्हारे अस्तित्व द्वारा उसी संदेश के रहस्य की गुत्थी को सुलझाने जैसा ही है। यही सच्चा श्रवण या सम्यक श्रवण है। यही है वास्तव में मेरे सान्निध्य में मेरे साथ होकर रहना, मेरी उपस्थिति में बस ' होना भर।‘'


एक बार मैं अपने मित्र के साथ ठहरा हुआ था। उसके बगीचे में एक बहुत बडा पिंजरा था, और उस पिंजरे में उसके पास एक गरुड़ था। वह मुझे पिंजरे के पास ले गया और कहा—’‘ देखिए! कितना सुंदर गरुड़ पक्षी है? गरुड वास्तव में बहुत सुंदर था, लेकिन मैंने उसके लिए हृदय में एक पीड़ा महसूस की।’’


मैंने अपने मित्र से कहा—’‘ यह असली गरुड़ पक्षी नहीं है।’’


उसने कहा—’‘ आखिर आपके कहने का मतलब क्या है? यह असली गरुड़ है। क्या आप गरुड़ पक्षी को पहचानते नहीं?''


मैंने कहा—’‘ मैं उन्हें भली भांति जानता हूं लेकिन मैंने उन्हें आकाश में स्तवंत्र हवा के विरुद्ध, ऊंचे स्वर्ग की ओर उड़ते हुए ही जाना है। जिन्हें मैंने जाना है वे लगभग इस संसार के जैसे थे ही नही, वे अपने भार का संतुलन साधे स्वतंत्र 


मुक्ताकाश के गहरे प्रेम में जैसे बह रहे थे। मैंने उन्हें परम स्वतंत्रता से सिर्फ उड़ते ही देखा है। यह गरुड़ तो गरुड़ ही है नहीं। क्योंकि पिंजरे में बंद गरुड़ के पास खुला आकाश कहां है और बिना स्वर्ग जैसी ऊंचाइयों पर बिना संतुलन साधे स्वतंत्रता से हवा में उड़ता हुआ यदि गरुड़ न हो, तो वह असली गरुड़ होता ही नहीं। उसकी वह पृष्ठभूमि कहां है पिंजरे मेंमैं कहता हूं कि यह उसकी आकृति भर है।’’


पिंजरे में बंद गरुड़ का असलीपन तो नष्ट हो गया। तुम पिंजरे में असली गरुड़ को कैद कर ही नहीं सकते, क्योंकि असली गरुड़ तो अत्यधिक स्वतंत्रता के साथ रहता है। इस पिंजरे में वह स्वतंत्रता कहां है? इसकी आत्मा तो जैसे है ही नहीं। सारभूत अस्तित्व तो लुप्त हो गया, जो यहां रह गया वह तो असार है। यह तो जैसे एक मृत गरुड़ है मृत गरुड़ से भी कहीं अधिक मृत और असहाय। इसे पिंजरे से मुक्त करने इसे सच्चा गरुड़ बनने का अवसर दो।’’


जब मैं तुमसे बातचीत करता हूं तो मेरे शब्द गरुड़ के पिंजरे जैसे हैं, मेरे शब्द जैसे एक कैद में हैं। यदि तुम वास्तव में मुझे सुनते हो, तुम शब्दों के पिंजरे में से उसके सारभूत असली गरुड़ को मुक्त कर दोगे।


यह जो घट रहा है...... .यह रोमांच। तुम्हें स्वतंत्रता मिल रही है, तुम गरुड़ बनकर ऊंचे और ऊंचे चेतना के शिखर पर पहुंचो। तुमने पृथ्वी बहुत दूर छोड़ दी है। तुम उसके बारे में सब कुछ भूल चुके हो। जो साधारण था, वह पीछे छूट गया। खोल या पिंजरा छोड़ दिया तुमने और अब पूरा आकाश तुम्हारे सामने खुला है, तुम, तुम्हारे पंख और यह आकाश....... और इसका कोई अंत ही नही है। अब तो शाश्वत यात्रा हो चुकी है।


शब्दों और उनके अर्थों के बारे में सब कुछ भूल ही जाओ, अन्यथा पिंजरे से तुम्हारा सम्बंध अधिक रहेगा और तुम स्वयं अपने ही अंदर उस गरुड़ को मुक्त करने में समर्थ न हो सकोगे।


प्रेमयोग 

ओशो

No comments:

Post a Comment

Popular Posts