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Friday, February 14, 2020

‘युक्तौ च सम्परायात्।'


आम का बीज बोते हैं, आम पैदा होता है। आम इसलिए पैदा होता है कि आम छिपा था, आम था ही। नहीं तो कंकड़ बोते तो आम पैदा हो जाता। जो छिपा है, वह प्रकट होता है। इस जगत में वही मिलता है जो मिला ही हुआ है। भेद इतना ही पड़ता है कि छिपा था, अब प्रकट हुआ। तुम भगवान हो, लेकिन अभी बीज की नाइ; जब वृक्ष की नाइ होओगे, तब जानोगे, तब पहचानोगे।


शांडिल्य कहते हैं : दोनों प्रथम से ही एक हैं।

युक्तौ च सम्परायात्।'
 
कभी अलग हुए नहीं। अलग होना भ्रांति है। अलग होना हमारे मन का भ्रम है। और यह भ्रम हम ने इसलिए पैदा किया है कि इसी अलग होने के भ्रम के आधार पर अहंकार पालापोसा जा सकता है। यदि तुम परमात्मा हो तो तुम रहे ही नहीं, परमात्मा रहा। बूंद डरती है सागर होने सेंबूंद सागर हो जाएगी तो बूंद नहीं रह जाएगी, सागर ही रहेगा। विराट के साथ मिलने में भय लगता है। आकाश के साथ जुड़ना दुस्साहस की बात है।


इसलिए भक्त को दुस्साहसी होना ही होगा। बूंद अपने को खोने चली है। छोटी सी बूंद इतने विराट सागर में। फिर न पता लगेगा, न ओरछोर मिलेगा; फिर अपने से शायद कभी मिलना भी न हो; इतनी खोने की जिसकी हिम्मत है, वही भक्त हो सकता है। और जो भक्त हो सकता है, वही भगवान हो सकता है। भक्त होने का अर्थ है, बीज ने अपने को तोड़ने का निर्णय लिया। तुम जमीन में बीज को बोते हो, जब तक बीज टूटे नहीं, वृक्ष नहीं होता; जब तक बीज मिटे नहीं तब तक अंकुरण नहीं होता; बीज की मृत्यु ही वृक्ष का जन्म है। तुम्हारी मृत्यु ही भगवान का आविर्भाव है। भक्त जहां मरता है, वहीं भगवत्ता उपलब्ध होती है।


इसीलिए तो लोगों ने झूठी भक्ति की व्यवस्थाएं खोज रखी हैं, ताकि अपने को मिटने से बचा सकें। मंदिर जाते हैं, प्रार्थना करते हैं, पूजा करते हैं, यज्ञहवन करते हैं, अपने को बचाए रखते हैं। आग में घी डालते हैं; अपने को नहीं डालते। आग में गेहूं डालते हैं, अपने को नहीं डालते। वृक्षों से तोड़कर फूल परमात्मा के चरणों में चढ़ा आते हैं, अपने को नहीं चढ़ाते। और जिसने अपने को नहीं चढ़ाया, उसने पूजा जानी ही नहीं; वह बीज टूटा ही नहीं, अंकुरण से उसकी कोई मुलाकात ही न हुई।


बिना मिटे इस जगत में होने का कोई उपाय नहीं। छोटे तल पर मिटो तो बड़े तल पर प्रकट होते हो। जितने ज्यादा मिटो, उतने प्रकट होते हो। जब परिपूर्ण रूप से मिटते हो, तब भगवत्ता उपलब्ध होती है क्योंकि भगवत्ता पूर्णता है, उसके पार फिर कुछ और नहीं। लेकिन यह हो सकता है इसीलिए, क्योंकि यह हुआ ही हुआ है। इस उदघोषणा को जगह दो अपने हृदय मे।


तुम भगवान हो सकते हो, क्योंकि तुम भगवान हो। भगवान ने तुम्हें एक क्षण को नहीं छोड़ा, तुम भला पीठ करके खड़े हो गए हो। तुमने भला आखें बंद कर ली हैं, सूरज निकला है और चारों तरफ जगत रोशन है। तुम अंधेरे मे खड़े हो, यह तुम्हारा निर्णय है। अंधेरा है नहीं, अंधेरा बनाया हुआ है, कृत्रिम है। इस कृत्रिम बनाए हुए अंधेरे का नाम माया है, जो आदमी खुद बना लेता है।

अथातो भक्ति जिज्ञासा 

ओशो

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