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Monday, February 24, 2020

दुःख ही दुःख है, सुख के स्‍वप्‍न में भी दर्शन नहीं, फिर भी जाग नहीं आती है, जागरण का कोई अनुभव नहीं होता है।


दुःख ही दु:ख है, ऐसा तुम्हारा अनुभव है, या तुमने किसी की बात सुनकर पकड़ ली? जरा भी सुख नहीं है, ऐसा तुम्हारा अनुभव है, या तुमने बुद्धपुरुषों के वचन कंठस्थ कर लिये? मुझे लगता है, तुमने बुद्धपुरुषों के वचन कंठस्थ कर लिये हैं। क्योंकि .तुम्हारा ही अनुभव हो तो जागरण आना ही चाहिए। अनिवार्य है। अगर पैर में काटा गड़ा है, तो पीड़ा होगी ही। अगर दुःख है ऐसा तुम्हारा अनुभव है, तो जागरण आएगा ही। दुःख जगाता है, दुःख मांजता है, निखारता है। दुःख का मूल्य ही यही है।

लोग मुझसे पूछते हैं, संसार में परमात्मा ने इतना दुःख क्यों दिया है? मैं उनसे कहता हूं, थोड़ा सोचो, इतना दुःख है फिर भी तुम नहीं जागते, अगर दुःख न होता तब तो फिर कोई आशा ही नहीं थी। इतने दुःख के बावजूद नहीं जागते!

दुःख जगाने का उपाय है। इतनी पीड़ा है फिर भी तुम सोए चले जाते हो। सुख की आशा नहीं टूटती। ऐसा लगता है आज नहीं है सुख, कल होगा। अभी नहीं हुआ, अभी होगा। आज तक हारे, सदा थोडे ही हारते रहेंगे। और मन तो कहे चला जाता है, और, थोड़ा और रुक जाओ, थोड़ा और देख लो, कौन जाने करीब ही आती हो खदान सुख की। अब तक खोदा और कहीं दो चार कुदाली और चलाने की देर थी कि पहुंच जाते खदान पर, थोड़ा और खोद लो। और, और, मन कहे चला जाता है।और' है मंत्र मन का।

भौंहों पर खिंचने दो रतनारे बान

अभी और अभी और।

सुरधन को सरसा ओ आंचल के देश

सपनों को बरसा ओ नभ के परिवेश

संयम से मत बांधो दर्शन के प्राण

अभी चलने दो दौर!

अभी और अभी और।

कनकन को महका ओ माटी के गीत

जीवन को दहका ओं सुमनों के मीत

अधरों को करने दो छक कर मधुपान

कहीं सौरभ के ठौर!

अभी और अभी और।

तनमन को पुकार उगे रागों के छोर

प्रीति कलश ढुलका ओ वंशी के पोर

कुंजों में छिड़ने दो भ्रमरों की तान

धरो स्वर के सिर मौर!

अभी और अभी और!

भौंहों पर खिंचने दो रतनारे बान

अभी और अभी और!

मन कहे चला जाताअभी और, जरा और। एक प्याली और पी लें, एक आलिंगन और कर लें, एक चुंबन और, थोड़ा समय है, कौन जाने जो अब तक नहीं मिला मिल जाए। ऐसे आशा के सहारे आदमी खिंचता चला जाता है।


तुम कहते हो कि जीवन में दुःख है। तुम्हें नहीं दिखायी पड़ा। और तुम कहते हो, यह सुख तो कभी मिला नहीं सपने में भी। माना। किसको मिला! किसी को भी नहीं मिला, लेकिन अभी भी तुम सपना देख रहे हो कि शायद कल मिले। सपने में भी सुख नहीं मिलता, लेकिन सुख का सपना हम देखे चले जाते हैं। जब तुम्हारा सुख का भ्रम टूट जाएगासुख मिल ही नहीं सकता, सुख का कोई संबंध ही नहीं है बाहर के जगत से, सुख मिलता है उन्हें जो भीतर जाते हैं, सुख मिलता है उन्हें जो स्वयं में आते हैं, सुख मिलता है उन्हें जो साक्षी हो जाते हैतो उसी क्षण घटना घट जाएगी।


तुम पूछते हो, जागरण क्यों नहीं आता? क्योंकि तुमने दुःख के वाण को ठीक से छिदने नहीं दिया। तुमने बहुत तरकीबें बना ली हैं दुःख के वाण को झेलने के लिए। कोई आदमी दुखी होता है, वह कहता है, पिछले जन्मों के कर्मों के कारण दुखी हो रहा हूं खूब तरकीब निकाल ली सांत्वना की। पिछले जन्मों के कारण दुःखी हो रहा हूं। अब कुछ किया नहीं जा सकता, बात खतम हो गयी, अब तो होना ही पड़ेगा। तुमने एक तरकीब निकाल ली। कोई आदमी कहता है, इसलिए दुःखी हो रहा हूं कि अभी मेरे पास धन नहीं है, जब होगा तब सुखी हो जाऊंगा। कोई कहता है, अभी इसलिए सुखी नहीं हूं कि सुंदर पत्नी नहीं है, होगी तो हो जाऊंगा। कि बेटा नहीं है, होगा तो सुखी हो जाऊंगा। तुम देखते नहीं कि हजारों लोगों के पास बेटे हैं और वे सुखी नहीं हैं! तुम कैसे भ्रम पालते हो? हजारों लोगं के पास धन है और वे सुखी नहीं और तुम कहते हो, मेरे पास होगा तो मैं हो जाऊंगा। हजारों लोग पद पर हैं और सुखी नहीं, फिर भी तुम देखते नहीं। तुम कहते हो, मैं होऊंगा तो सुखी हो जाऊंगा, हमें हजारों से क्या लेनादेना! मेरा तो होना पक्का है। मैं अपवाद हूं, ऐसी तुम्हारी भ्रांति है।

नहीं कोई अपवाद है।

जीवन में बाहर से सुख मिला नहीं किसी को, दुःख ही मिला है। बाहर जो भी मिलता है दुःख है। बाहर से जो मिलता है, उसी का नाम दुःख है। और भीतर से जो बहता है, उसी का नाम सुख है।

अष्टावक्र महागीता 

ओशो

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