अगर प्रार्थना किसी की भी की, तो वह प्रार्थना नहीं होगी। लेकिन
प्रार्थना से मतलब ऐसा निकलता है कि किसी की करनी है और किसीलिए करनी है। कोई कारण
होगा, कोई प्रार्थी होगा और
किसी से करेगा। तो हमें ऐसा लगेगा,
प्रार्थना तो हो ही नहीं सकती है,
अगर कोई कारण नहीं है और किसी से करनेवाला नहीं है। अकेला करनेवाला क्या करेगा, कैसे करेगा!
मेरा कहना यह है कि प्रार्थना, अगर ठीक से हम समझें, तो कोई क्रिया नहीं है, बल्कि एक वृत्ति हैप्रेयरफुल मूड है।
प्रेयर नहीं है सवालप्रेयरफुल मूड। प्रार्थना नहीं है सवाल प्रार्थनापूर्ण हृदय।
यह बिलकुल और बात है। आप रास्ते से निकल
रहे हैं। एक प्रार्थना-शून्य हृदय है। रास्ते के किनारे कोई गिर पड़ा है और मर रहा
है, वह प्रार्थना-शून्य
हृदय ऐसे निकल जाएगा, जैसे रास्ते
पर कुछ नहीं हुआ। लेकिन प्रार्थनापूर्ण हृदय जो है, वह कुछ करेगा;
वह जो गिर गया है, उसे उठाएगा।
वह चिंता करेगा, दौड़ेगा, उसे कहीं पहुंचाएगा। अगर रास्ते पर कांटे
पड़े हैं, तो एक
प्रार्थना-शून्य हृदय कांटों से बच कर निकल जाएगा, लेकिन कांटों को उठाएगा नहीं। प्रार्थनापूर्ण हृदय उन
कांटों को उठाने का श्रम लेगा;
उठाकर उन्हें अलग फेंकेगा।
प्रार्थनापूर्ण हृदय का मतलब हैः
प्रेमपूर्ण हृदय। और जब कोई व्यक्ति का प्रेम, एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के प्रति होता है, तो उसे हम प्रेम कहते हैं। और जब किसी
व्यक्ति का प्रेम किसी से बंधा नहीं होता,
समस्त के प्रति होता है, तब मैं उसे
प्रार्थना कहता हूं।
प्रेम है दो व्यक्तियों के बीच का संबंध
और प्रार्थना है एक और अनंत के बीच का संबंध। वह जो सब हमारे चारों तरफ फैला हुआ
हैपौधे हैं, पक्षी हैं, सब,
उस सबके प्रति जो प्रेमपूर्ण है,
वह प्रार्थना में है। प्रार्थना का यह मतलब नहीं है कि किसी मंदिर में कोई
आदमी हाथ जोड़कर बैठा है और वह प्रार्थना कर रहा है।
प्रार्थना का मतलब हैः ऐसा व्यक्ति, जो जीवन में जहां भी आंख डालता है, हाथ रखता है, पैर रखता है, श्वास लेता है, तो हर घड़ी प्रेम से भरा हुआ है, प्रेमपूर्ण है।
एक मुसलमान फकीर था। जिंदगी भर मस्जिद
गया। बूढ़ा हो गया है! एक दिन लोगों ने मस्जिद में न देखा तो सोचा, क्या मर गया! क्योंकि वह जीते जी तो नहीं
मस्जिद आए, यह असंभव है।
तो वे उसके घर गए। वह तो बैठा था बाहर दरवाजे पर। खंजड़ी बजा कर गीत गाता था।
तो
लोगों ने कहाः यह तुम क्या कर रहे हो?
आखिरी वक्त नास्तिक हो गए?
प्रार्थना नहीं करोगे? उस फकीर ने
कहाः प्रार्थना के कारण ही आज मंदिर नहीं आ सका। उन्होंने कहाः क्या मतलब? मस्जिद नहीं आए, प्रार्थना के कारण? मस्जिद के बिना प्रार्थना हो कैसे सकती है? उस आदमी ने अपनी छाती खोल दी। उसकी छाती
में एक नासूर हो गया है, उसमें कीड़े पड़
गए हैं। उसने कहा कि कल मैं गया था और जब नमाज पढ़ने के लिए झुका, तो कुछ कीड़े मेरी छाती से नीचे गिर गए और
मुझे खयाल हुआ कि ये तो मर जाएंगे,
बिना नासूर के जीएंगे कैसे! तो फिर आज मैं झुक नहीं सकता हूं। प्रार्थना के
कारण आज मस्जिद नहीं आ सका!
यह प्रार्थना बहुत कम लोगों की समझ में
आएगी। लेकिन जब मैं प्रार्थना की बात करता हूं, तो मेरी प्रार्थना का यही अर्थ हैः प्रेयरफुल मूड, प्रेयरफुल एटीट्यूड। वह जो हम जीवन में जी
रहे हैं, उसमें सब तरफ
हम कितने प्रार्थनापूर्ण हो सकते हैं,
यह सवाल है।
कहा कहूं उस देस की
ओशो
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