एक युवक न्यूयार्क की तरफ यात्रा कर रहा
था वह जिस ट्रेन में बैठा हुआ था उसके बगल की ही सीट पर एक वृद्धजनजी बैठे हुए थे।
उस युवक ने थोड़ी देर बाद उनसे पूछा कि कितना समय हुआ होगा आपकी घड़ी में, आपकी घड़ी में कितना बजा है। उस वृद्ध ने
उस युवक को नीचे से ऊपर तक देखा,
उसके हाथ के बस्ते और सामान को देख कर लगता था वह किसी इंश्योरेंस कंपनी का
एजेंट होगा, किसी बीमा
कंपनी का एजेंट होगा। उस वृद्ध ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा और फिर कहा महाशय, मैं आपको समय नहीं बता सकूंगा।
युवक हैरान
हुआ, उसने पूछा आपके पास घड़ी
नहीं है?
उस वृद्ध ने
कहा, घड़ी तो है लेकिन मैं
आपको बताऊंगा कि समय कितना है,
फिर बातचीत चल पड़ेगी। आप मुझसे पूछेंगे,
आप कहां जा रहे हैं? मैं आपको
कहूंगा, मैं न्यूयार्क जा रहा
हूं। आप पूछेंगे, वहीं रहते हैं? फिर मजबूरी में मुझे बताना पड़ेगा अपने घर
का पता और शायद शिष्टाचार में आपसे कहना पड़े कि आप भी न्यूयार्क चलते हैं कभी मेरे
घर आइए। मेरी लड़की जवान है, जरूरी है घर
आकर आपका उससे मिलन, मैत्री, परिचय हो जाएगा। आप उससे कहेंगे कहीं
घूमने को चलने को, शायद वह जाने
को राजी हो। और यह बात अंत में मैं जानता हूं कि आप प्रस्ताव करेंगे कि मैं आपकी
युवा लड़की से विवाह करना चाहता हूं। और मैं आपसे निवेदन करता हूं मैं बीमा एजेंट
बिलकुल भी पसंद नहीं करता हूं,
उनको मैं दामाद नहीं बना सकता हूं।
वह युवक तो हैरान रह गया। उसने कहा, महाशय आप किन सपनों में खोए हुए हैं! मैं
केवल पूछता हूं कि समय, कितना बजा है, कितना बजा है आपकी घड़ी में? और आप किन-किन नतीजों पर, किन-किन अनुमानों पर यात्रा कर गए?
हमें हंसी आती है इस वृद्ध आदमी पर लेकिन
हम सब भी निरंतर ऐसे ही सपनों में,
भविष्य में यात्रा करते रहते हैं। वर्तमान में हम में से कोई भी नहीं जीता है।
या तो हम अतीत की स्मृतियों में खोए रहते हैं जो बीत गया उसकी याद्दाश्तों में या
जो नहीं आया उसकी आशाओं में, सपनों में।
वर्तमान में कोई भी नहीं जीता है। या तो हम बीते हुए अतीत की स्मृतियों में खोए
रहते हैं या न आए हुए भविष्य की कल्पनाओं में। यही नींद है, यही सपना है। जो वर्तमान में है, वह जागा हुआ होता है। जो अतीत में है, भविष्य में है वह सोया हुआ है।
नये मनुष्य का धर्म
ओशो
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