दुनिया में बहुत तरह के प्रणाम हैं, लेकिन दोनों हाथ को जोड़ कर प्रणाम करने की प्रक्रिया इस देश
की है। और इसके पीछे बड़े रहस्य हैं, बड़े प्रतीक
हैं। अब तो वैज्ञानिक अनुसंधान भी इस बात के करीब आ रहा है। विज्ञान की नई खोजें
कहती हैं कि मनुष्य का मस्तिष्क दो हिस्सों में बंटा हुआ है। जो दाएं तरफ का
हिस्सा है मनुष्य के मस्तिष्क का, वह बाएं हाथ
से जुड़ा है। और जो बाएं तरफ का हिस्सा है मस्तिष्क का वह दाएं हाथ से जुड़ा है।
उलटा, क्रास के जैसा। बायां दाएं से जुड़ा है, दायां बाएं से जुड़ा है। चूंकि हमने दाएं हाथ को
महत्त्वपूर्ण बना लिया है और हमारे सारे कृत्य उसी से हो रहे हैं, इसलिए हमारा बायां मस्तिष्क का हिस्सा सक्रिय है। बाएं
मस्तिष्क के हिस्से के कुछ लक्षण हैं--गणित, तर्क, हिसाब-किताब, बहिर्यात्रा।
और शायद इसीलिए दायां हाथ महत्वपूर्ण हो गया।
अब विज्ञान इस खोज-बीन में लगा है, शायद इसीलिए दायां हाथ महत्त्वपूर्ण हो गया। क्योंकि बाएं
मस्तिष्क को सक्रिय करने के लिए दाएं हाथ को सक्रिय करना जरूरी है; वे जुड़े हैं। जब दायां हाथ चलता है, तो बायां मस्तिष्क चलता है। जब बायां हाथ चलता है, तो दायां मस्तिष्क चलता है। दाएं मस्तिष्क के लक्षण
हैं--काव्य, भाव, अनुभूति, प्रेम। उनका तो कोई मूल्य नहीं है जगत में। इसीलिए बायां
हाथ बेकार डाल दिया गया है। बायां हाथ को बेकार डालने में हमने काव्य को बेकार कर
दिया है, प्रेम को बेकार कर दिया है, अनुभूति को, भाव को बेकार
कर दिया है। यह बड़ी तरकीब है। बड़ी जालसाजी है!
ये दोनों हाथ समान रूप से सक्रिय हो सकते
हैं भविष्य में। और होने चाहिए। भविष्य के मनुष्य की जो प्रशिक्षण-प्रक्रिया होगी, उसमें ये दोनों हाथ सक्रिय करने की कोशिश की जाएगी। अभी तो
हालत यह है, अगर कोई बच्चा बाएं हाथ से लिखता है, तो हम उसके पीछे पड़ जाते हैं कि दाएं से लिखो। दस प्रतिशत
लोग बाएं हाथ से लिखने वाले पैदा होते हैं। दस प्रतिशत कोई छोटा आंकड़ा नहीं है। सौ
में दस आदमी बाएं हाथ से लिखने वाले पैदा होते हैं। लेकिन मिलेंगे तुमको शायद एकाध
ही आदमी मिलेगा सौ में से जो बाएं से लिखता हो, बाकी नौ को हम
धक्का मार-मार कर, सजा दे-दे कर, स्कूल में मार-पीट कर दाएं हाथ से लिखवाने लगते हैं।
उसके पीछे कारण हैं।
समाज तर्क को मूल्य देता है, काव्य को नहीं। समाज गणित को मूल्य देता है, प्रेम को नहीं। समाज हिसाब-किताब से जीता है, भाव से नहीं। यह भाव की हत्या की खूब तरकीब निकाली! मगर
हजारों-हजारों सदियों से यह तरकीब चल रही है और हमारा मस्तिष्क का आधा हिस्सा
बिल्कुल निष्क्रिय होकर पड़ा है।
दोनों हाथों को एक साथ रख कर जोड़ने में
प्रतीक है कि हम दोनों अंगों को जोड़ते हैं, हम इकट्ठे
होकर नमस्कार कर रहे हैं। हम दोनों मस्तिष्कों को एक साथ लाकर नमस्कार कर रहे हैं।
हमारा तर्क भी तुम्हें निवेदन है, हमारा प्रेम
भी तुम्हें निवेदन है; हमारा गणित भी, हमारा काव्य भी; हमारा स्त्रैण
चित्त भी, हमारा पुरुष चित्त भी, दोनों समर्पित हैं। हम इकट्ठे होकर समर्पित हैं।
अब भेद है! पश्चिम में लोग हाथ मिलाते
हैं। उसमें एक ही हाथ का काम होता है। वह आधे मस्तिष्क का कृत्य है। उसमें समग्र
मनुष्य समाहित नहीं है। दोनों हाथ को जोड़ने में समग्रता समाहित है। हम दुई को
मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। दो नहीं, एक। इसलिए
परमात्मा के सामने दोनों हाथ जोड़ते हैं। जहां भी निवेदन करते हैं, वहां दोनों हाथ जोड़ते हैं।
जब तुम दोनों हाथ जोड़ते हो एक साथ, तो तुम्हारा मस्तिष्क और तुम्हारे दोनों हाथों की ऊर्जा
वर्तुलाकार हो जाती है, विद्युत
वर्तुल में घूमने लगती है। यह सिर्फ प्रतीक ही नहीं है, वस्तुतः यह घटना घटती है।
इसलिए ध्यान में कहा जाता हैः पद्मासन।
पद्मासन में एक पैर दूसरे पैर से जुड़ जाता है और हाथ पर हाथ रख लो तो हाथ भी
एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं--तुम्हारा पूरा शरीर एक हो गया। तुम्हारा द्वंद्व टूट
गया भीतर। तुम्हारे शरीर में विद्युत कि ऊर्जा वर्तुलाकार घूमने लगी। यह जो वर्तुल
है विद्युत का, बड़ा शांतिदाई है। इसलिए पद्मासन, सिद्धासन बड़े वैज्ञानिक आसन हैं। सुगमता से चित्त शांत हो
सकेगा। सरलता से चित्त शांत हो सकेगा। शरीर को जोड़ कर हमने मस्तिष्क के दोनों
खंडों को जोड़ दिया। दोनों मस्तिष्क के खंड जुड़ जाएं तो हमारे भीतर जो भाव का और
विचार का द्वंद्व है, वह समाप्त हो जाता है। विज्ञान और धर्म का
जो द्वंद्व है, वह समाप्त हो जाता है।
दोनों हाथों को जोड़ कर नमस्कार करना बड़ा
वैज्ञानिक है। इसे हाथ मिलाने से मत बदल लेना, वह बहुत सस्ता
है, उसका कोई मूल्य नहीं, उसकी कोई
वैज्ञानिकता नहीं है।
अरी मैं तो नाम के रंग छकी
ओशो
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