उन्हें शायद पता नहीं कि जिस व्यक्ति
को हम सेक्स के संबंध में भी आथोरिटी नहीं मान सकते। उससे ईश्वर के संबंध में
पूछना फिजूल है। क्योंकि जो पहली सीढ़ी के संबंध में भी कुछ नहीं जानता। उससे आप
अंतिम सीढ़ी के संबंध में पूछना चाहते हो?
अगर सेक्स के संबंध में जो मैंने कहा वह स्वीकार्य नहीं है। तो फिर तो भूलकर
ईश्वर के संबंध में मुझसे पूछने कभी मत आना,
क्योंकि वह बात ही खत्म हो गयी पहल
कक्षा के योग्य भी मैं सिद्ध नहीं हुआ। तो अंतिम कक्षा के योग्य कैसे सिद्ध हो
सकता हूं। लेकिन उनके पूछने का कारण है।
अब तक काम और राम को दुश्मन की तरह देखा
गया है। अब तक ऐसा समझा जाता रहा है कि जो राम की खोज करते है, उनको काम से कोई संबंध नहीं है। और जो लोग
काम की यात्रा करते है। उनको अध्यात्म से कोई संबंध नहीं है। ये दोनों बातें
बेवकूफी की है।
आदमी काम की यात्रा भी राम की खोज के लिए
ही करता है। वह काम का इतना तीव्र आकर्षण,
राम की ही खोज है और इसीलिए काम में कभी तृप्ति नहीं मिलती। कभी ऐसा नहीं
लगता कि सब पूरा हो गया है। वह जब तक राम न मिल जाये। तब तक लग भी नहीं सकता।
और जो लोग काम के शत्रु होकर राम को खोजते
है, राम की खोज नहीं है वह।
वह सिर्फ राम के नाम में काम से एस्केप है,
पलायन है। काम से बचना है। इधर प्राण घबराते है, डर लगता है तो राम चदरिया ओढ़ कर उसमें छिप जाते है। और
राम-राम-राम जपते मिले तो जरा देखना वह कहीं काम की याद से तो नहीं बच रहे।
जब भी कोई आदमी राम-राम-राम जपते मिले तो
जरा गौर करना। उसके भीतर राम-राम के जप के पीछे काम का जप चल रहा होगा। सेक्स का
जप चल रहा होगा। स्त्री को देखेगा और माला फेरने लगेगा। कहेगा, राम-राम। वह स्त्री दिखी कि वह ज्यादा
जोर से माला फेरता है। ज्यादा जोर से राम-राम कहता है।
क्यों?
वह भीतर जो काम बैठा है, वह धक्के मार रहा है। राम का नाम ले-लेकर
उसे भुलाने की कोशिश करता है। लेकिन इतनी आसान तरकीबों से जीवन बदलते होते तो
दुनिया कभी की बदल गयी होती। उतना आसान रास्ता नहीं हे।
तो मैं आपसे कहना चाहता हूं। कि काम को
समझना जरूरी है अगर आप अपने राम की और परमात्मा की खोज को भी समझना चाहते है। क्यों? यह इसीलिए मैं कहता हूं कि एक आदमी बंबई
से कलकत्ता की यात्रा करना चाहे;
वह कलकत्ता के संबंध में पता लगाये कि कलकत्ता कहां है किस दिशा में है? लेकिन उसे यही पता न हो कि बंबई कहां है
और किस दिशा में है और कलकत्ता की वह यात्रा करना चाहे, तो क्या वह कभी सफल हो सकेगा। कलकत्ता
जाने के लिए सबसे पहले यह पता लगाना जरूरी है कि बंबई कहां हे। जहां मैं हूं, वह किस दिशा में है? फिर कलकत्ता की तरफ दिशा विचार की जा सकती
हे। लेकिन मुझे यही पता नहीं कि बंबई कहां है, तो कलकत्ता के बाबत की सारी जानकारी फिजूल है....क्योंकि
यात्रा मुझे बंबई से शुरू करना पड़ेगी। यात्रा का प्रारंभ बंबई से करना है। और
प्रारंभ पहले है, अंत बाद मे।
संभोग से समाधी की ओर
ओशो
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